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रविवार, 30 जुलाई 2017

हेमकुंड साहिब यात्रा भाग 6: घांघरिया से हेमकुंड सहिब

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16 जून,2016


घांघरिया और हेमकुंड साहिब के रास्ते में

रात को नींद बहुत अच्छी आई।सुबह साढ़े 4 बजे के करीब उठ गए।हम से पहले बहुत से लोग उठ चुके थे।बहुत से लोग तो नहा धो कर ऊपर प्रस्थान भी कर चुके थे।शमशेर हमारे साथ नही उठा।कल लिए गए निर्णय के मुताबिक शमशेर वापिस गोविंदघाट जाएगा जबकि हम ऊपर हेमकुंड साहिब की यात्रा के लिए प्रस्थान करेंगे।शमशेर को कोई जल्दी नही थी इसलिए वो आराम से सोता रहा।उठने का तो मेरा बिल्कुल भी मन नही था लेकिन उठना पड़ा।जिस हॉल में हम सोए थे वो लंगर हॉल के ऊपर बना हुआ था।उठकर नीचे आए।चाय पी।फिर नहाने पर चर्चा हुई।सभी ने ठंड को देखते हुए न नहाने का फैसला किया।

लगभग सवा पांच हो चुके हैं।चलने की सभी तैयारियाँ हो चुकी हैं।विनोद लंगर हॉल में खाना खाने गया हुआ है।मेरा अजय और अनिल का खाने का मन नही है।गुरुद्वारे के मुख्यद्वार के पास ही एक दीवार के पास बहुत सी छड़ियाँ पड़ी हुई हैं।इनमें से कुछ ठीक हालत में भी हैं।ये छड़ियाँ यात्रा के दौरान चढाई में बहुत सहयोग देती हैं।जो लोग ऊपर से वापिस आते है वो अपनी प्रयोग की गई छड़ी यहां छोड़ देते हैं ताकि वो किसी और के काम आ सके।कुछ ही देर में विनोद खाना खा कर आ चुका है।मुझे छोड़ कर तीनों ने एक-एक छड़ी ले ली है।


हेम का अर्थ है बर्फ वहीं कुंड का अर्थ है कटोरा।इस तरह हेमकुंड का अर्थ हुआ बर्फ का कटोरा।हेमकुंड साहिब वर्षभर लगभग बर्फ से घिरा रहता है।हिंदुओं के पूज्य श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण ने यहाँ एक मंदिर का निर्माण करवाया था जिसे लक्ष्मण मंदिर कहते हैं।यहां सीखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह ने तपस्या की थी।जिस का वर्णन दशम ग्रन्थ में किया गया है।जो लोग दशम ग्रन्थ में यकीन रखते हैं उनके लिए ये स्थान बहुत महत्वपूर्ण है।जिस स्थान पर गुरु जी ने ध्यान लगाया था वहां ये गुरुद्वारा बना हुआ है जिसे गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब कहा जाता है।गुरुद्वारे के साथ ही पवित्र सरोवर बना हुआ है जिसे हेम सरोवर के नाम से जाना जाता है।गुरुद्वारे में माथा टेकने से पहले सिख श्रद्धालू इस पवित्र सरोवर में स्नान करते हैं।गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब और लक्ष्मण मंदिर पास पास ही बने हुए हैं।


घांघरिया जहाँ 3049 मीटर की ऊंचाई पर है वहीं हेमकुंड साहिब 4329 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।इसका मतलब हमें छः किलोमीटर की यात्रा में 1280 मीटर चढ़ना पड़ेगा।काफी दुर्गम चढाई है।खैर छः साढ़े-पांच,छः बजे के करीब गुरद्वारे से निकल पड़े।थोड़ी सी दुरी पर एक पुल आया।पुल पार कर के आगे बढ़े।थोड़ी दूर चलने पर एक रास्ता बाएं और फूलों की घाटी में जाता है जिसकी दुरी यहां से 3 किलोमीटर है।हम मुख्य रास्ते पर चलते रहे।सामने एक झरना दिखाई दे रहा था जो सामने एक पहाड़ी से नीचे गिर रहा था।बहुत खूबसूरत लग रहा था।थोड़ा सा चलने पर कठिन चढाई शुरू हो जाती है।बीच में कई जगह सीढ़ियों पर चढ़ना पड़ता है तो कई जगह पत्थरो पर भी चलना पड़ा।आज मैं और अनिल साथ है वहीं विनोद और अजय साथ चल रहे हैं।अजय का पहाड़ों में चलने का तरीका बहुत अच्छा है।छोटे कदमों के साथ अपनी सामान्य चाल से चलता है।इसलिए थकान कम होती है।विनोद का शरीर हल्का है चुस्ती भी अच्छी है।वहीं अनिल का शरीर भारी तो है पर फिट है।अनिल की समस्या ये है कि वो बहुत तेज़ी से चढ़ता है परिणामस्वरूप उसी तेज़ी से थक जाता है।मेरा वजन तो पिछले दो सालों में 75 पार कर गया है पर चलने में कोई हरकत नही होती।

रास्ते में 3-4 जगह खाने पीने की दुकानें भी आती हैं।खच्चरों की वजह से पैदल चलने वालों को काफी दिक्कत आती है।2 किलोमीटर चलने के बाद सभी को भयंकर वाली थकान होने लगी है।थोड़ी थोड़ी देर में बैठना पड़ता है।पैरों में भी दर्द होने लगा है।विनोद और अजय हमसे कुछ आगे चल रहे हैं।लगभग आधी दुरी पार करने के बाद हमे रास्ते में ऊपर से वापिस आने वाले यात्री भी मिलने लगे हैं।जिस से भी बात होती है हम यही पूछते हैं भाई साहब कितनी दूर और रह गया है।और वो हमें हौंसला देने के लिए कहते हैं कि बस अब तो थोड़ा ही रह गया है आधे घण्टे में पहुँच जाओगे।मगर ये आधा घण्टा एक घण्टा बीतने के बाद भी आधा ही रहा।लगभग 2 किलोमीटर पहले एक जगह आई जहां बर्फ का एक ग्लेशियर मिला।यहाँ बर्फ पर कुछ देर हम लोगों ने उछल-कूद की।काफी अच्छा लग रहा था यहां आने के बाद।

कुछ देर बाद आगे बढ़ गए।एक सरदार जी मिले।कहने लगे पिछली साल भी मैं इस यात्रा पर आया था उस समय 2-3 किलोमीटर बर्फ में चलना पड़ा था।घांघरिया के बाद ही बर्फ शुरू हो गई थी।इस बार तो बर्फ नाम मात्र की भी नही है।खैर चलते रहे चलते रहे।मेरा अनिल से भी ज्यादा बुरा हाल और अनिल सोच रहा है कि मेरा संजय से भी ज्यादा बुरा हाल है।अजय और विनोद लगभग 200 मीटर आगे चल रहे हैं।

निशान साहिब नज़र आने लगा है।इससे थोड़ी हिम्मत मिली है।जब हेमकुंड साहिब लगभग डेढ़ किलोमीटर रह गया तो एक जगह सीढ़ियाँ नजर आई।जो मुख्य मार्ग के बाईं और ऊपर चढ़ रही थी।सीढ़ियों के सामने की मुख्य मार्ग के किनारे एक दुकान बनी हुई थी जहां बहुत से यात्री जलपान ग्रहण कर रहे थे।हमने दुकानदार से पूछा कि क्या ये सीढियां हेमकुंड साहिब जा रही है।सकारात्मक जवाब मिलने के बाद मैंने और अनिल ने सीढ़ियों से ही जाना तय कर लिया।सीढ़ियों से चढ़ने का पंगा ले तो लिया पर किस प्रकार ऊपर पहुँचे इसे शब्दों में बताना उतना ही मुश्किल है जितना मुश्किल उस समय सीढ़ियों से चढ़ना लगा।

लगभग साढ़े बारह बजे हेमकुंड साहिब की पवित्र सरजमीं पर हमारे कदम पड़े।यहां आकर सारी थकान खत्म हो गयी।यहां ठण्ड भी अच्छी थी।अजय और विनोद हमसे 10-15 मिनट पहले ही पहुँच चुके थे।चाय पीने के बाद पहले सरोवर के पास पहुंचे।सोचा मुंह हाथ तो धो ही लेते हैं।जैसे ही पानी में हाथ डाला लगा इतना ही साहस बहुत है।हेम सरोवर काफी खूबसूरत लग रहा था।उसके बाद गुरुद्वारे में जाकर दर्शन किये,मत्था टेका।गुरुद्वारे की छत से लक्ष्मण मंदिर भी नज़र आ रहा था।गुरुद्वारा और लक्ष्मण मंदिर दोनों बहुत अच्छे लग रहे थे।गुरुद्वारे से बाहर आने के बाद लंगर हाल में पहुंचे।वहां खिचड़ी का प्रसाद मिला और साथ में फिर से चाय।4329 मीटर की ऊंचाई का हमें तो कोई खास फर्क महसूस नही हुआ।वैसे इतनी ऊंचाई पर आने पर लोगों को सांस लेने में समस्या होने लगती है।

लगभग डेढ़ बजे वापिस चल पड़े।उतराई उसी सीढियों वाले रास्ते से शुरू की।उतरते वक्त कोई दिक्कत नही हुई।लगभग 2 घण्टों में घांघरिया पहुँच गये।गुरुद्वारे में चाय पी और अगले ढाई घण्टो में पुलना।पुलना से जीप पकड़ी और 20 मिनट में गोविंदघाट स्थित गुरुद्वारे में पहुँच गये।हमारे गोविंदघाट पहुँचते ही जबरदस्त बारिश शुरू हो गयी।गुरुद्वारे में शमशेर ने हमारे लिए पहले ही बिस्तर आरक्षित करवा रखे थे।थकान की वजह से जल्दी खाना खाया और सो गए।


रास्ते में एक ग्लेसियर के पास विनोद









हेम सरोवर







हेम सरोवर



विनोद मूंछो को ताव देता हुआ

गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब का शानदार नज़ारा





बरसात की वजह से बरसाती पहननी पड़ गयी थी

बर्फ से खेलते हुए अजय

अनिल रास्ते में

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रविवार, 2 जुलाई 2017

हेमकुंड साहिब यात्रा भाग 5:गोविंदघाट से गोविन्दधाम(घांघरिया)

गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब और पवित्र सरोवर

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15 जून,2016

शोर शराबे की वजह से मेरी आंख खुल जाती है लेकिन निंद्रा अभी भी आँखों में तारी है।आखिर हिम्मत करके पूरी आँख खोलता हूँ तो पता चलता है कि सुबह हो चुकी है और लोग बाग़ शौच आदि से निवृत हो रहे हैं।कई लोग तो नहा भी चुके हैं।लगभग 7 बज चुके हैं और सब से अंत में मेरी ही आँख खुली है।अजय नहा कर आ चुका है।अनिल और शमशेर नहाने गये हुए हैं।विनोद शौचालय का सदुपयोग कर रहा है।वैसे हमें कोई ज्यादा जल्दी नही है क्योंकि आज का हमारा लक्ष्य गोविन्दघाट से 13 किलोमीटर दूर गोविंदधाम पहुँचना है।इन 13 किलोमीटर में से 3 किलोमीटर की दुरी जीप द्वारा तय की जानी है जबकि शेष 10 किलोमीटर पैदल यात्रा है।इसलिए हम शाम तक आसानी से गोविंदधाम पहुँच जाएंगे।गोविंदधाम को घांघरिया भी कहा जाता है।

आखिरकार उठने की हिम्मत करता हूँ।हिम्मत-ए-मरदां तो मदद-ए खुदा।सफलता भी मिल ही जाती है।नीचे कई शौचालय बने हुए है।परन्तु सुबह का समय होने के कारण मांग पूर्ति से कहीं ज्यादा है।तभी मेरे सामने वाले शौचालय का दरवाजा खुलता है और मैं घुस जाता हूँ।शौच की इच्छा नहीं है।चलो जोर लगा के देखता हूँ,शायद बात बन जाए।परिणाम शून्य।बात नही बनी।चिंता हुई की कहीं रास्ते में दिक्कत न हो जाए।चलो जो होगा देखा जाएगा।शौचालय में बैठे-बैठे एक महत्वपूर्ण निर्णय भी लिया कि नहाने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं हैं।नहीं नहाऊंगा।

अलकनन्दा के किनारे बसा गोविंदघाट एक खूबसूरत स्थान है।अलकनन्दा इसे और भी खूबसूरत बना देती है।गुरुद्वारा गोविंदघाट भी अलकनन्दा के किनारे ही बना हुआ है।गुरुद्वारे में जहां यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था है वहां से अलकनन्दा काफी आकर्षक नज़र आती है।2013 की विभीषिका में गोविंदघाट में भी बहुत ज्यादा नुकसान हुआ था।गुरुद्वारा तो पूरी तरह नष्ट हो गया था।गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और कारसेवकों ने मिलकर इसे पुनः त्यार किया है।गोविंदघाट हेमकुंड साहिब का आधार स्थल है।यहां बने गुरुद्वारे का हेमकुंड साहिब यात्रा में विशेष योगदान होता है।हेमकुंड जाने वाले लगभग सभी यात्री यात्रा से पूर्व इसी गुरुद्वारे में ठहरते हैं।

यहाँ से हेमकुंड साहिब का सफर 19 किलोमीटर का है।यहां से 4 किलोमीटर पर पुलना नामक जगह है।जहां 3 किलोमीटर तक मोटर मार्ग बन चूका है।इसलिए ये तीन किलोमीटर की दुरी हम जीप या बाइक से तय कर सकते हैं।उसके बाद 5 किलोमीटर चलने पर भयुन्दर नामक जगह आती है और भयुन्दर से आगे 5 किलोमीटर पर आता है गोविंदधाम।यानी गोविंदधाम की गोविंदघाट से दूरी 13 किलोमीटर है।ज्यादातर यात्री पहले दिन गोविंदधाम तक ही यात्रा करते हैं और अगले दिन हेमकुंड साहिब के लिए प्रस्थान करते हैं।

सवा 8 बज चुके हैं।हमनें अपना सामान गुरुद्वारे में जमा करवा दिया है।कल शाम को हमनें एक-एक प्लास्टिक की बरसाती और एक-एक प्लास्टिक के हल्के थैले जिन्हें पिट्ठू बैग की तरह पीछे लटकाया जा सकता है,खरीद लिए थे।मैंने अपने थैले में बरसाती और आंतरिक गर्म कपड़े डाल लिए।इसी प्रकार सभी ने अपनी आवश्यकता की चीजें अपने अपने थैले में डाल ली।हमारे पास रास्ते में खाने के लिए चने थे और सभी ने एक एक बोतल पानी ले लिया।ग्लूकॉन डी भी हम घर से ले कर चले थे।

गुरुद्वारे के साथ लगता ही जीप स्टैंड है जहां से पुलना के लिए जीप मिलती है।हमें जाते ही जीप मिल गई।गुरद्वारे के पास ही अलकनन्दा पर पुल बना हुआ है जिस पर एक बार में एक ही जीप जा सकती है।हेमकुंड साहिब नदी के उस ओर है इसलिए इस पुल को पार करना जरूरी है।जीप ने पुल पार किया और 20-25 मिनट में 4 किलोमीटर दूर स्थित पुलना से 1 किलोमीटर पहले छोड़ दिया।यानी हमारी 3 किलोमीटर की यात्रा सम्पन हो गयी।

गोविन्दघाट की समुंद्रतल से ऊंचाई 1828 मीटर है वहीं पुलना 2058 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।देखा जाए तो जीप का हमे बहुत फायदा हुआ है।यहाँ से 6 किलोमीटर आगे भयुन्दर नामक जगह आएगी।जीप से उतरकर हमने पैदल यात्रा शुरू कर दी।ऊपर से एक नदी नीचे आ रही है जो गोविंदघाट पहुँच कर अलकनन्दा में मिल जाती है।जब हमनें किसी से इसके बारे में पूछा तो पता चला की ये लक्ष्मण गंगा नदी है जो ऊपर हेमकुंड साहिब के पास से ही आती है वहां लक्ष्मण मंदिर बना हुआ है।

पुलना के पास ही हमनें नीचे देखा कि नदी के किनारे एक उजड़ी हुई बस्ती नज़र आ रही है।ये बस्ती 2013 की विभीषिका में बरबाद हो गई थी।खण्डहर गवाही दे रहे है।उन लोगो पर क्या बीती होगी जो उस समय घरों में मौजूद थे।बहुत बुरा हुआ।कल्पना से ही कम्पन होने लगी।

थोड़ा आगे चलने पर पुलना आ गया।यहां कई खाने पीने की दुकानें बनी हुई हैं।यहां थोड़ी देर बैठ गए।थोड़ी देर बाद चल पड़े।कोई खास चढाई नही है।आराम से चल रहे हैं कोई थकान नही है।मैं और अजय साथ साथ है और आगे चल रहे हैं।बाकि तीनों हमसे थोड़ा पीछे चल रहे हैं।

पुलना जहां 2058 मीटर की ऊंचाई पर है वहीं भयुन्दर 2239 मीटर की ऊंचाई पर है।इसका मतलब 5 किलोमीटर के सफर में हमें 181 मीटर चढ़ना है।मतलब भयुन्दर तक कोई खास दिक्कत नही आनी।पुलना से लगभग 2 किलोमीटर चलने के बाद मुख्य रास्ते से एक रास्ता नदी की ओर नीचे उतर रहा था।बहुत से लोग उस रास्ते से जा रहे थे।मैं और अजय भी उसी रास्ते से चल पड़े।नीचे उतरने पर रास्ता नदी के साथ साथ है।बहुत से लोग नदी में मस्ती कर रहे थे।हम भी लग गए।थोड़ा आगे चलने पर चढ़ाई आ गई।चढ़ने में थोड़ा जोर भी लगा।ऊपर जाने पर वापिस मुख्य रास्ता आ गया।200 मीटर भी नही चले होंगे,भयुन्दर भी आ गया।मतलब 3 किलोमीटर नदी के साथ साथ बड़ी जल्दी निकल गए।पता ही नही चला।भयुन्दर में अच्छी दुकानें हैं मगर महंगाई ज्यादा है।हमनें थोड़ी देर भयुन्दर में आराम करने का फैसला कर लिया।अनिल,विनोद और शमशेर पीछे रह गए है।

थोड़ी देर आराम करके आगे बढ़ गए।लगभग 11 बज रहे हैं।भयुन्दर के बाद एक पुल आता है जिसे पर करके आगे बढ़ना होता है।5 किलोमीटर का सफर करके हम घांघरिया पहुँच पाएंगे।घांघरिया 3049 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।मतलब 5 किलोमीटर में हमें 810 मीटर चढ़ना होगा।एक किलोमीटर में 162 मीटर।मतलब घांघरिया तक काफी मुश्किल चढाई है।

पुल पार करने के बाद चढाई वाला रास्ता शुरू हो चुका है।थोड़ी थोड़ी दूरी पर थकान होने लगी है।मैं और अजय साथ चल रहे हैं।रास्ता काफी खूबसूरत है।ऊँचे ऊँचे पहाड़ देखकर काफी अच्छा लग रहा है।लक्ष्मण गंगा भयुन्दर तक दाईं और थी अब बाईं और हमारी विपरीत दिशा में बह रही है।बहुत से यात्री ऊपर जा रहे हैं तो बहुत से नीचे आ रहे हैं।पानी,पानी के साथ ग्लूकॉन डी सफर में सहयोग कर रहे हैं।एक जगह एक दुकान आती है।चाय पी जाती है।फिर आगे बढ़ जाते है।चलते-रुकते,बैठते-उठते आगे बढ़ते हैं।एक ऊपर से आता हुआ मुसाफिर मिलता है हमें ग्लूकॉन डी देता है और बताता है कि 2 किलोमीटर पर घांघरिया है।एक किलोमीटर तक दिक्कत है फिर चढाई खत्म हो जाएगी।होंसला मिलता है।घांघरिया से एक किलोमीटर पहले हेलिपैड आता हैं।यहां 15-15 मिनट में हेलोकॉप्टर उतरता है,सवारियां उतारता है,चढाता है,फिर उड़ान भरता है।हेलिपैड आने के साथ ही चढाई कम हो जाती है।हेलिपैड के सामने यात्रियों के लिए बने एक शेड में बैठ कर हमनें थोड़ी देर आराम किया।फिर चल पड़े।बाकी तीनों अभी भी पीछे है।ये नहीं पता कितने पीछे हैं।
लगभग 20 मिनट बाद हम गुरद्वारे में पहुँच चुके हैं।लगभग 2 बज चूके हैं।रहने की आज्ञा ली गई।भोजन किया गया।फिर इधर उधर विचरण किया।

कई देर तक उन तीनों का इंतजार किया।फिर मैंने अजय से कहा चल थोड़ी दूर वापिस चलते हैं क्या पता वो आते हुए मिल जाएं।उनकी खोज में हम वापिस उसी हेलीपेड के सामने वाले शेड के पास पहुँच गये।हेलीकॉप्टर उतरते और उड़ते हुए देखने लगे।वो लोग नही आए।

मौसम खराब होने लगा है।चारों और कोहरा छाने लगा है
।इतना कोहरा छा गया कि पहाड़ दिखने बन्द हो गए।थोड़ी ही देर में जबरदस्त बरसात शुरू हो गयी।हम लोगों ने शेड में शरण ली।और भी बहुत से लोग शेड के नीचे आ गए।लगभग आधा घण्टा बरसात होती रही।ठण्ड भी लगने लगी।मैंने गर्म बनियान और गर्म पायजामा पहन लिया।ठण्ड कम हुई।बरसात थोड़ी कम हुई तो सामने सफ़ेद रंग की बरसाती पहनें तीन लोग दिखाई दिए।एक ने हमारी और हाथ हिलाया।खुशी हुई चलो आ तो गये।शमशेर को चलने में थोड़ी दिक्कत है इसलिए हमें डर था कभी ये लोग वापिस न चल दिए हो।

घांघरिया गुरूद्वारे पहुंचे।तीनों ने भी पेट पूजा की।उसके बाद थोड़ी देर इधर उधर विचरण किया।मैंने और अजय ने गुरुद्वारे में बने शौचालयों की सेवा भी ली।रात को सोने से पहले ये निर्णय लिया गया कि शमशेर के लिए ऊपर चढ़ना काफी मुश्किल है अतः शमशेर ऊपर नही जाएगा वो वापिस गोविंदघाट चल कर गुरुद्वारे में ठहर जाएगा।और शेष चारों सुबह जल्दी उठकर चढाई शुरू करेंगे।रात को घांघरिया में सर्दी काफी बढ़ गई।हम रात को घांघरिया गुरूद्वारे में ऊपर बने हॉल में सोए।


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