शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

अजमेर- पुष्कर यात्रा-2(जयपुर)

होटल जिस में रहना पड़ा

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31 दिसम्बर,2017


सिंधीकैंप, मेरा पहले जब भी जयपुर आना हुआ है मैंने यह नाम कई बार सुना था। जैसे ही बस जयपुर में प्रवेश करती थी तब किसी भी चौक या छोटे स्टैंड पर बस रूकती थी तब वहां नीचे खड़े यात्री आवाज लगाते थे ,"भाई साहब क्या यह बस सिंधी कैंप जा रही है?"
तब मेरे आस पास बैठे किसी यात्री का जवाब हां में होता था। इस प्रकार मुझे यह शब्द कई बार सुनना पड़ता था। मैं कई बार सोचा करता था यह सिंधी कैंप शायद जयपुर की बहुत महत्वपूर्ण जगह है। एक दिन मुझे मेरे एक साथी से पता चला कि जयपुर के बस स्टैंड का नाम ही सिंधी कैंप है उसके बाद मैंने भी हमेशा बस स्टैंड की जगह सिंधी कैंप ही बोलना शुरु कर दिया।

सिंधी कैंप के सामने ही एक गली में शिव शक्ति गेस्ट हाउस है ,उसकी बगल में ही एक दूसरा गेस्ट हाउस बना है
।शायद इस गेस्ट हाउस का कोई नाम नहीं है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि गेस्ट हाउस के दरवाजे पर नाम का कोई बोर्ड नहीं था। जब हम रहने के लिए जगह की तलाश कर रहे थे तब हमें इस गेस्ट हाउस का एक कर्मचारी मिल गया ,उसने हमसे पूछा कि क्या आप कमरे की तलाश कर रहे हैं?अगर ऐसा है तो आप हमारे होटल में ठहर सकते हैं।हमारे होटल में आपको सस्ते में कमरे मिल जाएंगे और साथ ही गर्म पानी में मिलेगा नहाने के लिए। उसने कहा एक बार आप हमारी होटल में चल कर कमरे देख ले।अगर पसंद आए तो ले लेना वरना जैसी आपकी मर्जी।अनिल ने कहा चलो एक बार चल कर देख लेते हैं।अगर कमरों के साथ साथ किराया भी सही लगा तो ले लेंगे।वर्ना और कहीं देख लेंगे।

होटल पहुंचे,कमरे देखे। देखने में कमरे ठीक लगे और हमने 850 रुपए में दो कमरे ले लिए।रुपये जमा करवा दिए और रजिस्टर में एंट्री भी करवा दी।
बस यहीं गलती हो गयी ।जब ध्यान से कमरों को देखा गया तब मालूम हुआ कि कमरों का हाल बेहाल है। शौचालय बदबू से सने हुए थे एवं कमरों से भी बदबू आ रही थी। जब मैंने इसकी शिकायत की तो होटल कर्मचारी ने कहा कि आप 10 मिनट अपना सामान बाहर बरामदे में रख लो। मैं थोड़ी देर में कमरों और शौचालयों की सफाई करवा देता हूं ।थोड़ी देर में जब सफाई हो गई तो हम लोगों ने अपना समान अंदर रख दिया ।एक कमरे के बेड की चादर ठीक से बिछी हुई नहीं थी ।जब उसे ठीक करने के लिए अजय ने चादर को उठाया तो नीचे गद्दे पर दो-तीन कॉकरोच विचरण करते हुए नजर आए ।हमें यह देख कर अपनी गलती का अच्छे से एहसास हो गया ।हमने उस होटल कर्मचारी को बुलाया और उसे कॉकरोच दिखाए। साफ करने के बावजूद भी कमरे और शौचालय ढंग से साफ नहीं हुए थे।यह भी हमने उसे दिखा दिया। हमने उससे कहा श्रीमान जी आप पचास सौ रुपये काट कर हमें बाकी रुपए वापस कर दे। उसने पैसे वापस करने से मना कर दिया। मेरी और अनिल की उससे कई देर तक बहसबाजी होती रही।नतीजा यह रहा कि कमरों और शौचालयों की सफाई ढंग से हो गई ।अब वह स्थान हमारे रहने योग्य हो गया था।

लगभग 11:30 बज चुके थे और हमें जयपुर में घूमने के लिए निकलना था।घूमने के लिए निकलने से पहले सभी की इच्छा नहाने की थी। हमारे कमरों के स्नान गृह मैं गरम पानी की व्यवस्था नहीं थी।हमसे कहा गया था कि आपको नहाने के लिए गर्म पानी की बाल्टियां दे दी जाएंगी।आधे घंटे में सिर्फ एक बाल्टी पानी ही गर्म हो पाया। अनिल को छोड़कर सभी को ठंडे पानी से स्नान करना पड़ा।सभी साथी तैयार होकर होटल से निकल लिए ।उस समय तक लगभग 12:30 बज चुके थे सबसे पहले हम खाना खाने के लिए खंडेलवाल होटल जो कि सिंधी कैंप बस अड्डे पर ही बना हुआ है में पहुंचे।होटल के प्रथम तल पर खाना खाने के बाद हम लोग एक मिनी बस में बैठकर आमेर की ओर चल पड़े ।बस ने आमेर तक की 11 किलोमीटर की दूरी तय करने में पौने घंटे से ज्यादा समय ले लिया।

आमेर कस्बा गुलाबी नगरी जयपुर से लगभग 11 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।यह कस्बा लगभग 4 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। दिल्ली जयपुर राजमार्ग पर स्थित इस कस्बे के बाहर पहाड़ पर आमेर दुर्ग बना हुआ है ।इसे अंबेर दुर्ग भी कहा जाता है। इस किले का निर्माण महाराजा भारमल, मानसिंह प्रथम एवं महाराजा जयसिंह ने 16वीं शताब्दी में करवाया था। इस किले की विशेषताओं में से एक विशेषता यह है कि इस किले का निर्माण विशुद्ध भारतीय वास्तुकला के प्रयोग से हुआ है। इस किले को बनाने में लाल पत्थर और संगमरमर का प्रयोग किया गया है।इस किले में निर्मित दीवाने आम, दीवाने खास, शीश महल और किले में बने हुए दैत्याकार दरवाजे अपना एक अहम स्थान रखते हैं। इस किले में हर वक्त ठंडी ठंडी हवा बहती रहती है ,इसलिए इसे आमेर महल भी कहा जाता है। इसके किले को विश्व धरोहर में शामिल किया गया है ।पर्यटन की दृष्टि से इस किले का एक विशेष स्थान है।

मिनी बस ने हमें जिस स्थान पर उतारा वहां से लगभग 10 मिनट पैदल चलने के बाद हम किले के पास पहुंचे ।किला पहाड़ पर बना होने के कारण ऊपर चढ़ना पड़ता है ।दूर से देखने पर किले की भव्यता अनायास ही हमारा ध्यान अपनी और खींच लेती है ।साल का अंतिम दिन होने की वजह से एवं नए साल का आगाज होने की वजह से उस दिन किले में बहुत ज्यादा भीड़ थी ।बहुत से लोग परिवार सहित घूमने के लिए आए हुए थे। बहुत से स्कूलों के बच्चे भी शैक्षणिक भ्रमण के लिए आए हुए थे ।इस वजह से भीड़ होना लाज़मी थी। हम लोग किले के अंदर सिर्फ वही तक गए जहां तक जाना मुफ्त था। मेरा मतलब है कि जहां तक जाने की टिकट नहीं लगती ।उन सभी जगहों पर हम लोगों ने अच्छा समय बिताया, फोटो खींची गई ।किले के आगे बने हुए सरोवर के पास भी हम लोग थोड़ी देर तक बैठे रहे ।यहां आकर काफी अच्छा भी लगा पर भीड़ की वजह से ज्यादा मजा नहीं आया।

घूमने के बाद सड़क पर आ गए और एक खोमचे वाला जो की नमकीन दाल बेच रहा था से पूछा-

" हमें हवा महल जाना है, कैसे जा पाएंगे ?"

उसने एक मिनीबस की तरफ इशारा कर दिया बोला-

"उसमें चढ़ जाओ, हवामहल छोड़ देगी।"

हम लोग भयंकर वाली भीड़ को चीरते हुए उस बस में चढ़ गए। हमारे चढ़ने के बाद बस में पांव रखने की भी जगह नहीं बची।फिर भी चार-पांच लोग अपनी मेहनत के बलबूते पर बस में अपना स्थान बनाने में कामयाब हो गए।
ठीक ही कहा गया है "मेहनत करने वालों की हार नही होती"।

लगभग 15 मिनट बाद हम जल महल के पास टहल रहे है ।बहुत बड़े झीलनुमा तालाब के बीच में बना हुआ जल महल बहुत ही आकर्षक लग रहा है। इस समय वहां तक जाने की आज्ञा किसी को नहीं है ।हम लोग जल महल के पास बने हुए खुले बाजार में लगभग 15-20 मिनट घूमते रहे और फोटोग्राफी भी चलती रही ।यहां मोंटू जी के मन में जूस पीने की तीव्र कामना जाग उठी।मुझे बोला-

"यार जूस पीते है गन्ने का।"

मैंने कहा-"चलो पी लेते हैं।"

एक जूस वाले को हमने 10 रुपये गिलास के हिसाब से 6 गिलास जूस का आदेश दे दिया।

हमने बाकी साथियों को भी आवाज देकर बुला लिया।अजय और शमशेर भी आकर खड़े हो गए।सबसे पहले मोंटू को जूस का गिलास दिया।ये डिस्पोजल वाला पारदर्शी गिलास था।आधे गिलास में जूस था जबकि बाकी गिलास तो झाग से भर गया था।उसके बाद हम तीनों को गिलास दिए गए जो लगभग पूरे भरे हुए थे।मोंटू ने जूस वाले से शिकायती लहजे में कहा-

"यार ये आधा गिलास तो झाग से भरा हुआ है।"

उधर से जवाब मिला-"ये पी लो और डाल देंगे।"

सभी ने अपना-अपना गिलास खाली कर दिया।उसने मोंटू के गिलास में और जूस डाल दिया।ये देखकर मैंने भी अपना गिलास आगे कर दिया।मुझे देखकर शमशेर ने और फिर अजय ने भी।इधर से अनिल और विनोद भी आ गए।उन्होंने भी 1-1 गिलास जूस पी लिया।
अब आई पैसे देने की बारी।पूछा-

"कितने हुए?"

"4 और 4 आठ,आठ और 2 दस।दस धाएँ सौ।आप 100 रुपये दे दो।"

"यार मेरा गिलास तो आधा था।"

जूस वाले ने मोंटू को आधा गिलास जूस और दे दिया।
"अब पूरे 10 हो गए।"

उसके बाद वापिस कमरे पर पहुंचने का विचार किया। एक ऑटो वाले से सिंधी कैंप चलने की बात की उसने बताया कि आगे जाम लगा हुआ है ।उसने चलने से मना कर दिया उसने बताया कि इस समय यहां से कोई भी ऑटो वाला सिंधी कैंप जाने के लिए तैयार नहीं होगा ।आप लोग एक काम करो यहां से लगभग 10 मिनट चलने के बाद एक चौक आएगा ।वहां तक पैदल चले जाओ। वहां से आपको सिंधी कैंप के लिए ऑटो या कोई अन्य वाहन आसानी से मिल जाएगा ।हम लोग पैदल चलते हुए उस चौक तक पहुंच गए ।चौक पर तैनात कर्मचारी ने हमें बताया कि आपको यहां से सिंधी कैंप के लिए ऑटो मिलना मुश्किल है। क्योंकि आज वर्ष का अंतिम दिन होने की वजह से प्रशासन ने सिंधी कैंप जाने वाले कई रास्ते,ऑटो और सार्वजनिक वाहनों के लिए बंद कर दिए हैं ।उसने बताया कि आप लोग अगले चौक पर चले जाएं वहां से शायद आपको कोई न कोई साधन मिल ही जाएगा।

अगले चौक के लिए चलना शुरू कर दिया।रास्ते में पीछे से 
आता हुआ एक ऑटो हाथ देकर रुकवाया।
पूछा-"सिंधीकैम्प चलोगे?"
"चल पड़ेंगे,कितनी सवारी है?"
"छः"
"दो सौ रुपये लूंगा।"
"थोड़ा जायज लगा यार।"
"200 ही लगेंगे।"
"तू जा भाई हम पैदल ही पहुँच जाएंगे।"
चलते रहे,चलते रहे।पीछे से आते हुए 2-3 ऑटो वालो को रुकवाया।कोई बात नही बनी, दो सौ ही मांग रहे थे।एक डेढ़ सौ तक भी आ गया वो भी ज्यादा लगे।उसको भी छोड़ दिया।
मैं और अनिल बाकियों से थोड़ा आगे चल रहे हैं,अनिल मुझसे मुखातिब होता है-
"संजय,तुझे पता है कोई भी ऑटो वाला हमें सस्ते में ले जाने के लिए तैयार क्यों नही होता?"

"मुझे तो नही पता,तू ही बता भाई।"

"ऑटो वाले हम छः जनों को देख के डर जाते हैं कि 80-80 किलो के हैं,किराया तो 100 रुपये देंगे,अगर पंक्चर हो गया तो 50 रुपये उसके लग जाएंगे,क्या घण्टा बचेगा?"

"अनिल,तेरी बात में दम तो है।ये सोच हो सकती है।"

हम इसी तरह बातें करते हुए आगे चलते जा रहे हैं,तभी एक मोड़ पर एक मोटर रिक्सा नज़र आता है।मैं आवाज लगाता हूँ-

"भाईसाह...ब,सिंधीकैम्प?"

उसने रिक्सा रोक लिया और पूछा- "कितनी सवारी है?"

"छः,कितने लोगे?"

"130 दे देना,बैठ जाओ।"
थोड़ी बहुत बातचीत के बाद वो आदमी 100 रुपये में ले जाने के लिए तैयार हो गया।सभी बैठ गए और रिक्सा चल पड़ा।
अभी चलते हुए 10-12 मिनट हुए हैं।रिक्सा एक भीड़ भाड़ वाली गली से गुजर रहा है।तभी ड्राइवर ने रिक्सा रोक दिया।
हमने पूछा-"क्या हुआ?"

"शायद पंक्चर हो गया है।यहीं पास में ही दुकान है,10 मिनट में लग जाएगा।"

पास में ही एक दुकान पर पंक्चर लगाने का काम शुरू हो गया।हम लोग वहीं खड़े होकर आपस मे बातें करने लग गए।मुझे और अनिल को हंसी आ रही है।वही बात हो गई जो हम सोच रहे थे।

"80-80 किलो के छः नग नतीज़ा पंक्चर।"

शाम के साढ़े 5 बज चुके है।हम लोग होटल में अपने कमरे में आ चुके हैं।साल 2017 को विदाई देने के लिए पार्टी करने का फैसला किया जा चुका है।पार्टी की जाती है और उसके बाद खाना भी खाया जाता है।लगभग 10 बजे के करीब अनिल,शमशेर और टिंकू(विनोद) दूसरे कमरे में चले जाते है।मैं,मोंटू और अजय अपने-अपने बिस्तर पर लेट जाते हैं।कल अजमेर के लिए निकलना है।

इस यात्रा का नाम अजमेर-पुष्कर देने की वजह सिर्फ यही है कि हम लोग ढंग से सिर्फ अजमेर और पुष्कर को ही देख पाए।जयपुर में तो समझो सिर्फ रुके ही थे।



चलते हुए तक गए तब बैठ गए

आमेर किले के आगे बने उद्यान में अजय





आमेर किले में कुलदीप



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2 टिप्‍पणियां:

Pratik Gandhi ने कहा…

हाहाहा भाई फुलटू एडवेंचर पंक्चर भी हो गया...होटल में कॉकरोच तक निकल गए...अब यह घुमक्कड़ी और क्या क्या अनुभव करवाएगी। भाई...

SANDEEP PANWAR ने कहा…

पेंचर करवा कर ही माने, बेचारे को 50 ही बचे होंगे।
यदि आपके पास समय नहीं था तो किसी एक जगह को पूरा देखकर आना था।
जयपुर घूमने में दो दिन चाहिए। फिर एक दिन में काम बन जाता।
होटल का भाडा भी बचता। लगता है दुबारा उसी होटल में जाकर टॉयलेट आदि दोबारा साफ करवा कर मानोगे