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शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

हेमकुंड साहिब यात्रा भाग 7: बद्रीनाथ धाम दर्शन और घर वापसी


बद्रीनाथ मंदिर का आकर्षक दृश्य

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17 जून,2016

सुबह आराम से सो कर उठे।रात को देर तक बरसात होती रही थी।हम लोगों ने अपनी बरसाती वगैरह सूखने के लिए सीढ़ियों के पास टांग दी थी।उठकर सबसे पहले शौच आदि से निवृत हुए उसके बाद जिसे नहाना था वो नहा लिया।मैं नही नहाया क्यों की मैं रात को नहा कर ही सोया था।लगभग साढ़े नौ बजे गुरुद्वारे से अलविदा हुए और ऊपर सड़क पर आ गए जहाँ से हमें हरिद्वार या ऋषिकेश की बस मिलनी थी।आज घर के लिए वापिस लौटना था।बस के मिलने वाली जगह पहुँच कर चर्चा हुई कि यहां से बद्रीनाथ धाम भी नजदीक है क्यों न वहां भी चला जाए।अजय ने स्पष्ट मना कर दिया कि नही जाना।आगे कभी देखेंगे।चलो कोई बात नही आपका आदेश सर आँखों पर।सड़क पर खड़े खड़े कई देर हो गयी।हरिद्वार या ऋषिकेश की कोई बस नही आई।जो भी बस आती बिल्कुल भरी हुई ही आती।एक भाई ने बताया यहां से हरिद्वार और ऋषिकेश के लिए कोई बस बनकर नही चलती।जो भी जाती है वो बद्रीनाथ से ही आती है।

कुछ देर बाद हमें उसकी बात अच्छी तरह समझ आ गई।अजय को भी आ गई।उसके बाद फैसला ये हुआ की हमें जिस भी तरफ का साधन पहले मिलेगा उसी तरफ चल पड़ेंगे।

15-20 मिनट के बाद एक पिकअप आती हुई नजर आई।हमारे इशारा करने ड्राइवर गाडी रोक ली।वो बद्रीनाथ ही जा रहा था।कहने लगा आपको पीछे डिग्गी में खड़ा होना पड़ेगा और मैं गाडी बहुत तेज़ चलाता हूँ।देखलो कभी आप लोगों को दिक्कत हो।हमनें कहा भाई कोई दिक्कत नही है तू बस हमें ले चल।ड्राइवर के साथ एक औरत भी थी जो आगे बैठी थी।
गोविंदघाट से निकलने के बाद तो नज़ारे ही बदल गए।अलग ही तरह के पहाड़ नज़र आ रहे थे।अलकनन्दा भी पहले वाली नही लग रही थी।रास्ते में कई जगह भूस्खलन का असर साफ़ नज़र आ रहा था।ड्राइवर ने गाडी बहुत तेज़ गति से भगा रखी थी।सच पूछो तो बहुत मजा आ रहा था।जब कोई मोड़ आता तो थोड़ा सा डर भी लगता।

गोविंदघाट से बद्रीनाथ लगभग 25 किलोमीटर की दुरी पर है।रास्ते में पांडुकेश्वर,लम्बगढ़ और हनुमान चट्टी नाम की जगहें आई।ड्राइवर ने लगभग पौने घण्टे में हमें बद्रीनाथ बस स्टैंड से लगभग आधा किलोमीटर पहले छोड़ दिया।वहां से हम पैदल बद्रीनाथ मंदिर के लिए चल पड़े।लगभग आधे घण्टे में मंदिर पहूंच गये।बाहर गर्म पानी के स्त्रोत है और साथ ही अलकनन्दा बिल्कुल मंदिर के आगे से बहती है।यहाँ आकर बहुत अच्छा लग रहा था।यहाँ के प्राकृतिक दृश्य देखकर बस यहीं रहने का मन कर रहा था।आसमान को छूते ऊँचे पर्वत अपनी और बुला रहे थे।

मंदिर में ज्यादा भीड़ नही थी।लगभग आधे घण्टे में सभी ने दर्शन कर लिए।मंदिर के अंदर कैमरा प्रयोग करने की अनुमति नही थी।बद्रीनाथ धाम बाहर से देखने पर बहुत खूबसूरत लग रहा था।जो हमनें अब तक तश्वीरों में देखा था वो सच में और सामने देख कर बहुत अच्छा लग रहा था।बहुत से लोग गर्म पानी में नहा रहे थे।नहाने के लिए वहां विशेष स्नानागार बना रखे हैं।

दर्शन के बाद थोड़ी देर बाहर के नजारे लिए और उसके बाद वापिस बस अड्डे की और चल पड़े।बद्रीनाथ से 3 किलोमीटर आगे भारत का अंतिम गाँव माणा है।वो भी देखने का मन था पर समय की कमी को देखते हुए माणा को भविष्य के लिये टाल दिया।बस अड्डे पहुँचते हमें ऋषिकेश के लिए बस मिल गयी।परिचालक महोदय ने बताया कि रात्रि विश्राम श्रीनगर में होगा।कारण पूछने पर उसने बताया कि उत्तराखण्ड में रात को गाडी चलाने पर रोक है।एक बजे के करीब बस चल पड़ी।उन्हीं आकर्षक दृश्यों का आनन्द लेते हुए रात को 9 बजे के करीब श्रीनगर
पहुँच गये।श्रीनगर में 500 रूपये में कमरा मिल गया।खाना खाया और सो गए।सुबह नहा धोकर 5 बजे उस जगह पहुँच गये जहाँ बस मिलनी थी।सवा 5 बजे बस चल पड़ी।तारीख बदल कर 18 जून हो गयी थी।बस ने साढ़े 9 बजे के करीब ऋषिकेश पहुँचा दिया।

ऋषिकेश से बस पकड़ी और हरिद्वार आ गए।हरिद्वार आने के बाद खाना खाया गया।मैंने और अनिल ने यहां थोड़ी से खरीददारी भी की।एक बजे वहां से हमें हिसार के लिए बस मिल गयी।रात 10 बजे के करीब हिसार पहुंचे।और वहां से रेलगाड़ी द्वारा आधी रात को उकलाना पहुँच चुके थे

बद्रीनाथ से आधा किलोमीटर पहले जहाँ हमें गाडी वाले ने उतारा था

थोड़ा दूर से दिखाई देता बद्रीनाथ धाम

विनोद और बद्रीनाथ मंदिर

बद्रीनाथ के प्राकृतिक दृश्य



पाँच मुसाफिर

यात्रा सम्पन्न....

रविवार, 2 जुलाई 2017

हेमकुंड साहिब यात्रा भाग 5:गोविंदघाट से गोविन्दधाम(घांघरिया)

गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब और पवित्र सरोवर

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15 जून,2016

शोर शराबे की वजह से मेरी आंख खुल जाती है लेकिन निंद्रा अभी भी आँखों में तारी है।आखिर हिम्मत करके पूरी आँख खोलता हूँ तो पता चलता है कि सुबह हो चुकी है और लोग बाग़ शौच आदि से निवृत हो रहे हैं।कई लोग तो नहा भी चुके हैं।लगभग 7 बज चुके हैं और सब से अंत में मेरी ही आँख खुली है।अजय नहा कर आ चुका है।अनिल और शमशेर नहाने गये हुए हैं।विनोद शौचालय का सदुपयोग कर रहा है।वैसे हमें कोई ज्यादा जल्दी नही है क्योंकि आज का हमारा लक्ष्य गोविन्दघाट से 13 किलोमीटर दूर गोविंदधाम पहुँचना है।इन 13 किलोमीटर में से 3 किलोमीटर की दुरी जीप द्वारा तय की जानी है जबकि शेष 10 किलोमीटर पैदल यात्रा है।इसलिए हम शाम तक आसानी से गोविंदधाम पहुँच जाएंगे।गोविंदधाम को घांघरिया भी कहा जाता है।

आखिरकार उठने की हिम्मत करता हूँ।हिम्मत-ए-मरदां तो मदद-ए खुदा।सफलता भी मिल ही जाती है।नीचे कई शौचालय बने हुए है।परन्तु सुबह का समय होने के कारण मांग पूर्ति से कहीं ज्यादा है।तभी मेरे सामने वाले शौचालय का दरवाजा खुलता है और मैं घुस जाता हूँ।शौच की इच्छा नहीं है।चलो जोर लगा के देखता हूँ,शायद बात बन जाए।परिणाम शून्य।बात नही बनी।चिंता हुई की कहीं रास्ते में दिक्कत न हो जाए।चलो जो होगा देखा जाएगा।शौचालय में बैठे-बैठे एक महत्वपूर्ण निर्णय भी लिया कि नहाने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं हैं।नहीं नहाऊंगा।

अलकनन्दा के किनारे बसा गोविंदघाट एक खूबसूरत स्थान है।अलकनन्दा इसे और भी खूबसूरत बना देती है।गुरुद्वारा गोविंदघाट भी अलकनन्दा के किनारे ही बना हुआ है।गुरुद्वारे में जहां यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था है वहां से अलकनन्दा काफी आकर्षक नज़र आती है।2013 की विभीषिका में गोविंदघाट में भी बहुत ज्यादा नुकसान हुआ था।गुरुद्वारा तो पूरी तरह नष्ट हो गया था।गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और कारसेवकों ने मिलकर इसे पुनः त्यार किया है।गोविंदघाट हेमकुंड साहिब का आधार स्थल है।यहां बने गुरुद्वारे का हेमकुंड साहिब यात्रा में विशेष योगदान होता है।हेमकुंड जाने वाले लगभग सभी यात्री यात्रा से पूर्व इसी गुरुद्वारे में ठहरते हैं।

यहाँ से हेमकुंड साहिब का सफर 19 किलोमीटर का है।यहां से 4 किलोमीटर पर पुलना नामक जगह है।जहां 3 किलोमीटर तक मोटर मार्ग बन चूका है।इसलिए ये तीन किलोमीटर की दुरी हम जीप या बाइक से तय कर सकते हैं।उसके बाद 5 किलोमीटर चलने पर भयुन्दर नामक जगह आती है और भयुन्दर से आगे 5 किलोमीटर पर आता है गोविंदधाम।यानी गोविंदधाम की गोविंदघाट से दूरी 13 किलोमीटर है।ज्यादातर यात्री पहले दिन गोविंदधाम तक ही यात्रा करते हैं और अगले दिन हेमकुंड साहिब के लिए प्रस्थान करते हैं।

सवा 8 बज चुके हैं।हमनें अपना सामान गुरुद्वारे में जमा करवा दिया है।कल शाम को हमनें एक-एक प्लास्टिक की बरसाती और एक-एक प्लास्टिक के हल्के थैले जिन्हें पिट्ठू बैग की तरह पीछे लटकाया जा सकता है,खरीद लिए थे।मैंने अपने थैले में बरसाती और आंतरिक गर्म कपड़े डाल लिए।इसी प्रकार सभी ने अपनी आवश्यकता की चीजें अपने अपने थैले में डाल ली।हमारे पास रास्ते में खाने के लिए चने थे और सभी ने एक एक बोतल पानी ले लिया।ग्लूकॉन डी भी हम घर से ले कर चले थे।

गुरुद्वारे के साथ लगता ही जीप स्टैंड है जहां से पुलना के लिए जीप मिलती है।हमें जाते ही जीप मिल गई।गुरद्वारे के पास ही अलकनन्दा पर पुल बना हुआ है जिस पर एक बार में एक ही जीप जा सकती है।हेमकुंड साहिब नदी के उस ओर है इसलिए इस पुल को पार करना जरूरी है।जीप ने पुल पार किया और 20-25 मिनट में 4 किलोमीटर दूर स्थित पुलना से 1 किलोमीटर पहले छोड़ दिया।यानी हमारी 3 किलोमीटर की यात्रा सम्पन हो गयी।

गोविन्दघाट की समुंद्रतल से ऊंचाई 1828 मीटर है वहीं पुलना 2058 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।देखा जाए तो जीप का हमे बहुत फायदा हुआ है।यहाँ से 6 किलोमीटर आगे भयुन्दर नामक जगह आएगी।जीप से उतरकर हमने पैदल यात्रा शुरू कर दी।ऊपर से एक नदी नीचे आ रही है जो गोविंदघाट पहुँच कर अलकनन्दा में मिल जाती है।जब हमनें किसी से इसके बारे में पूछा तो पता चला की ये लक्ष्मण गंगा नदी है जो ऊपर हेमकुंड साहिब के पास से ही आती है वहां लक्ष्मण मंदिर बना हुआ है।

पुलना के पास ही हमनें नीचे देखा कि नदी के किनारे एक उजड़ी हुई बस्ती नज़र आ रही है।ये बस्ती 2013 की विभीषिका में बरबाद हो गई थी।खण्डहर गवाही दे रहे है।उन लोगो पर क्या बीती होगी जो उस समय घरों में मौजूद थे।बहुत बुरा हुआ।कल्पना से ही कम्पन होने लगी।

थोड़ा आगे चलने पर पुलना आ गया।यहां कई खाने पीने की दुकानें बनी हुई हैं।यहां थोड़ी देर बैठ गए।थोड़ी देर बाद चल पड़े।कोई खास चढाई नही है।आराम से चल रहे हैं कोई थकान नही है।मैं और अजय साथ साथ है और आगे चल रहे हैं।बाकि तीनों हमसे थोड़ा पीछे चल रहे हैं।

पुलना जहां 2058 मीटर की ऊंचाई पर है वहीं भयुन्दर 2239 मीटर की ऊंचाई पर है।इसका मतलब 5 किलोमीटर के सफर में हमें 181 मीटर चढ़ना है।मतलब भयुन्दर तक कोई खास दिक्कत नही आनी।पुलना से लगभग 2 किलोमीटर चलने के बाद मुख्य रास्ते से एक रास्ता नदी की ओर नीचे उतर रहा था।बहुत से लोग उस रास्ते से जा रहे थे।मैं और अजय भी उसी रास्ते से चल पड़े।नीचे उतरने पर रास्ता नदी के साथ साथ है।बहुत से लोग नदी में मस्ती कर रहे थे।हम भी लग गए।थोड़ा आगे चलने पर चढ़ाई आ गई।चढ़ने में थोड़ा जोर भी लगा।ऊपर जाने पर वापिस मुख्य रास्ता आ गया।200 मीटर भी नही चले होंगे,भयुन्दर भी आ गया।मतलब 3 किलोमीटर नदी के साथ साथ बड़ी जल्दी निकल गए।पता ही नही चला।भयुन्दर में अच्छी दुकानें हैं मगर महंगाई ज्यादा है।हमनें थोड़ी देर भयुन्दर में आराम करने का फैसला कर लिया।अनिल,विनोद और शमशेर पीछे रह गए है।

थोड़ी देर आराम करके आगे बढ़ गए।लगभग 11 बज रहे हैं।भयुन्दर के बाद एक पुल आता है जिसे पर करके आगे बढ़ना होता है।5 किलोमीटर का सफर करके हम घांघरिया पहुँच पाएंगे।घांघरिया 3049 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।मतलब 5 किलोमीटर में हमें 810 मीटर चढ़ना होगा।एक किलोमीटर में 162 मीटर।मतलब घांघरिया तक काफी मुश्किल चढाई है।

पुल पार करने के बाद चढाई वाला रास्ता शुरू हो चुका है।थोड़ी थोड़ी दूरी पर थकान होने लगी है।मैं और अजय साथ चल रहे हैं।रास्ता काफी खूबसूरत है।ऊँचे ऊँचे पहाड़ देखकर काफी अच्छा लग रहा है।लक्ष्मण गंगा भयुन्दर तक दाईं और थी अब बाईं और हमारी विपरीत दिशा में बह रही है।बहुत से यात्री ऊपर जा रहे हैं तो बहुत से नीचे आ रहे हैं।पानी,पानी के साथ ग्लूकॉन डी सफर में सहयोग कर रहे हैं।एक जगह एक दुकान आती है।चाय पी जाती है।फिर आगे बढ़ जाते है।चलते-रुकते,बैठते-उठते आगे बढ़ते हैं।एक ऊपर से आता हुआ मुसाफिर मिलता है हमें ग्लूकॉन डी देता है और बताता है कि 2 किलोमीटर पर घांघरिया है।एक किलोमीटर तक दिक्कत है फिर चढाई खत्म हो जाएगी।होंसला मिलता है।घांघरिया से एक किलोमीटर पहले हेलिपैड आता हैं।यहां 15-15 मिनट में हेलोकॉप्टर उतरता है,सवारियां उतारता है,चढाता है,फिर उड़ान भरता है।हेलिपैड आने के साथ ही चढाई कम हो जाती है।हेलिपैड के सामने यात्रियों के लिए बने एक शेड में बैठ कर हमनें थोड़ी देर आराम किया।फिर चल पड़े।बाकी तीनों अभी भी पीछे है।ये नहीं पता कितने पीछे हैं।
लगभग 20 मिनट बाद हम गुरद्वारे में पहुँच चुके हैं।लगभग 2 बज चूके हैं।रहने की आज्ञा ली गई।भोजन किया गया।फिर इधर उधर विचरण किया।

कई देर तक उन तीनों का इंतजार किया।फिर मैंने अजय से कहा चल थोड़ी दूर वापिस चलते हैं क्या पता वो आते हुए मिल जाएं।उनकी खोज में हम वापिस उसी हेलीपेड के सामने वाले शेड के पास पहुँच गये।हेलीकॉप्टर उतरते और उड़ते हुए देखने लगे।वो लोग नही आए।

मौसम खराब होने लगा है।चारों और कोहरा छाने लगा है
।इतना कोहरा छा गया कि पहाड़ दिखने बन्द हो गए।थोड़ी ही देर में जबरदस्त बरसात शुरू हो गयी।हम लोगों ने शेड में शरण ली।और भी बहुत से लोग शेड के नीचे आ गए।लगभग आधा घण्टा बरसात होती रही।ठण्ड भी लगने लगी।मैंने गर्म बनियान और गर्म पायजामा पहन लिया।ठण्ड कम हुई।बरसात थोड़ी कम हुई तो सामने सफ़ेद रंग की बरसाती पहनें तीन लोग दिखाई दिए।एक ने हमारी और हाथ हिलाया।खुशी हुई चलो आ तो गये।शमशेर को चलने में थोड़ी दिक्कत है इसलिए हमें डर था कभी ये लोग वापिस न चल दिए हो।

घांघरिया गुरूद्वारे पहुंचे।तीनों ने भी पेट पूजा की।उसके बाद थोड़ी देर इधर उधर विचरण किया।मैंने और अजय ने गुरुद्वारे में बने शौचालयों की सेवा भी ली।रात को सोने से पहले ये निर्णय लिया गया कि शमशेर के लिए ऊपर चढ़ना काफी मुश्किल है अतः शमशेर ऊपर नही जाएगा वो वापिस गोविंदघाट चल कर गुरुद्वारे में ठहर जाएगा।और शेष चारों सुबह जल्दी उठकर चढाई शुरू करेंगे।रात को घांघरिया में सर्दी काफी बढ़ गई।हम रात को घांघरिया गुरूद्वारे में ऊपर बने हॉल में सोए।


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मंगलवार, 27 जून 2017

हेमकुंड साहिब यात्रा भाग 4: ऋषिकेश से गोविन्द घाट

अलकनन्दा का एक दृश्य

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14 जून,2016


सुबह नहा-धो कर सभी पौने पाँच के बजे क़रीब बस अड्डे पहुँच गये।वहां बहुत सी बसें खड़ी थीं।कोई गंगोत्री जा रही थी तो कोई यमुनोत्री।कोई बद्रीनाथ तो कोई केदारनाथ।सब से पहले हमनें अपने वाली बस की खोज की एवं तत्पश्चात चाय पी गई।जब चाय पीने के बाद हम बस में पहुंचे तो हमारी दो सीटों पर कोई और महानुभाव बैठे मिले।उनसे कहा गया कि भाई आप लोग गलत जगह बैठ गए हैं ये सीट हमारी है तो उन्होंने अपनी टिकट निकाल कर दिखा दी।उनकी टिकट पर वही संख्या दर्ज थी जो हमारी टिकट पर थी।परिचालक से इसकी शिकायत की गई तो जवाब मिला आप दूसरी सीट पर बैठ जाओ।ज़िरह बाजी हुई।गुस्सा भी बहुत आया।नतीजा सिफ़र।

साढ़े पाँच बजे बस चल पड़ी।लक्ष्मण झूले वाले रास्ते से ही बस चल रही थी।आबादी से निकलने के साथ ही पहाड़ी मार्ग शुरू हो गया।जंगल शुरू हो गए।मजा आने लगा।
अजय खिड़की वाली सीट पर बैठा है और मैं अजय के साथ वाली पर।अनिल खिड़की वाली सीट पर है और विनोद अनिल के साथ वाली पर।शमशेर को ड्राइवर के केबिन में सीट मिल गई है।बस में सभी सीटें 2 सीटों वाली हैं।मैं सोच रहा हूँ अजय मुझे खिड़की वाली सीट पे बैठने देगा या नही।अगर देगा तो कब।

ये बस बद्रीनाथ जा रही है और हेमकुंड साहिब का आधार स्थल गोविंदघाट उसी रास्ते पर बद्रीनाथ से लगभग 25-30 किलोमीटर पहले है।इसलिए इस बस में हेमकुंड साहिब और बद्रीनाथ दोनों के यात्री विराजमान है।इस रास्ते में देवप्रयाग,श्रीनगर,रुद्रप्रयाग,कर्णप्रयाग और जोशीमठ जैसे महत्वपूर्ण स्थल पड़ते हैं।देवप्रयाग ऋषिकेश से लगभग 70 किलोमीटर दुरी पर है।सम्पूर्ण रास्ता पहाड़ी है।
लगभग डेढ़ घण्टे चलने के बाद बस ऋषिकेश और देवप्रयाग के बीच कहीं रुकती है।यहाँ कुछ होटल और दुकानें बनी हुई हैं।यहाँ चाय पी गई और 1-2 दोस्तों को छोड़ कर सभी ने 1-परांठा भी खाया।भुना हुआ मक्का मिल रहा था उसका स्वाद भी चख कर देखा गया।यहां से पर्वतों के नजारे बहुत शानदार दिख रहे हैं।घाटियों की गहराई भी मन को प्रसन्न कर रही है।15 मिनट बाद बस चल पड़ी।
अलकनन्दा सड़क के साथ-साथ चल रही है।शायद हमारा दूर तक का साथ है।लगभग 1 घण्टे बाद बस देवप्रयाग पहुँचती है।समुन्द्रतल से 830 मीटर ऊंचाई पर बसा ये सुन्दर शहर अलकनन्दा और भागीरथी नदियों का संगम स्थल है।बस से हम संगम को ढंग से नही देख पाए।यहीं से अलकनन्दा नदी गंगा कहलाने लगती है।

बस देवप्रयाग से निकल चुकी है।इस समय मैं खिड़की वाली सीट पर बैठा हूँ।रास्ते में आने वाले प्राकृतिक दृश्य मन को भाव विभोर कर रहे हैं।जलेबी की तरह बने सीधे मार्ग आन्तरिक रोमांच बढा रहे हैं।कभी बस ऊंचाई की और बढ़ती है तो कभी ढलान से नीचे उतरती है।दूर तक ऊंचाइयों पर फैले जंगल,दूर से नज़र आता कोई झरना या कहीं दूर किसी पहाड़ पर बसा कोई गाँव देखकर वहां तक जाने की कल्पना करता हूँ।
इन पहाड़ी रास्तों और हमारे जीवन के बीच संबद्ध खोजने की कोशिश करता हूँ।हमारा जीवन भी इन रास्तों की तरह ही है कभी हम आगे बढ़ते है तो कभी पीछे रह जाते है।हमारा परिश्रम कभी हमें ऊपर ले जाता है तो कभी कोई चूक नीचे ले आती है।इन घुमावदार रास्तों की तरह हमारा जीवन भी घुमावदार है।तभी कोई झटका लगता है और मैं यथार्थ में प्रवेश करता हूँ।अजय को नींद आ रही है।जैसे ही बस किसी मोड़ पर घूमती है एक बार नींद टूट जाती है फिर आ जाती है।
बस श्रीनगर से गुजर रही है।अजय जाग चुका है।श्रीनगर एक बड़ा गढ़वाली शहर है।इसकी समुन्द्रतल से ऊंचाई लगभग 990 मीटर है।
रुद्रप्रयाग भी आ चुका है।समय की और ध्यान नहीं है।
लगभग 900 मीटर ऊंचाई पर बसा ये गढ़वाली नगर अलकनन्दा और मंदाकिनी नदियों का संगम स्थल है।
अगला पड़ाव कर्णप्रयाग है।कर्णप्रयाग लगभग साढ़े चौदह सौ मीटर ऊंचाई पर स्थित एक सुंदर शहर है।ये अलकनन्दा और पिंडर नदियों का संगम स्थल है।यहाँ पर बस जलपान के लिए लगभग आधा घण्टा रूकती है।सभी ने खाना खाया।फोटो भी खींची गई।
आगे जोशीमठ आया।लगभग 2045 मीटर ऊंचाई पर बसा ये शहर मुझे बहुत अच्छा लगा।बस जोशीमठ से नीचे उतरती है।थोड़ा चलने पर विष्णुप्रयाग आता है।यहां धौली गंगा और अलकनन्दा का संगम होता है।यहां एक पन बिजली परियोजना चल रही है जिसकी इमारतें रास्ते से नज़र आती हैं।वैसे प्रयाग का दूसरा अर्थ संगम ही होता है।जिस भी शहर के साथ प्रयाग लगा है समझ लो वहां किसी न किसी नदी का संगम ही है।

किसी ने ठीक ही कहा है कि पहाड़ों में दूरियां किलोमीटर में नहीं घंटो में मापी जाती है।ऋषिकेश से गोविंदघाट तक का लगभग 280 किलोमीटर का सफर तय करने में बस ने
लगभग 11 घण्टे लगा दिए।

लगभग छः बजे के करीब बस ने हमें गोविन्दघाट उतार दिया।अलकनन्दा नदी के किनारे बसा और चारों और ऊँचे-ऊँचे पर्वतों से घिरा ये शहर वास्तव में शानदार दृश्य पेश करता है।यहां बहुत से होटल हैं,दुकानें हैं और एक गुरुद्वारा है जहाँ हेमकुंड जाने वाली यात्रियों के ठहरने का अच्छा प्रबंध है।सबसे पहले हम गुरूद्वारे में गये।वहाँ हमें ऊपर बने एक हॉल में ठहरने के लिए जगह दे दी गई।हॉल में हमें तीन गद्दे सोने के लिए मिले।हमनें वहां अपना सामान रखा और नीचे अलकनन्दा के किनारे आ गए।यहां हमनें नदी में कई देर तक मस्ती की।नदी के किनारे 2013 की त्रास्दी की चिह्न स्पष्ट नज़र आ रहे थे।देख कर स्पष्ट पता चल रहा था कि उस समय कितनी विकराल विनाश लीला हुई होगी।अँधेरा होने लगा था।वापिस गुरुद्वारे पहुंचे।माथा टेका।भोजन किया और अपने स्थान पर सोने चले गए।अलकनन्दा के बहने की आवाज यहां तक बिल्कुल साफ आ रही थी।
सुबह गोविंदधाम(घांघरिया) पहुंचना है.....


गोविंदघाट:अलकनन्दा नदी

अलकनन्द और शमशेर का प्रेम

अलकनन्दा के किनारे दो दोस्त

अनिल हिमालय की गोद में

जय अलकनन्दा


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