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शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

यमुनोत्री से गंगोत्री 4: यमुनोत्री

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यमुनोत्री मन्दिर परिसर में पांचो

जहां जानकीचट्टी 2650 मीटर की ऊंचाई पर है वहीं यमुनोत्री मन्दिर 3235 की ऊंचाई पर स्थित है।इन दोनों के बीच की दूरी लगभग छः किलोमीटर है।यानी हमें 6 किलोमीटर में लगभग 600 मीटर की चढ़ाई करनी है।जो अपने आप में मुश्किल चढाई की श्रेणी में आती है।

हमने एक ढांबे पर चाय पी कर यात्रा की शुरुआत कर दी।शुरू शुरू में रास्ता ज्यादा मुश्किल नहीं है।इस रास्ते पर पत्थरों से सीढिया बनाई गई है जिन पर चढ़ने ने थकान जल्दी होती है।लेकिन रास्ता जितना मुश्किल है रास्ते की सुंदरता उतनी ही ज्यादा है।आसमान छूते पहाड़ों के बीच से जब गुजरते हैं तो लगता है कि इस संसार में अगर वास्तविक सुख है तो वो इन पहाड़ों में ही है।

चांदीराम सबसे ज्यादा उत्साह में लग रहा है।उसको लगता है कि अब वो समय आ गया है जब वो अपनी फिटनेस की ताकत सभी को दिखा सकता है।अगर शारीरिक बनावट के हिसाब से मूल्यांकन किया जाए तो हम पांचो में सबसे कमजोर और हल्का चांदीराम ही है।चांदीराम की इसी कमजोरी का हमेशा मजाक बनाया जाता है। आज चांदीराम का यही हल्कापन चांदीराम के अंदर जोश का संचार किये हुए है।वैसे चाँदीराम को सिर्फ एक ही आदमी से एलर्जी है और वो आदमी बदकिस्मती से मैं हूँ।चांदीराम का हर मुकाबला मुझ से ही होता है।

यात्रा के तीन किलोमीटर तो ठीक ठाक निकल गए।लेकिन जैसे जैसे आगे बढ़ रहे हैं।रास्ता वैसे ही मुश्किल होता जा रहा है।आधे रास्ते पर एक बार फिर से चाय पी गयी।अभी तक कि यात्रा का हिसाब किताब देखें तो अनिल और कालुराम सही हालत में है और सबसे आगे चल रहे हैं।बाकी चांदीराम, मैं और राजेंद्र एक साथ चल रहे हैं।कुल मिलाकर चांदीराम खुश है।उसके खुश होने का एक ही महत्वपूर्ण कारण होता है।वो है मेरा दुःखी होना।लेकिन वो सिर्फ इस एक कारण से खुश नही है।आनिल ने चांदीराम को बताया है कि हम यमुनोत्री के बाद गंगोत्री और उसके बाद केदारनाथ जाएंगे।जिससे चारधाम यात्रा के नियमों का पालन भी हो जाएगा चांदीराम को अनिल पर उतना ही यकीन है जितना यकीन महाभारत में युधिष्ठिर के सच बोलने पर गुरुद्रोणाचार्य को था।चांदीराम अनिल की हर बात को पत्थर की लकीर मानता है।
यमुनोत्री मार्ग पर एक लोहे का पुल

खड़े खड़े आराम करते हुए

रास्ते में खूबसूरत नजारा


बुधवार, 22 अप्रैल 2020

यमुनोत्री से गंगोत्री 3: बड़कोट से जानकीचट्टी की ओर

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यमुनोत्री में अनिल की साधना

बड़कोट

लगभग 1300 मीटर की ऊंचाई पर यमुना किनारे बसा बड़कोट एक ठेठ पहाड़ी कस्बा है।यहां यात्रियों के ठहरने और खाने के लिए बहुत से होटल और गेस्ट हाउस बने हुए हैं।बड़कोट से एक रास्ता जानकीचट्टी जाता है तथा एक रास्ता धरासू बेंड जाता है।जानकीचट्टी यमुनोत्री का बेस कैम्प है जहां से यमुनोत्री के लिए चढाई शुरू होती है।जानकीचट्टी की बड़कोट से दूरी लगभग 45 किलोमीटर है।यहां से दिन में 2-3 बस भी जानकीचट्टी जाती है जिनके जाने का निश्चित समय है।बस के अलावा छोटी गाड़ियां जैसे सूमो,मैक्स,क्रूजर भी अच्छी संख्या में यात्रियों को लेकर जानकीचट्टी जाती है।जो शेयरिंग में आसानी से मिल जाती है।

बड़कोट पहुंचते ही सबसे पहले निर्णय लिया गया कि कोई ढंग का होटल देखकर खाना खाया जाए।एक होटल पर खाना खाने के बाद होटल वाले से पूछा कि जानकीचट्टी के लिए बस के बारे में पूछा।होटल वाले ने बताया कि बस तो 2 घण्टे बाद है।अगर आप बस में जाओगे तो लेट हो जाओगे।इसी रास्ते पर थोड़ा आगे जाने पर एक पुल आएगा उसे पार करते ही टैक्सी स्टैंड है वहां चले जाओ।आपको वहां तुरन्त कोई छोटा साधन मिल जाएगा।उसने ये भी बताया कि अगर आप एक-डेढ़ बजे तक जानकीचट्टी पहुंच जाते हो तो आज ही यमुनोत्री जाकर वापिस आ सकते हो।और ये भी सम्भव है कि आपको बड़कोट का साधन भी मिल जाए।उसने अपना फोन नम्बर भी दिया और कहा कि अगर आप बड़कोट लेट पहुंचे तो शायद आपको कोई होटल खुला ना मिले।आप मुझसे फोन पे बात कर लेना मैं आपको यहां कमरा दे दूंगा।

खैर बड़कोट से हमें जानकीचट्टी के लिए एक गाड़ी मिल गयी और कुछ देर बाद हम जानकीचट्टी वाले रास्ते पर पर्वतों के मनमोहक दृश्यों को निहार रहे थे।जैसे जैसे गाड़ी आगे बढ़ रही थी नज़ारे और भी खूबसूरत होते जा रहे थे।दूर पहाड़ों की बर्फ से सफेद हुई चोटियां बहुत अच्छा अहसास करवा रही थी।वैसे भी मेरे लिए मंजिल से ज्यादा रास्ते मायने रखते हैं।लगभग 10 किलोमीटर चलने के बाद अचानक गाड़ी की चाल कम हो गयी।ड्राइवर ने थोड़ा आगे चलकर गाड़ी रोक ली।पता चला कि गाड़ी में कोई समस्या हो गयी है।ड्राइवर ने सभी सवारियों से कहा कि मैं आपको दूसरी गाड़ी में बैठा दूंगा क्यों कि मुझे नहीं लगता कि इस गाड़ी से हम जानकीचट्टी पहुंच पाएंगे।तभी एक गाड़ी विपरीत दिशा से आती दिखाई दी।ड्राइवर ने वो गाड़ी रुकवा ली उसमें बस 2-3 ही सवारी थी।ड्राइवर ने उससे बात की कि तू मेरी सवारियों को जानकीचट्टी ले जा और मैं तेरी सवारियों को लेकर बड़कोट चला जाऊंगा।ड्राइवर ने दूसरी गाड़ी के ड्राइवर को अपनी समस्या अच्छे से समझा दी।लेकिन दूसरे ड्राइवर की भी अपनी कोई समस्या थी जिसके चलते बात परवान नहीं चढ़ी।तभी अनिल का ध्यान गाड़ी की छत पर गया।चांदीराम गाड़ी की छत से हमारी बैग नीचे उतार रहा था।

"चांदीराम,बैग क्यों उतार रहा है?"-अनिल ने चांदीराम को आवाज देते हुए पूछा।

"जब दूसरी गाड़ी में जाना है तो बैग तो उतारनी पड़ेगी।"-चांदीराम ने जवाब देते हुए कहा।

"तू एक काम कर नीचे आजा।एक बार बात तो बनने दे दूसरी गाड़ी वाले के साथ।"-राजेन्द्र प्यार से चांदीराम को कह रहा था।

लेकिन चांदीराम नीचे तभी उतरा जब निश्चित हो गया कि अब यही गाड़ी धीरे धीरे चलते हुए जानकीचट्टी जाएगी।

ड्राइवर की कोशिश कामयाब नहीं हो पाई थी और अंत में ड्राइवर ने गाड़ी के चलने का कोई जुगाड़ कर लिया था।हर 4-5 किलोमीटर बाद जुगाड़ सेट करना पड़ता था।इस तरह जुगाड़ को सेट करते करते गाड़ी जानकीचट्टी की तरफ बढ़ती रही।

इस रास्ते पर कई चट्टियाँ आती हैं जैसे स्यानचट्टी,रानाचट्टी,हनुमानचट्टी और सबसे आखिर में आती है जानकीचट्टी।ये सभी इस रास्ते पर आने वाले गांव के नाम है।जानकीचट्टी से 5-6 किलोमीटर पहले आती है हनुमानचट्टी।कुछ साल पहले जब जानकीचट्टी तक सड़क नहीं बनी थी तब यहीं से यमुनोत्री के लिए पैदल मार्ग शुरू होता था।जैसे जैसे हम जानकीचट्टी की तरफ बढ़ते जाते हैं ऊंचाई भी बढ़ती जाती है और उसी अनुपात में प्राकृतिक सुंदरता भी।

खैर हम लोग लगभग एक बजे के करीब जानकीचट्टी पहुंच गए।यहां पहुंचते ही सबसे पहले मेरे लिए जरूरी था कोई नाई की दुकान देखना ताकि जब रास्ते मे फ़ोटो खींची जाए तो फ़ोटो ढंग की आए ना आये थोबड़ा तो ठीक आ ही जाए।जब मैंने सेव करने के अपनी आधिकारिक निर्णय के बारे में सभी को बताया तो किसी ने कोई एतराज नही किया।एक आदमी को एतराज था लेकिन उसने मुंह से नहीं कहा।उसे मुंह से कहने की जरूरत भी नहीं थी उसका चेहरा सब कुछ बता रहा था।

खैर जल्द ही मेरी सेव हो चुकी थी।तब तक सभी फैसला ले चुके थे कि चढाई आज ही शुरू करेंगे और आज ही वापिस आएंगे।एक होटल पर बैग रख दिये गए।होटल चलाने वाली एक औरत थी।जब अनिल ने उससे पूछा कि बैग रखने के लिए क्या कुछ लोगी तो उसका जवाब था कि जो आपका मन करे दे देना।

अब बारी थी यात्रा शुरू करने की।

बड़कोट होटल के पीछे का दृश्य

बड़कोट होटल के पीछे

रास्ते में बहती यमुना


चांदीराम गाड़ी की छत पर

पहाड़ो की चोटियों पर बर्फ

सेव करवाने के बाद



यात्रा की शुरुआत चाय पीकर


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मंगलवार, 19 नवंबर 2019

यमुनोत्री से गंगोत्री 1: विकासनगर की रात

जितना जरूरी धरती के लिए सूर्य के चारों ओर चक्कर काटना है और जितना जरूरी इस सृष्टि के लिए दिन और रात का बनना है।शायद उतना ही जरूरी चांदी राम के लिए केदार नाथ जाना है।चांदी राम को कई दिनों से लगने लगा है कि अगर वो इस जीवन में केदारनाथ नहीं जा पाया तो उसका इस धरती पे आना व्यर्थ हो जाएगा।
मई 2019 की एक शाम-

विनोद के प्रधानमंत्री जनऔषधालय में बैठे बैठे चांदीराम ने धरती पे अवतरित होने का अपना  मकसद अनिल को बताया।

'तैयारी कर ले अगले महीने चलना है'-अनिल ने चांदी राम का मनोबल बढाते हुए कहा।

'पक्का चलेंगे?'-शायद चांदीराम को अनिल की बात पे यकीन नहीं हुआ।

'चांदीराम तन यार अनिल की बात प यकीन कोनी, क्या आजतक ईसा होया ह के अनिल कोई बात कही हो और वो ना होई हो,तू तयारी कर आगले महीने चालना ह तो चालना ह बस'-विनोद ने अनिल की बात पर आधिकारिक मोहर लगाते हुए चांदीराम को भरोसा दिलाया।

जून 2019 का नौवां दिन-

रात के साढ़े 9 बजे के करीब विकास नगर काफी शांत लग रहा है।इस शहर की शांति के अलावा भी कुछ कारण हैं जिनकी वजह से ये शहर मुझे अच्छा लगा है।अभी उन पर चर्चा करना ठीक नहीं लग रहा।खैर! फिलहाल मैं और अनिल होटल से निकल कर बाहर आ गए हैं।हमें एक ठेके की तालाश है वो भी अंग्रेजी ठेके की।बाहर एक ढाबे पे काम करने वाले छोटू टाइप बच्चे ने हमें ना केवल ठेके का रास्ता बता दिया है बल्कि हाथ के इशारे से दिखा भी दिया है कि वही वो ठेका है जिसकी आपको तालाश है।हमें तालाश जरूर है लेकिन अगर यहां ठेका ना भी होता तो भी हमें कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ना था।जिन लोगों को फर्क पड़ना है वो लोग होटल में बैठे हैं और वो लोग हमारे वापिस आने की प्रतीक्षा उसी बेसब्री से कर रहें हैं जिस बेसब्री से गोपियां श्रीकृष्ण के आने की प्रतीक्षा करती थीं।

कुछ ही देर हम दोनों ठेके के जंगले के पास 
खड़े थे।अनिल ने एक विशेषज्ञ की तरह ठेके वाले से कुछ देर बात की उसके बाद सामान लिया,पैसे दिए और मुझे वापिस चलने का आदेश दे दिया।

'नमकीन में क्या कुछ लेना ठीक रहेगा'-चलते चलते अनिल ने मुझसे सुझाव मांगा।

'एक सब्जी ले लेते हैं,2-3 पैकेट मूंग की दाल ले लेंगे,एक आधा कोई और आइटम देख लेंगे'-मैनें गंभीरता से एक बहुमूल्य सुझाव अनिल के सामने पेल दिया।

यहां मेरा सुझाव बस उतना ही महत्व रखता था जितना महत्व कांग्रेस राज में राजमाता  के समक्ष मनमोहन के विचारों का होता था।फैसला तो अनिल हमेशा ले ही चुका होता है बस राय लेने का एक मात्र कारण यही होता है कि सभी को यही लगे कि सबकुछ लोकतांत्रिक तरीके से हो रहा है।वही लोकतंत्र जो आपातकाल के समय इंदिरा गांधी की जनसभाओं में सुनने को मिलता था।होटल में पहुंचने से पहले अनिल ने नमकीन सहित सारा जरूरी सामान खरीद लिया और हमने होटल की ओर कूच किया।

कमरे में 3 लोग हमारा इंतजार कर रहे हैं उनमें से पहले नम्बर पर चांदीराम जी हैं जो किसी परिचय के मोहताज नहीं है।दूसरे साथी है राजेन्द्र पात्तड़ और तीसरे नम्बर पर आते हैं कालूराम।चांदीराम आजकल विनोद का प्रधानमंत्री जन औषधालय सम्भाल रहे हैं।राजेन्द्र और कालूराम निजी स्कूलों में अध्यापन कर रहे हैं।राजेन्द्र उकलाना के एक प्राइवेट स्कूल में है जबकि कालूराम हाँसी में एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल के बच्चों का सामाजिक विज्ञान पढ़ाता है।कालूराम ने मेरे और अनिल के साथ पूर्व मल्टीमीडिया काल में बीएड की थी।तभी से हमारा याराना बरकरार है।

हमारे होटल के बाहर एक मिनी बस खड़ी है जो सुबह हमें बड़कोट लेकर जाएगी।बस के चलने का समय साढ़े 5 बजे का है।हमारी मुलाकात बस के ड्राइवर और कंडक्टर से नहीं हुई है।होटल के बाहर एक-दो होटल और हैं जो सिर्फ खाने के लिए हैं उन्ही होटल के लोगों द्वारा हमें ये जानकारी मिली है।हमें ये भी पता चल गया है कि हमें पहले सीट बुक करवानी की आवश्यकता नहीं है।बस में प्रायः आसानी से सीट मिल जाती हैं।हम लोग सुबह उकलाना से चले थे।छुटमलपुर तक हरियाणा रोडवेज में आये।उसके बाद देहरादून तक एक निजी वाहन में।देहरादून में एक ऑटो वाले का सुझाव मानकर हम लोग विकास नगर पहुंचे।ऑटो वाले ने बताया था कि वहां सुबह जल्दी ही यमुनोत्री के लिए साधन मिलना शुरू हो जाते हैं।वहां होटल भी देहरादून की उपेक्षा बहुत सस्ते मिल जाएंगे।ऑटो वाले की बात काफी हद तक सही निकली।

हमारे कमरे पर पहुंचते ही सभी के चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान घर कर गयी।ये मुस्कान उस सामान के कारण थी जो हमारे हाथ में था।
इस कमरे में 2 कमरे एक साथ मिले हुए थे।एक कमरे में 3 बेड थे तथा दूसरे में 2 बेड।दोनों कमरों को जोड़ने वाला बीच में एक दरवाजा था।हमें ये कमरा मात्र 500 रुपये में आसानी से मिल गया था।साफ सफाई भी एक नम्बर की थी।चांदीराम के लिए ये भी खुश होने के कारणों में से एक था।

कार्यक्रम शुरू होने से पहले राजेन्द्र ने कहा-"कल के कार्यक्रम की रूपरेखा बता दी जाए तो ठीक रहेगा।फिर उसी हिसाब से सुबह नहाना धोना कर लेंगे।"

"भाइयों को सारी डिटेल बता दे अच्छी तरह"- अनिल ने मुझे इशारा करते हुए कहा।

"कल बाहर खड़ी बस साढ़े 5 बजे चलेगी।इस बस द्वारा हम बड़कोट पहुंचेंगे।उसके बाद यमुनोत्री और अगले दिन गंगोत्री के लिए प्रस्थान करेंगे।सभी को सुबह 4 बजे उठना है और तैयारी करनी है।"-मैंने कम शब्दों पूरी बात बता दी।

"केदारनाथ कब जाएंगे?"चांदीराम प्रश्नवाचक नज़रों से सभी को ताक रहा था।

"गंगोत्री के बाद केदारनाथ तो चलना ही है"-अनिल ने चांदीराम की शंका का समाधान करते हुए कहा।

चांदीराम के कलेजे में ठंडक पड़ते ही कालूराम ने अपने हाथों से पैक बनाते हुए कार्यक्रम का शुभारम्भ कर दिया।साथ ही एक हिदायत भी दे कि उतनी ही लेना जितनी ओट सको।

साथ ही अनिल ने फतवा जारी करते हुए कहा-"जितनी पीनी हो पी लेना आगे चारधाम यात्रा शुरू हो जाएगी।कोई नही पिएगा।"

ये बात सुनते ही राजेन्द्र और कालूराम को सांप सूंघ गया जैसे उनका अपनी प्रेयसी से ब्रेकअप हो गया हो।दोनों ने कातर नज़रों से मेरी तरफ देखा।

"चिंता मत करो,सब ठीक होगा।इत्मीनान रखो"-मैंने उनको विश्वास दिलाते हुए कहा।

मेरी बात सुनकर दोनों की जान में जान आयी।इधर मैं सोच रहा हूँ चलनी तो अनिल की ही है पर आश्वासन से किसी को खुशी मिलती है तो अपना क्या जाना है।

सभी 2-2 पैक ले चुके हैं और मैंने घोषणा कर दी है कि अब मेरी और लेने की आसंग नहीं है।

"तुझसे यही उम्मीद थी।खत्म हो चुका है अब तू।महफ़िल में बैठने के लायक नहीं रहा।"-चांदी राम ने मुझ पर कटाक्ष करते हुए कहा।

"चांदीराम की बात से मैं हंडर्ड प्रतिशत सहमत हूं।बामण कोई काम गा कोनी रया ईब।"-कालूराम ने चांदीराम का साथ देते हुए कहा।

कुल मिला कर मुझे तीसरा पैक लेने के लिए मजबूर कर दिया गया है।ये अहसान करते हुए की छोटा सा बनाया है,तीसरा पैक पकड़ा दिया गया।उधर चांदीराम ऐसे खुश है जैसे उसने कोई राष्ट्रहित का काम कर दिया हो।

3 पैक अंदर जाने के बाद चांदीराम के चेहरे पर अलग ही भाव नज़र आने लगे हैं।मैं लेट गया हूँ।मुझे छोड़कर सभी गहन मन्त्रणा में व्यस्त हैं।कालूराम कह रहा है कि आज बहुत अच्छा लग रहा है काफी समय बाद दोस्तों से मिला हूँ।इधर अनिल कुछ कह रहा है।राजेन्द्र कुछ कह रहा है।बातों की खिचड़ी पक रही है।

मैं अर्धनिंद्रा में लेटा हुआ हूँ।शायद उन लोगों ने चौथा पैक बना लिया है।ऐसा मुझे कुछ कुछ अहसास होता है।उनकी बातें लगातार जारी हैं।

"पहले हम केदारनाथ ही जाएंगे।"-जोर से आवाज आई।

मैं चमक गया लगा कोई आकाशवाणी हुई है।मैं उठ गया और सभी की तरफ देखा।चांदीराम का चेहरा आवेश में तमतमा रहा था।चांदीराम की नजरें अनिल की ओर थी।मुझे लगा अगर चांदीराम ने अपनी नज़रे कुछ समय तक इसी तरह अनिल की तरफ गड़ाए रखी तो अनिल भस्म हो जाएगा।कालूराम और राजेंद्र भी एक पल के लिए मानो पत्थर बन गए थे।चांदीराम के अंदर का विश्वामित्र बाहर आ चुका था।अनिल ने मौके की नज़ाक़त को भांपते हुए हथियार डाल दिये और कहा-"पहले केदारनाथ ही चलेंगे।"

इससे भी शायद चांदीराम को यकीन नहीं हुआ और उसकी स्थिति टस से मस नहीं हुई।

अनिल ने मुझे आदेश देते हुए कहा-"कार्यक्रम कुछ इस प्रकार बना कि पहले केदारनाथ आये और यमुनोत्री-गंगोत्री बाद में।"

मैंने कहा ऐसा ही होगा।

चांदीराम इतना सुनने के बाद शांत होने लगा।अनिल ने अगला फरमान सुनाया-"जल्दी से लास्ट पैक बनाओ और सो जाओ सुबह जल्दी उठना है।"

अनिल चांदीराम से कोई पंगा नहीं लेना चाहता था।


यात्रा में चलने से पहले विनोद के मेडिकल के आगे

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शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

हेमकुंड साहिब यात्रा भाग 7: बद्रीनाथ धाम दर्शन और घर वापसी


बद्रीनाथ मंदिर का आकर्षक दृश्य

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17 जून,2016

सुबह आराम से सो कर उठे।रात को देर तक बरसात होती रही थी।हम लोगों ने अपनी बरसाती वगैरह सूखने के लिए सीढ़ियों के पास टांग दी थी।उठकर सबसे पहले शौच आदि से निवृत हुए उसके बाद जिसे नहाना था वो नहा लिया।मैं नही नहाया क्यों की मैं रात को नहा कर ही सोया था।लगभग साढ़े नौ बजे गुरुद्वारे से अलविदा हुए और ऊपर सड़क पर आ गए जहाँ से हमें हरिद्वार या ऋषिकेश की बस मिलनी थी।आज घर के लिए वापिस लौटना था।बस के मिलने वाली जगह पहुँच कर चर्चा हुई कि यहां से बद्रीनाथ धाम भी नजदीक है क्यों न वहां भी चला जाए।अजय ने स्पष्ट मना कर दिया कि नही जाना।आगे कभी देखेंगे।चलो कोई बात नही आपका आदेश सर आँखों पर।सड़क पर खड़े खड़े कई देर हो गयी।हरिद्वार या ऋषिकेश की कोई बस नही आई।जो भी बस आती बिल्कुल भरी हुई ही आती।एक भाई ने बताया यहां से हरिद्वार और ऋषिकेश के लिए कोई बस बनकर नही चलती।जो भी जाती है वो बद्रीनाथ से ही आती है।

कुछ देर बाद हमें उसकी बात अच्छी तरह समझ आ गई।अजय को भी आ गई।उसके बाद फैसला ये हुआ की हमें जिस भी तरफ का साधन पहले मिलेगा उसी तरफ चल पड़ेंगे।

15-20 मिनट के बाद एक पिकअप आती हुई नजर आई।हमारे इशारा करने ड्राइवर गाडी रोक ली।वो बद्रीनाथ ही जा रहा था।कहने लगा आपको पीछे डिग्गी में खड़ा होना पड़ेगा और मैं गाडी बहुत तेज़ चलाता हूँ।देखलो कभी आप लोगों को दिक्कत हो।हमनें कहा भाई कोई दिक्कत नही है तू बस हमें ले चल।ड्राइवर के साथ एक औरत भी थी जो आगे बैठी थी।
गोविंदघाट से निकलने के बाद तो नज़ारे ही बदल गए।अलग ही तरह के पहाड़ नज़र आ रहे थे।अलकनन्दा भी पहले वाली नही लग रही थी।रास्ते में कई जगह भूस्खलन का असर साफ़ नज़र आ रहा था।ड्राइवर ने गाडी बहुत तेज़ गति से भगा रखी थी।सच पूछो तो बहुत मजा आ रहा था।जब कोई मोड़ आता तो थोड़ा सा डर भी लगता।

गोविंदघाट से बद्रीनाथ लगभग 25 किलोमीटर की दुरी पर है।रास्ते में पांडुकेश्वर,लम्बगढ़ और हनुमान चट्टी नाम की जगहें आई।ड्राइवर ने लगभग पौने घण्टे में हमें बद्रीनाथ बस स्टैंड से लगभग आधा किलोमीटर पहले छोड़ दिया।वहां से हम पैदल बद्रीनाथ मंदिर के लिए चल पड़े।लगभग आधे घण्टे में मंदिर पहूंच गये।बाहर गर्म पानी के स्त्रोत है और साथ ही अलकनन्दा बिल्कुल मंदिर के आगे से बहती है।यहाँ आकर बहुत अच्छा लग रहा था।यहाँ के प्राकृतिक दृश्य देखकर बस यहीं रहने का मन कर रहा था।आसमान को छूते ऊँचे पर्वत अपनी और बुला रहे थे।

मंदिर में ज्यादा भीड़ नही थी।लगभग आधे घण्टे में सभी ने दर्शन कर लिए।मंदिर के अंदर कैमरा प्रयोग करने की अनुमति नही थी।बद्रीनाथ धाम बाहर से देखने पर बहुत खूबसूरत लग रहा था।जो हमनें अब तक तश्वीरों में देखा था वो सच में और सामने देख कर बहुत अच्छा लग रहा था।बहुत से लोग गर्म पानी में नहा रहे थे।नहाने के लिए वहां विशेष स्नानागार बना रखे हैं।

दर्शन के बाद थोड़ी देर बाहर के नजारे लिए और उसके बाद वापिस बस अड्डे की और चल पड़े।बद्रीनाथ से 3 किलोमीटर आगे भारत का अंतिम गाँव माणा है।वो भी देखने का मन था पर समय की कमी को देखते हुए माणा को भविष्य के लिये टाल दिया।बस अड्डे पहुँचते हमें ऋषिकेश के लिए बस मिल गयी।परिचालक महोदय ने बताया कि रात्रि विश्राम श्रीनगर में होगा।कारण पूछने पर उसने बताया कि उत्तराखण्ड में रात को गाडी चलाने पर रोक है।एक बजे के करीब बस चल पड़ी।उन्हीं आकर्षक दृश्यों का आनन्द लेते हुए रात को 9 बजे के करीब श्रीनगर
पहुँच गये।श्रीनगर में 500 रूपये में कमरा मिल गया।खाना खाया और सो गए।सुबह नहा धोकर 5 बजे उस जगह पहुँच गये जहाँ बस मिलनी थी।सवा 5 बजे बस चल पड़ी।तारीख बदल कर 18 जून हो गयी थी।बस ने साढ़े 9 बजे के करीब ऋषिकेश पहुँचा दिया।

ऋषिकेश से बस पकड़ी और हरिद्वार आ गए।हरिद्वार आने के बाद खाना खाया गया।मैंने और अनिल ने यहां थोड़ी से खरीददारी भी की।एक बजे वहां से हमें हिसार के लिए बस मिल गयी।रात 10 बजे के करीब हिसार पहुंचे।और वहां से रेलगाड़ी द्वारा आधी रात को उकलाना पहुँच चुके थे

बद्रीनाथ से आधा किलोमीटर पहले जहाँ हमें गाडी वाले ने उतारा था

थोड़ा दूर से दिखाई देता बद्रीनाथ धाम

विनोद और बद्रीनाथ मंदिर

बद्रीनाथ के प्राकृतिक दृश्य



पाँच मुसाफिर

यात्रा सम्पन्न....

रविवार, 30 जुलाई 2017

हेमकुंड साहिब यात्रा भाग 6: घांघरिया से हेमकुंड सहिब

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16 जून,2016


घांघरिया और हेमकुंड साहिब के रास्ते में

रात को नींद बहुत अच्छी आई।सुबह साढ़े 4 बजे के करीब उठ गए।हम से पहले बहुत से लोग उठ चुके थे।बहुत से लोग तो नहा धो कर ऊपर प्रस्थान भी कर चुके थे।शमशेर हमारे साथ नही उठा।कल लिए गए निर्णय के मुताबिक शमशेर वापिस गोविंदघाट जाएगा जबकि हम ऊपर हेमकुंड साहिब की यात्रा के लिए प्रस्थान करेंगे।शमशेर को कोई जल्दी नही थी इसलिए वो आराम से सोता रहा।उठने का तो मेरा बिल्कुल भी मन नही था लेकिन उठना पड़ा।जिस हॉल में हम सोए थे वो लंगर हॉल के ऊपर बना हुआ था।उठकर नीचे आए।चाय पी।फिर नहाने पर चर्चा हुई।सभी ने ठंड को देखते हुए न नहाने का फैसला किया।

लगभग सवा पांच हो चुके हैं।चलने की सभी तैयारियाँ हो चुकी हैं।विनोद लंगर हॉल में खाना खाने गया हुआ है।मेरा अजय और अनिल का खाने का मन नही है।गुरुद्वारे के मुख्यद्वार के पास ही एक दीवार के पास बहुत सी छड़ियाँ पड़ी हुई हैं।इनमें से कुछ ठीक हालत में भी हैं।ये छड़ियाँ यात्रा के दौरान चढाई में बहुत सहयोग देती हैं।जो लोग ऊपर से वापिस आते है वो अपनी प्रयोग की गई छड़ी यहां छोड़ देते हैं ताकि वो किसी और के काम आ सके।कुछ ही देर में विनोद खाना खा कर आ चुका है।मुझे छोड़ कर तीनों ने एक-एक छड़ी ले ली है।


हेम का अर्थ है बर्फ वहीं कुंड का अर्थ है कटोरा।इस तरह हेमकुंड का अर्थ हुआ बर्फ का कटोरा।हेमकुंड साहिब वर्षभर लगभग बर्फ से घिरा रहता है।हिंदुओं के पूज्य श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण ने यहाँ एक मंदिर का निर्माण करवाया था जिसे लक्ष्मण मंदिर कहते हैं।यहां सीखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह ने तपस्या की थी।जिस का वर्णन दशम ग्रन्थ में किया गया है।जो लोग दशम ग्रन्थ में यकीन रखते हैं उनके लिए ये स्थान बहुत महत्वपूर्ण है।जिस स्थान पर गुरु जी ने ध्यान लगाया था वहां ये गुरुद्वारा बना हुआ है जिसे गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब कहा जाता है।गुरुद्वारे के साथ ही पवित्र सरोवर बना हुआ है जिसे हेम सरोवर के नाम से जाना जाता है।गुरुद्वारे में माथा टेकने से पहले सिख श्रद्धालू इस पवित्र सरोवर में स्नान करते हैं।गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब और लक्ष्मण मंदिर पास पास ही बने हुए हैं।


घांघरिया जहाँ 3049 मीटर की ऊंचाई पर है वहीं हेमकुंड साहिब 4329 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।इसका मतलब हमें छः किलोमीटर की यात्रा में 1280 मीटर चढ़ना पड़ेगा।काफी दुर्गम चढाई है।खैर छः साढ़े-पांच,छः बजे के करीब गुरद्वारे से निकल पड़े।थोड़ी सी दुरी पर एक पुल आया।पुल पार कर के आगे बढ़े।थोड़ी दूर चलने पर एक रास्ता बाएं और फूलों की घाटी में जाता है जिसकी दुरी यहां से 3 किलोमीटर है।हम मुख्य रास्ते पर चलते रहे।सामने एक झरना दिखाई दे रहा था जो सामने एक पहाड़ी से नीचे गिर रहा था।बहुत खूबसूरत लग रहा था।थोड़ा सा चलने पर कठिन चढाई शुरू हो जाती है।बीच में कई जगह सीढ़ियों पर चढ़ना पड़ता है तो कई जगह पत्थरो पर भी चलना पड़ा।आज मैं और अनिल साथ है वहीं विनोद और अजय साथ चल रहे हैं।अजय का पहाड़ों में चलने का तरीका बहुत अच्छा है।छोटे कदमों के साथ अपनी सामान्य चाल से चलता है।इसलिए थकान कम होती है।विनोद का शरीर हल्का है चुस्ती भी अच्छी है।वहीं अनिल का शरीर भारी तो है पर फिट है।अनिल की समस्या ये है कि वो बहुत तेज़ी से चढ़ता है परिणामस्वरूप उसी तेज़ी से थक जाता है।मेरा वजन तो पिछले दो सालों में 75 पार कर गया है पर चलने में कोई हरकत नही होती।

रास्ते में 3-4 जगह खाने पीने की दुकानें भी आती हैं।खच्चरों की वजह से पैदल चलने वालों को काफी दिक्कत आती है।2 किलोमीटर चलने के बाद सभी को भयंकर वाली थकान होने लगी है।थोड़ी थोड़ी देर में बैठना पड़ता है।पैरों में भी दर्द होने लगा है।विनोद और अजय हमसे कुछ आगे चल रहे हैं।लगभग आधी दुरी पार करने के बाद हमे रास्ते में ऊपर से वापिस आने वाले यात्री भी मिलने लगे हैं।जिस से भी बात होती है हम यही पूछते हैं भाई साहब कितनी दूर और रह गया है।और वो हमें हौंसला देने के लिए कहते हैं कि बस अब तो थोड़ा ही रह गया है आधे घण्टे में पहुँच जाओगे।मगर ये आधा घण्टा एक घण्टा बीतने के बाद भी आधा ही रहा।लगभग 2 किलोमीटर पहले एक जगह आई जहां बर्फ का एक ग्लेशियर मिला।यहाँ बर्फ पर कुछ देर हम लोगों ने उछल-कूद की।काफी अच्छा लग रहा था यहां आने के बाद।

कुछ देर बाद आगे बढ़ गए।एक सरदार जी मिले।कहने लगे पिछली साल भी मैं इस यात्रा पर आया था उस समय 2-3 किलोमीटर बर्फ में चलना पड़ा था।घांघरिया के बाद ही बर्फ शुरू हो गई थी।इस बार तो बर्फ नाम मात्र की भी नही है।खैर चलते रहे चलते रहे।मेरा अनिल से भी ज्यादा बुरा हाल और अनिल सोच रहा है कि मेरा संजय से भी ज्यादा बुरा हाल है।अजय और विनोद लगभग 200 मीटर आगे चल रहे हैं।

निशान साहिब नज़र आने लगा है।इससे थोड़ी हिम्मत मिली है।जब हेमकुंड साहिब लगभग डेढ़ किलोमीटर रह गया तो एक जगह सीढ़ियाँ नजर आई।जो मुख्य मार्ग के बाईं और ऊपर चढ़ रही थी।सीढ़ियों के सामने की मुख्य मार्ग के किनारे एक दुकान बनी हुई थी जहां बहुत से यात्री जलपान ग्रहण कर रहे थे।हमने दुकानदार से पूछा कि क्या ये सीढियां हेमकुंड साहिब जा रही है।सकारात्मक जवाब मिलने के बाद मैंने और अनिल ने सीढ़ियों से ही जाना तय कर लिया।सीढ़ियों से चढ़ने का पंगा ले तो लिया पर किस प्रकार ऊपर पहुँचे इसे शब्दों में बताना उतना ही मुश्किल है जितना मुश्किल उस समय सीढ़ियों से चढ़ना लगा।

लगभग साढ़े बारह बजे हेमकुंड साहिब की पवित्र सरजमीं पर हमारे कदम पड़े।यहां आकर सारी थकान खत्म हो गयी।यहां ठण्ड भी अच्छी थी।अजय और विनोद हमसे 10-15 मिनट पहले ही पहुँच चुके थे।चाय पीने के बाद पहले सरोवर के पास पहुंचे।सोचा मुंह हाथ तो धो ही लेते हैं।जैसे ही पानी में हाथ डाला लगा इतना ही साहस बहुत है।हेम सरोवर काफी खूबसूरत लग रहा था।उसके बाद गुरुद्वारे में जाकर दर्शन किये,मत्था टेका।गुरुद्वारे की छत से लक्ष्मण मंदिर भी नज़र आ रहा था।गुरुद्वारा और लक्ष्मण मंदिर दोनों बहुत अच्छे लग रहे थे।गुरुद्वारे से बाहर आने के बाद लंगर हाल में पहुंचे।वहां खिचड़ी का प्रसाद मिला और साथ में फिर से चाय।4329 मीटर की ऊंचाई का हमें तो कोई खास फर्क महसूस नही हुआ।वैसे इतनी ऊंचाई पर आने पर लोगों को सांस लेने में समस्या होने लगती है।

लगभग डेढ़ बजे वापिस चल पड़े।उतराई उसी सीढियों वाले रास्ते से शुरू की।उतरते वक्त कोई दिक्कत नही हुई।लगभग 2 घण्टों में घांघरिया पहुँच गये।गुरुद्वारे में चाय पी और अगले ढाई घण्टो में पुलना।पुलना से जीप पकड़ी और 20 मिनट में गोविंदघाट स्थित गुरुद्वारे में पहुँच गये।हमारे गोविंदघाट पहुँचते ही जबरदस्त बारिश शुरू हो गयी।गुरुद्वारे में शमशेर ने हमारे लिए पहले ही बिस्तर आरक्षित करवा रखे थे।थकान की वजह से जल्दी खाना खाया और सो गए।


रास्ते में एक ग्लेसियर के पास विनोद









हेम सरोवर







हेम सरोवर



विनोद मूंछो को ताव देता हुआ

गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब का शानदार नज़ारा





बरसात की वजह से बरसाती पहननी पड़ गयी थी

बर्फ से खेलते हुए अजय

अनिल रास्ते में

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रविवार, 2 जुलाई 2017

हेमकुंड साहिब यात्रा भाग 5:गोविंदघाट से गोविन्दधाम(घांघरिया)

गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब और पवित्र सरोवर

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15 जून,2016

शोर शराबे की वजह से मेरी आंख खुल जाती है लेकिन निंद्रा अभी भी आँखों में तारी है।आखिर हिम्मत करके पूरी आँख खोलता हूँ तो पता चलता है कि सुबह हो चुकी है और लोग बाग़ शौच आदि से निवृत हो रहे हैं।कई लोग तो नहा भी चुके हैं।लगभग 7 बज चुके हैं और सब से अंत में मेरी ही आँख खुली है।अजय नहा कर आ चुका है।अनिल और शमशेर नहाने गये हुए हैं।विनोद शौचालय का सदुपयोग कर रहा है।वैसे हमें कोई ज्यादा जल्दी नही है क्योंकि आज का हमारा लक्ष्य गोविन्दघाट से 13 किलोमीटर दूर गोविंदधाम पहुँचना है।इन 13 किलोमीटर में से 3 किलोमीटर की दुरी जीप द्वारा तय की जानी है जबकि शेष 10 किलोमीटर पैदल यात्रा है।इसलिए हम शाम तक आसानी से गोविंदधाम पहुँच जाएंगे।गोविंदधाम को घांघरिया भी कहा जाता है।

आखिरकार उठने की हिम्मत करता हूँ।हिम्मत-ए-मरदां तो मदद-ए खुदा।सफलता भी मिल ही जाती है।नीचे कई शौचालय बने हुए है।परन्तु सुबह का समय होने के कारण मांग पूर्ति से कहीं ज्यादा है।तभी मेरे सामने वाले शौचालय का दरवाजा खुलता है और मैं घुस जाता हूँ।शौच की इच्छा नहीं है।चलो जोर लगा के देखता हूँ,शायद बात बन जाए।परिणाम शून्य।बात नही बनी।चिंता हुई की कहीं रास्ते में दिक्कत न हो जाए।चलो जो होगा देखा जाएगा।शौचालय में बैठे-बैठे एक महत्वपूर्ण निर्णय भी लिया कि नहाने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं हैं।नहीं नहाऊंगा।

अलकनन्दा के किनारे बसा गोविंदघाट एक खूबसूरत स्थान है।अलकनन्दा इसे और भी खूबसूरत बना देती है।गुरुद्वारा गोविंदघाट भी अलकनन्दा के किनारे ही बना हुआ है।गुरुद्वारे में जहां यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था है वहां से अलकनन्दा काफी आकर्षक नज़र आती है।2013 की विभीषिका में गोविंदघाट में भी बहुत ज्यादा नुकसान हुआ था।गुरुद्वारा तो पूरी तरह नष्ट हो गया था।गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और कारसेवकों ने मिलकर इसे पुनः त्यार किया है।गोविंदघाट हेमकुंड साहिब का आधार स्थल है।यहां बने गुरुद्वारे का हेमकुंड साहिब यात्रा में विशेष योगदान होता है।हेमकुंड जाने वाले लगभग सभी यात्री यात्रा से पूर्व इसी गुरुद्वारे में ठहरते हैं।

यहाँ से हेमकुंड साहिब का सफर 19 किलोमीटर का है।यहां से 4 किलोमीटर पर पुलना नामक जगह है।जहां 3 किलोमीटर तक मोटर मार्ग बन चूका है।इसलिए ये तीन किलोमीटर की दुरी हम जीप या बाइक से तय कर सकते हैं।उसके बाद 5 किलोमीटर चलने पर भयुन्दर नामक जगह आती है और भयुन्दर से आगे 5 किलोमीटर पर आता है गोविंदधाम।यानी गोविंदधाम की गोविंदघाट से दूरी 13 किलोमीटर है।ज्यादातर यात्री पहले दिन गोविंदधाम तक ही यात्रा करते हैं और अगले दिन हेमकुंड साहिब के लिए प्रस्थान करते हैं।

सवा 8 बज चुके हैं।हमनें अपना सामान गुरुद्वारे में जमा करवा दिया है।कल शाम को हमनें एक-एक प्लास्टिक की बरसाती और एक-एक प्लास्टिक के हल्के थैले जिन्हें पिट्ठू बैग की तरह पीछे लटकाया जा सकता है,खरीद लिए थे।मैंने अपने थैले में बरसाती और आंतरिक गर्म कपड़े डाल लिए।इसी प्रकार सभी ने अपनी आवश्यकता की चीजें अपने अपने थैले में डाल ली।हमारे पास रास्ते में खाने के लिए चने थे और सभी ने एक एक बोतल पानी ले लिया।ग्लूकॉन डी भी हम घर से ले कर चले थे।

गुरुद्वारे के साथ लगता ही जीप स्टैंड है जहां से पुलना के लिए जीप मिलती है।हमें जाते ही जीप मिल गई।गुरद्वारे के पास ही अलकनन्दा पर पुल बना हुआ है जिस पर एक बार में एक ही जीप जा सकती है।हेमकुंड साहिब नदी के उस ओर है इसलिए इस पुल को पार करना जरूरी है।जीप ने पुल पार किया और 20-25 मिनट में 4 किलोमीटर दूर स्थित पुलना से 1 किलोमीटर पहले छोड़ दिया।यानी हमारी 3 किलोमीटर की यात्रा सम्पन हो गयी।

गोविन्दघाट की समुंद्रतल से ऊंचाई 1828 मीटर है वहीं पुलना 2058 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।देखा जाए तो जीप का हमे बहुत फायदा हुआ है।यहाँ से 6 किलोमीटर आगे भयुन्दर नामक जगह आएगी।जीप से उतरकर हमने पैदल यात्रा शुरू कर दी।ऊपर से एक नदी नीचे आ रही है जो गोविंदघाट पहुँच कर अलकनन्दा में मिल जाती है।जब हमनें किसी से इसके बारे में पूछा तो पता चला की ये लक्ष्मण गंगा नदी है जो ऊपर हेमकुंड साहिब के पास से ही आती है वहां लक्ष्मण मंदिर बना हुआ है।

पुलना के पास ही हमनें नीचे देखा कि नदी के किनारे एक उजड़ी हुई बस्ती नज़र आ रही है।ये बस्ती 2013 की विभीषिका में बरबाद हो गई थी।खण्डहर गवाही दे रहे है।उन लोगो पर क्या बीती होगी जो उस समय घरों में मौजूद थे।बहुत बुरा हुआ।कल्पना से ही कम्पन होने लगी।

थोड़ा आगे चलने पर पुलना आ गया।यहां कई खाने पीने की दुकानें बनी हुई हैं।यहां थोड़ी देर बैठ गए।थोड़ी देर बाद चल पड़े।कोई खास चढाई नही है।आराम से चल रहे हैं कोई थकान नही है।मैं और अजय साथ साथ है और आगे चल रहे हैं।बाकि तीनों हमसे थोड़ा पीछे चल रहे हैं।

पुलना जहां 2058 मीटर की ऊंचाई पर है वहीं भयुन्दर 2239 मीटर की ऊंचाई पर है।इसका मतलब 5 किलोमीटर के सफर में हमें 181 मीटर चढ़ना है।मतलब भयुन्दर तक कोई खास दिक्कत नही आनी।पुलना से लगभग 2 किलोमीटर चलने के बाद मुख्य रास्ते से एक रास्ता नदी की ओर नीचे उतर रहा था।बहुत से लोग उस रास्ते से जा रहे थे।मैं और अजय भी उसी रास्ते से चल पड़े।नीचे उतरने पर रास्ता नदी के साथ साथ है।बहुत से लोग नदी में मस्ती कर रहे थे।हम भी लग गए।थोड़ा आगे चलने पर चढ़ाई आ गई।चढ़ने में थोड़ा जोर भी लगा।ऊपर जाने पर वापिस मुख्य रास्ता आ गया।200 मीटर भी नही चले होंगे,भयुन्दर भी आ गया।मतलब 3 किलोमीटर नदी के साथ साथ बड़ी जल्दी निकल गए।पता ही नही चला।भयुन्दर में अच्छी दुकानें हैं मगर महंगाई ज्यादा है।हमनें थोड़ी देर भयुन्दर में आराम करने का फैसला कर लिया।अनिल,विनोद और शमशेर पीछे रह गए है।

थोड़ी देर आराम करके आगे बढ़ गए।लगभग 11 बज रहे हैं।भयुन्दर के बाद एक पुल आता है जिसे पर करके आगे बढ़ना होता है।5 किलोमीटर का सफर करके हम घांघरिया पहुँच पाएंगे।घांघरिया 3049 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।मतलब 5 किलोमीटर में हमें 810 मीटर चढ़ना होगा।एक किलोमीटर में 162 मीटर।मतलब घांघरिया तक काफी मुश्किल चढाई है।

पुल पार करने के बाद चढाई वाला रास्ता शुरू हो चुका है।थोड़ी थोड़ी दूरी पर थकान होने लगी है।मैं और अजय साथ चल रहे हैं।रास्ता काफी खूबसूरत है।ऊँचे ऊँचे पहाड़ देखकर काफी अच्छा लग रहा है।लक्ष्मण गंगा भयुन्दर तक दाईं और थी अब बाईं और हमारी विपरीत दिशा में बह रही है।बहुत से यात्री ऊपर जा रहे हैं तो बहुत से नीचे आ रहे हैं।पानी,पानी के साथ ग्लूकॉन डी सफर में सहयोग कर रहे हैं।एक जगह एक दुकान आती है।चाय पी जाती है।फिर आगे बढ़ जाते है।चलते-रुकते,बैठते-उठते आगे बढ़ते हैं।एक ऊपर से आता हुआ मुसाफिर मिलता है हमें ग्लूकॉन डी देता है और बताता है कि 2 किलोमीटर पर घांघरिया है।एक किलोमीटर तक दिक्कत है फिर चढाई खत्म हो जाएगी।होंसला मिलता है।घांघरिया से एक किलोमीटर पहले हेलिपैड आता हैं।यहां 15-15 मिनट में हेलोकॉप्टर उतरता है,सवारियां उतारता है,चढाता है,फिर उड़ान भरता है।हेलिपैड आने के साथ ही चढाई कम हो जाती है।हेलिपैड के सामने यात्रियों के लिए बने एक शेड में बैठ कर हमनें थोड़ी देर आराम किया।फिर चल पड़े।बाकी तीनों अभी भी पीछे है।ये नहीं पता कितने पीछे हैं।
लगभग 20 मिनट बाद हम गुरद्वारे में पहुँच चुके हैं।लगभग 2 बज चूके हैं।रहने की आज्ञा ली गई।भोजन किया गया।फिर इधर उधर विचरण किया।

कई देर तक उन तीनों का इंतजार किया।फिर मैंने अजय से कहा चल थोड़ी दूर वापिस चलते हैं क्या पता वो आते हुए मिल जाएं।उनकी खोज में हम वापिस उसी हेलीपेड के सामने वाले शेड के पास पहुँच गये।हेलीकॉप्टर उतरते और उड़ते हुए देखने लगे।वो लोग नही आए।

मौसम खराब होने लगा है।चारों और कोहरा छाने लगा है
।इतना कोहरा छा गया कि पहाड़ दिखने बन्द हो गए।थोड़ी ही देर में जबरदस्त बरसात शुरू हो गयी।हम लोगों ने शेड में शरण ली।और भी बहुत से लोग शेड के नीचे आ गए।लगभग आधा घण्टा बरसात होती रही।ठण्ड भी लगने लगी।मैंने गर्म बनियान और गर्म पायजामा पहन लिया।ठण्ड कम हुई।बरसात थोड़ी कम हुई तो सामने सफ़ेद रंग की बरसाती पहनें तीन लोग दिखाई दिए।एक ने हमारी और हाथ हिलाया।खुशी हुई चलो आ तो गये।शमशेर को चलने में थोड़ी दिक्कत है इसलिए हमें डर था कभी ये लोग वापिस न चल दिए हो।

घांघरिया गुरूद्वारे पहुंचे।तीनों ने भी पेट पूजा की।उसके बाद थोड़ी देर इधर उधर विचरण किया।मैंने और अजय ने गुरुद्वारे में बने शौचालयों की सेवा भी ली।रात को सोने से पहले ये निर्णय लिया गया कि शमशेर के लिए ऊपर चढ़ना काफी मुश्किल है अतः शमशेर ऊपर नही जाएगा वो वापिस गोविंदघाट चल कर गुरुद्वारे में ठहर जाएगा।और शेष चारों सुबह जल्दी उठकर चढाई शुरू करेंगे।रात को घांघरिया में सर्दी काफी बढ़ गई।हम रात को घांघरिया गुरूद्वारे में ऊपर बने हॉल में सोए।


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मंगलवार, 27 जून 2017

हेमकुंड साहिब यात्रा भाग 4: ऋषिकेश से गोविन्द घाट

अलकनन्दा का एक दृश्य

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14 जून,2016


सुबह नहा-धो कर सभी पौने पाँच के बजे क़रीब बस अड्डे पहुँच गये।वहां बहुत सी बसें खड़ी थीं।कोई गंगोत्री जा रही थी तो कोई यमुनोत्री।कोई बद्रीनाथ तो कोई केदारनाथ।सब से पहले हमनें अपने वाली बस की खोज की एवं तत्पश्चात चाय पी गई।जब चाय पीने के बाद हम बस में पहुंचे तो हमारी दो सीटों पर कोई और महानुभाव बैठे मिले।उनसे कहा गया कि भाई आप लोग गलत जगह बैठ गए हैं ये सीट हमारी है तो उन्होंने अपनी टिकट निकाल कर दिखा दी।उनकी टिकट पर वही संख्या दर्ज थी जो हमारी टिकट पर थी।परिचालक से इसकी शिकायत की गई तो जवाब मिला आप दूसरी सीट पर बैठ जाओ।ज़िरह बाजी हुई।गुस्सा भी बहुत आया।नतीजा सिफ़र।

साढ़े पाँच बजे बस चल पड़ी।लक्ष्मण झूले वाले रास्ते से ही बस चल रही थी।आबादी से निकलने के साथ ही पहाड़ी मार्ग शुरू हो गया।जंगल शुरू हो गए।मजा आने लगा।
अजय खिड़की वाली सीट पर बैठा है और मैं अजय के साथ वाली पर।अनिल खिड़की वाली सीट पर है और विनोद अनिल के साथ वाली पर।शमशेर को ड्राइवर के केबिन में सीट मिल गई है।बस में सभी सीटें 2 सीटों वाली हैं।मैं सोच रहा हूँ अजय मुझे खिड़की वाली सीट पे बैठने देगा या नही।अगर देगा तो कब।

ये बस बद्रीनाथ जा रही है और हेमकुंड साहिब का आधार स्थल गोविंदघाट उसी रास्ते पर बद्रीनाथ से लगभग 25-30 किलोमीटर पहले है।इसलिए इस बस में हेमकुंड साहिब और बद्रीनाथ दोनों के यात्री विराजमान है।इस रास्ते में देवप्रयाग,श्रीनगर,रुद्रप्रयाग,कर्णप्रयाग और जोशीमठ जैसे महत्वपूर्ण स्थल पड़ते हैं।देवप्रयाग ऋषिकेश से लगभग 70 किलोमीटर दुरी पर है।सम्पूर्ण रास्ता पहाड़ी है।
लगभग डेढ़ घण्टे चलने के बाद बस ऋषिकेश और देवप्रयाग के बीच कहीं रुकती है।यहाँ कुछ होटल और दुकानें बनी हुई हैं।यहाँ चाय पी गई और 1-2 दोस्तों को छोड़ कर सभी ने 1-परांठा भी खाया।भुना हुआ मक्का मिल रहा था उसका स्वाद भी चख कर देखा गया।यहां से पर्वतों के नजारे बहुत शानदार दिख रहे हैं।घाटियों की गहराई भी मन को प्रसन्न कर रही है।15 मिनट बाद बस चल पड़ी।
अलकनन्दा सड़क के साथ-साथ चल रही है।शायद हमारा दूर तक का साथ है।लगभग 1 घण्टे बाद बस देवप्रयाग पहुँचती है।समुन्द्रतल से 830 मीटर ऊंचाई पर बसा ये सुन्दर शहर अलकनन्दा और भागीरथी नदियों का संगम स्थल है।बस से हम संगम को ढंग से नही देख पाए।यहीं से अलकनन्दा नदी गंगा कहलाने लगती है।

बस देवप्रयाग से निकल चुकी है।इस समय मैं खिड़की वाली सीट पर बैठा हूँ।रास्ते में आने वाले प्राकृतिक दृश्य मन को भाव विभोर कर रहे हैं।जलेबी की तरह बने सीधे मार्ग आन्तरिक रोमांच बढा रहे हैं।कभी बस ऊंचाई की और बढ़ती है तो कभी ढलान से नीचे उतरती है।दूर तक ऊंचाइयों पर फैले जंगल,दूर से नज़र आता कोई झरना या कहीं दूर किसी पहाड़ पर बसा कोई गाँव देखकर वहां तक जाने की कल्पना करता हूँ।
इन पहाड़ी रास्तों और हमारे जीवन के बीच संबद्ध खोजने की कोशिश करता हूँ।हमारा जीवन भी इन रास्तों की तरह ही है कभी हम आगे बढ़ते है तो कभी पीछे रह जाते है।हमारा परिश्रम कभी हमें ऊपर ले जाता है तो कभी कोई चूक नीचे ले आती है।इन घुमावदार रास्तों की तरह हमारा जीवन भी घुमावदार है।तभी कोई झटका लगता है और मैं यथार्थ में प्रवेश करता हूँ।अजय को नींद आ रही है।जैसे ही बस किसी मोड़ पर घूमती है एक बार नींद टूट जाती है फिर आ जाती है।
बस श्रीनगर से गुजर रही है।अजय जाग चुका है।श्रीनगर एक बड़ा गढ़वाली शहर है।इसकी समुन्द्रतल से ऊंचाई लगभग 990 मीटर है।
रुद्रप्रयाग भी आ चुका है।समय की और ध्यान नहीं है।
लगभग 900 मीटर ऊंचाई पर बसा ये गढ़वाली नगर अलकनन्दा और मंदाकिनी नदियों का संगम स्थल है।
अगला पड़ाव कर्णप्रयाग है।कर्णप्रयाग लगभग साढ़े चौदह सौ मीटर ऊंचाई पर स्थित एक सुंदर शहर है।ये अलकनन्दा और पिंडर नदियों का संगम स्थल है।यहाँ पर बस जलपान के लिए लगभग आधा घण्टा रूकती है।सभी ने खाना खाया।फोटो भी खींची गई।
आगे जोशीमठ आया।लगभग 2045 मीटर ऊंचाई पर बसा ये शहर मुझे बहुत अच्छा लगा।बस जोशीमठ से नीचे उतरती है।थोड़ा चलने पर विष्णुप्रयाग आता है।यहां धौली गंगा और अलकनन्दा का संगम होता है।यहां एक पन बिजली परियोजना चल रही है जिसकी इमारतें रास्ते से नज़र आती हैं।वैसे प्रयाग का दूसरा अर्थ संगम ही होता है।जिस भी शहर के साथ प्रयाग लगा है समझ लो वहां किसी न किसी नदी का संगम ही है।

किसी ने ठीक ही कहा है कि पहाड़ों में दूरियां किलोमीटर में नहीं घंटो में मापी जाती है।ऋषिकेश से गोविंदघाट तक का लगभग 280 किलोमीटर का सफर तय करने में बस ने
लगभग 11 घण्टे लगा दिए।

लगभग छः बजे के करीब बस ने हमें गोविन्दघाट उतार दिया।अलकनन्दा नदी के किनारे बसा और चारों और ऊँचे-ऊँचे पर्वतों से घिरा ये शहर वास्तव में शानदार दृश्य पेश करता है।यहां बहुत से होटल हैं,दुकानें हैं और एक गुरुद्वारा है जहाँ हेमकुंड जाने वाली यात्रियों के ठहरने का अच्छा प्रबंध है।सबसे पहले हम गुरूद्वारे में गये।वहाँ हमें ऊपर बने एक हॉल में ठहरने के लिए जगह दे दी गई।हॉल में हमें तीन गद्दे सोने के लिए मिले।हमनें वहां अपना सामान रखा और नीचे अलकनन्दा के किनारे आ गए।यहां हमनें नदी में कई देर तक मस्ती की।नदी के किनारे 2013 की त्रास्दी की चिह्न स्पष्ट नज़र आ रहे थे।देख कर स्पष्ट पता चल रहा था कि उस समय कितनी विकराल विनाश लीला हुई होगी।अँधेरा होने लगा था।वापिस गुरुद्वारे पहुंचे।माथा टेका।भोजन किया और अपने स्थान पर सोने चले गए।अलकनन्दा के बहने की आवाज यहां तक बिल्कुल साफ आ रही थी।
सुबह गोविंदधाम(घांघरिया) पहुंचना है.....


गोविंदघाट:अलकनन्दा नदी

अलकनन्द और शमशेर का प्रेम

अलकनन्दा के किनारे दो दोस्त

अनिल हिमालय की गोद में

जय अलकनन्दा


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शुक्रवार, 16 जून 2017

हेमकुंड साहिब यात्रा भाग 3: ऋषिकेश एवं नीलकंठ

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हरिद्वार बस अड्डे पर काफी भीड़ है।जैसे ही कोई बस आती है लोग टूट पड़ते हैं।जिन लोगों के पास सामान ज्यादा है उन्हें ज्यादा दिक्कत हो रही है।यही हाल उन लोगों का है जिन की गोद में बच्चे हैं।लगभग सुबह के ग्यारह सवा ग्यारह का वक्त है और हम लोग ऋषिकेश जाने वाली बस का इंतज़ार कर रहे हैं।बस आई थी थोड़ी देर पहले ही,पर हम लोगों ने उसे जाने दिया सोचा अगली में चलेंगे।भीड़ बहुत ज्यादा थी उसमें।

वैसे बाहर से बड़े ऑटो एवं शायद जीप वगैरह भी ऋषिकेश जा रहे हैं मगर हम बस में जाना चाहते हैं।देहरादून,मुजफ्फरनगर जैसे शहरों के लिए बसों की भरमार है पर ऋषिकेश के लिए काफी वक़्त बीत जाने के बाद भी कोई बस नहीं आ रही है।मगर शरीर से पसीना हरियाणा रोडवेज की बसों की गति से आता जा रहा है।बनियान को तो निचोड़ा भी जा सकता है।गर्मी अपनी शिद्दत से पेश आ रही है।लगभग पौने घण्टे से ऊपर हो चुका है और उत्तराखंड सरकार की आलोचना शुरू हो चुकी है कि इतनी सवारियां होने के बावजूद भी ऋषिकेश के उपेक्षा क्यों की जा रही है।

आखिरकार एक बस आ ही गई जिस पर ऋषिकेश हरिद्वार का बोर्ड लगा है ये बस ऋषिकेश से आई है और बोर्ड के अनुसार तो इसे वापिस ऋषिकेश ही जाना है।लोग बस को देखते ही इसकी तरफ टूट पड़े।तभी बस के ड्राइवर की तरफ से आकाशवाणी हुई,आकाशवाणी नही वज्रपात कहना उचित रहेगा।घोषणा कर दी की बस ऋषिकेश नहीं देहरादून जाएगी।तभी वहां पास ही एक केबिन में बैठे अड्डा कार्यकारी अधिकारी से कुछ लोगों ने ड्राइवर के शिकायत कर दी की वो ऋषिकेश जाने से मना कर रहा है तो अधिकारी ने आकर ड्राइवर को ऋषिकेश जाने का निर्देश दिया।एक बार तो ड्राइवर अपनी बात पर अड़ा परन्तु जल्द ही मान भी गया।

हम लोगों को थोड़ा संघर्ष करनेे के बाद आगे वाली सीटें मिल गई।लगभग 5 मिनटे बाद बस चल पड़ी।रास्ते में जाम ने पुनः बस अड्डे वाली स्थिति उत्पन कर दी।गर्मी,पसीना,बेसब्री और प्यास।पानी की बोतल ने भी हाथ जोड़ दिए।खैर सब्र के अलावा कोई चारा भी नही है।चालीस मिनट का सफर डेढ़ घण्टे में पूरा हुआ और हम ऋषिकेश पहुँच गए।जाते ही सबसे पहले पानी पिया गया और प्यास की बेदर्दी से हत्या की गई।

कई जगह पड़ताल करने के पश्चात हमें बस अड्डे से लगभग आधा किलोमीटर दूर 700 रूपये में दो कमरे मिल गए।सामान कमरों में छोड़ कर अड्डे के पास ही एक होटल पर खाना खाया गया।तत्पश्चात एक ऑटो लिया और लक्ष्मण झूला पहुँच गये।

लगभग ढाई तीन का वक्त हो चुका है।गंगा का यौवन देख कर सभी का मन प्रसन्नचित हो गया है।नहाने का भी मन है पर नहाने का सामान न लाने के कारण नहाना रदद् कर दिया है। राम झूला देखा,लक्ष्मण झूला देखा,सब कुछ देखा ,और भी पता नही क्या क्या देखा।एक-डेढ़ घण्टे तक पूरा आनन्द लिया।फिर किसी से पूछा कि भाई नीलकंठ जाना है,कैसे जाया जाए,बता दो दो मेहरबानी होगी।बताने वाले ने भी पूरा दिल लगा कर बताया कि आप नाव में बैठ कर दूसरी तरफ जाओ।वैसे राम झूले से भी जा सकते हो।उसके बाद बाजार पार करने के बाद वह स्थान आ जाएगा जहां से आपको नीलकंठ के लिए वाहन मिल जाएगा।

नाव से नदी पार करने का निर्णय लिया गया।नाव में यात्रा करना एक नवीन अनुभव था।बाजार पार किया।10 मिनट पैदल चले और आखिरकार उस जगह पहुँच ही गये जहां से हमें नीलकंठ के लिए वाहन मिलना था।आधी गाडी तो हम पाँचों ने घेर ली और बची हुई आधी एक परिवार को सौंप दी गई।नीलकंठ का रास्ता,पहाड़ी रास्ता,जंगली रास्ता, एक तरफ दरिया-ए-गंगा तो दूसरी तरफ फौलाद की तरह सीना ताने हिमालय का एक हिस्सा।मनोहारी दृश्य जो हर किसी का मन अपनी और आकर्षित कर ले।रास्ते में बरसात शुरू हो गई जिस की वजह से हमे गाडी के शीशे बन्द करने पड़े।2 लड़कियां मिली जो ऊपर किसी गाँव की रहने वाली थीं और नीचे ऋषिकेश में अध्ययन कर रही थी।ड्राइवर ने दिनों को गाडी में बैठा लिया।एक-दो झटके लगने के बाद नया सामान भी गाडी में सही फिट हो गया।लड़कियां काफी मिलनसार थी साथ ही वह परिवार भी जो हमारे साथ बैठा था।आपस में बातें करते-कराते,हंसते-हंसाते हम एक घण्टे में ऊपर पहुँच गये।मंदिर में भीड़ कम थी जिन को दर्शन करने थे उनको आसानी से दर्शन हो गए।सभी ने चाय भी पी।लगभग पौने घण्टे बाद वापिस चल पड़े।

ऑटो से ऋषिकेश बस अड्डे पहुंचे।पता चला की चारधाम यात्रा के लिए सभी बसें सुबह साढ़े पांच बजे से पहले ही निकल लेती हैं।ये भी पता चला कि इनमें बुकिंग भी पहले दिन ही करवानी होती है वरना अगले दिन सीट नही मिलती।ये भी पता चला की चारधाम यात्रा के लिए पहले फोटोयुक्त बायोमेट्रिक पंजीकरण करवाना भी जरूरी है।सभी ने पंक्ति में लग कर अपना निःशुल्क पंजीकरण करवाया एवं एक मिनीबस में पांच सीटें भी बुक करवा दी।हमें सुबह पांच बजे पहुँचने की हिदायत दी गई।

होटल वापिस आए खाना कमरे में ही मंगवा लिया और सो गए।सुबह जल्दी जो उठना था।

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शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

हेमकुण्ड साहिब यात्रा भाग 2: हरिद्वार में गँगा स्नान एवम् मनसा देवी मंदिर

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13 जून 2016
बस ने सुबह साढ़े पाँच बजे हमें हरिद्वार बस अड्डे पर उतार दिया।बस अड्डे से बाहर आकर एक होटल कम ढाबे पर चाय पीने के लिए बैठ गए।यहाँ एक मजेदार घटना हो गयी।कल घर से चलने से पहले मैंने सभी को बोल दिया था कि घर से खाना बनवा के ले आना।यात्रा के पहले दिन का काम इस भोजन से चल जाएगा।कल हिसार बस अड्डे पर जब बात चली की खाने में कौन क्या क्या लेके आया है तो शमशेर ने कहा कि मैं देसी घी का चूरमा बनवाके लाया हूँ।ये सुनते ही सभी के मुंह में पानी आ गया।मैंने कहा अभी खा लेते है मेरा साथ विनोद और अजय ने भी दिया।परन्तु अनिल ने कहा कि इसे सुबह हरिद्वार पहुँच कर चाय के साथ खाएंगे।


गँगा स्नान करते हुए चार महारथी


चाय का ऑर्डर देने के साथ ही शमशेर को भी कह दिया की भाई चूरमा निकाल ले।देसी घी का चूरमा और वो भी जाट के घर के देसी घी का चूरमा।चूरमे के चाव में शरीर के साथ आत्मा भी भूख से व्याकुल हो उठी।चाय आ गई और दूसरी तरफ चूरमे वाला टिफिन भी खोल दिया गया।चूरमे का पहला निवाला खाने का सौभाग्य हमारे वरिष्ठतम साथी अनिल को मिला।चूरमा खाते ही अनिल ने घोषणा कर दी कि इससे स्वादिष्ट चूरमा उसने अपनी इस जिंदगी में तो नही खाया होगा।इतना सुनते ही अपनी रूह भी सकते में आ गयी और चूरमे का निवाला तपाक से मुंह में डाला।चूरमे के मुंह में जाते ही आत्मा तृप्त हो गई और मुंह से निकला इसमें मीठा तो है ही नही।सभी जोर जोर से हंसने लगे।शमशेर ने कहा हमारे यहां नमकीन चूरमा बनाने का रिवाज है।सभी ने कहा भाई आज के बाद ऐसी गलत प्रथा तोड़ के फ़ेंक दो।इस के बाद सारा दिन उस चूरमे का हवाला दे दे कर शमशेर के साथ मजाक होता रहा।


चाय और चूरमे का भोग करने के पश्चात ऑटो द्वारा हम हर की पौड़ी की तरफ चल दिए।वैसे तो हर की पौड़ी का बस अड्डे से लगभग 15 मिनट का रास्ता है।परन्तु रात की थकान होने के कारण ऑटो से जाने को प्राथमिकता दी गई।ऑटो चालक ने हमें हर की पौड़ी के दूसरी तरफ उतार दिया और इशारे से बता दिया की उस तरफ चले जाओ।हर की पौड़ी की ओर पैदल जाते हुए हमने देखा की पास के मैदान में बहुत से लोग खुले में शौच कर रहे थे।ये देखकर हमें दुःख हुआ कि हरिद्वार जैसे धार्मिक स्थल का क्या हाल है।

सबसे पहले हम हर की पौड़ी के पास बने शौचालय में गए और दस दस रूपये देकर एक महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम दिया।उसके बाद गंगा स्नान और इस जन्म के अब तक के पापों को धोने के लिए हर की पौड़ी पर बने एक घाट पर पहुँच गए।गँगा स्नान तो सभी ने किया पर वास्तविक आनन्द मिला अनिल एवम् शमशेर को।क्योंकि उन्हें तैरना जो आता था।गँगा के शीतल जल में डुबकी लगाने के पश्चात सारी थकान रफूचक्कर हो गई।


शौचालय में समय का सदुपयोग





हर की पौड़ी हरिद्वार


जब हम गंगा घाट पर स्नान कर रहे थे तब सामने वाली पहाड़ी पर बना एक मंदिर सभी का आकर्षित कर रहा था।पता चला कि ये मंदिर माँ मनसा देवी का मंदिर है।थोड़ी सी चर्चा के बाद सभी ने मंदिर के लिए चढ़ाई का फैसला कर लिया।गंगा पर बने पुल को पार करने के बाद सभी उस जगह पहुँच गए जहां से चढ़ाई शुरू होती है।नीचे एक प्रसाद की दूकान पर बैग रख दिए गए जिसके बदले में प्रसाद लेना तय हुआ।मनसा देवी मंदिर की चढ़ाई लगभग दो किलोमीटर है और चढ़ने के लिए सीढियां बनी हुई हैं।काफी भीड़ होने की वजह से धीरे धीरे चढ़ना पड़ रहा था।थोड़ी सी चढ़ाई के बाद मैं और अजय बाकी तीनो से आगे निकल गए।लगभग आधा किलोमीटर के बाद हम एक शिकंजी बनाने वाली महिला की दूकान नुमा जगह के पास रुक गए एवम् बाकी साथियों की प्रतीक्षा करने लगे।उनके आने के बाद हम सभी ने एक एक गिलास शिकंजी पी और आगे बढ़ गए।लगभग 20-25 मिनट में मैं और अजय मंदिर के पास पहुँच गए।ज्यादा भीड़ होने की वजह से हमने अंदर जाने का मन त्याग दिया और मन्दिर के सामने ऊँचे स्थान पर पहुँच गए।वहां बहुत से लोग पहले ही थे और फ़ोटो खींचने का कार्यक्रम चल रहा था।हमने भी यही काम शुरू कर दिया और साथ ही दूसरे साथियो का इन्तजार करने लगे।10-15 मिनट बाद विनोद और अनिल आ गए जबकि शमशेर बीच में ही रुक गया था।उसने अनिल से कहा की वापसी में मुझे साथ ले लेना।
इस जगह से हरिद्वार और गंगा के दृश्य बहुत शानदार लग रहे थे।यहाँ आकर बहुत अच्छा लगा।कुछ समय यहां बिताने और फ़ोटो वगैरह लेने के बाद वापस चल पड़े।थोडा सा नीचे आने पर शमशेर एक बेंच पर बैठ मिल गया।कुछ देर बाद सभी उसी दुकान पर थे जहां बैग और समान रखा गया था


रास्ते से दीखता मनसा देवी मन्दिर

मनसा देवी मन्दिर के लिए चढ़ाई


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