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शुक्रवार, 16 जून 2017

हेमकुंड साहिब यात्रा भाग 3: ऋषिकेश एवं नीलकंठ

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हरिद्वार बस अड्डे पर काफी भीड़ है।जैसे ही कोई बस आती है लोग टूट पड़ते हैं।जिन लोगों के पास सामान ज्यादा है उन्हें ज्यादा दिक्कत हो रही है।यही हाल उन लोगों का है जिन की गोद में बच्चे हैं।लगभग सुबह के ग्यारह सवा ग्यारह का वक्त है और हम लोग ऋषिकेश जाने वाली बस का इंतज़ार कर रहे हैं।बस आई थी थोड़ी देर पहले ही,पर हम लोगों ने उसे जाने दिया सोचा अगली में चलेंगे।भीड़ बहुत ज्यादा थी उसमें।

वैसे बाहर से बड़े ऑटो एवं शायद जीप वगैरह भी ऋषिकेश जा रहे हैं मगर हम बस में जाना चाहते हैं।देहरादून,मुजफ्फरनगर जैसे शहरों के लिए बसों की भरमार है पर ऋषिकेश के लिए काफी वक़्त बीत जाने के बाद भी कोई बस नहीं आ रही है।मगर शरीर से पसीना हरियाणा रोडवेज की बसों की गति से आता जा रहा है।बनियान को तो निचोड़ा भी जा सकता है।गर्मी अपनी शिद्दत से पेश आ रही है।लगभग पौने घण्टे से ऊपर हो चुका है और उत्तराखंड सरकार की आलोचना शुरू हो चुकी है कि इतनी सवारियां होने के बावजूद भी ऋषिकेश के उपेक्षा क्यों की जा रही है।

आखिरकार एक बस आ ही गई जिस पर ऋषिकेश हरिद्वार का बोर्ड लगा है ये बस ऋषिकेश से आई है और बोर्ड के अनुसार तो इसे वापिस ऋषिकेश ही जाना है।लोग बस को देखते ही इसकी तरफ टूट पड़े।तभी बस के ड्राइवर की तरफ से आकाशवाणी हुई,आकाशवाणी नही वज्रपात कहना उचित रहेगा।घोषणा कर दी की बस ऋषिकेश नहीं देहरादून जाएगी।तभी वहां पास ही एक केबिन में बैठे अड्डा कार्यकारी अधिकारी से कुछ लोगों ने ड्राइवर के शिकायत कर दी की वो ऋषिकेश जाने से मना कर रहा है तो अधिकारी ने आकर ड्राइवर को ऋषिकेश जाने का निर्देश दिया।एक बार तो ड्राइवर अपनी बात पर अड़ा परन्तु जल्द ही मान भी गया।

हम लोगों को थोड़ा संघर्ष करनेे के बाद आगे वाली सीटें मिल गई।लगभग 5 मिनटे बाद बस चल पड़ी।रास्ते में जाम ने पुनः बस अड्डे वाली स्थिति उत्पन कर दी।गर्मी,पसीना,बेसब्री और प्यास।पानी की बोतल ने भी हाथ जोड़ दिए।खैर सब्र के अलावा कोई चारा भी नही है।चालीस मिनट का सफर डेढ़ घण्टे में पूरा हुआ और हम ऋषिकेश पहुँच गए।जाते ही सबसे पहले पानी पिया गया और प्यास की बेदर्दी से हत्या की गई।

कई जगह पड़ताल करने के पश्चात हमें बस अड्डे से लगभग आधा किलोमीटर दूर 700 रूपये में दो कमरे मिल गए।सामान कमरों में छोड़ कर अड्डे के पास ही एक होटल पर खाना खाया गया।तत्पश्चात एक ऑटो लिया और लक्ष्मण झूला पहुँच गये।

लगभग ढाई तीन का वक्त हो चुका है।गंगा का यौवन देख कर सभी का मन प्रसन्नचित हो गया है।नहाने का भी मन है पर नहाने का सामान न लाने के कारण नहाना रदद् कर दिया है। राम झूला देखा,लक्ष्मण झूला देखा,सब कुछ देखा ,और भी पता नही क्या क्या देखा।एक-डेढ़ घण्टे तक पूरा आनन्द लिया।फिर किसी से पूछा कि भाई नीलकंठ जाना है,कैसे जाया जाए,बता दो दो मेहरबानी होगी।बताने वाले ने भी पूरा दिल लगा कर बताया कि आप नाव में बैठ कर दूसरी तरफ जाओ।वैसे राम झूले से भी जा सकते हो।उसके बाद बाजार पार करने के बाद वह स्थान आ जाएगा जहां से आपको नीलकंठ के लिए वाहन मिल जाएगा।

नाव से नदी पार करने का निर्णय लिया गया।नाव में यात्रा करना एक नवीन अनुभव था।बाजार पार किया।10 मिनट पैदल चले और आखिरकार उस जगह पहुँच ही गये जहां से हमें नीलकंठ के लिए वाहन मिलना था।आधी गाडी तो हम पाँचों ने घेर ली और बची हुई आधी एक परिवार को सौंप दी गई।नीलकंठ का रास्ता,पहाड़ी रास्ता,जंगली रास्ता, एक तरफ दरिया-ए-गंगा तो दूसरी तरफ फौलाद की तरह सीना ताने हिमालय का एक हिस्सा।मनोहारी दृश्य जो हर किसी का मन अपनी और आकर्षित कर ले।रास्ते में बरसात शुरू हो गई जिस की वजह से हमे गाडी के शीशे बन्द करने पड़े।2 लड़कियां मिली जो ऊपर किसी गाँव की रहने वाली थीं और नीचे ऋषिकेश में अध्ययन कर रही थी।ड्राइवर ने दिनों को गाडी में बैठा लिया।एक-दो झटके लगने के बाद नया सामान भी गाडी में सही फिट हो गया।लड़कियां काफी मिलनसार थी साथ ही वह परिवार भी जो हमारे साथ बैठा था।आपस में बातें करते-कराते,हंसते-हंसाते हम एक घण्टे में ऊपर पहुँच गये।मंदिर में भीड़ कम थी जिन को दर्शन करने थे उनको आसानी से दर्शन हो गए।सभी ने चाय भी पी।लगभग पौने घण्टे बाद वापिस चल पड़े।

ऑटो से ऋषिकेश बस अड्डे पहुंचे।पता चला की चारधाम यात्रा के लिए सभी बसें सुबह साढ़े पांच बजे से पहले ही निकल लेती हैं।ये भी पता चला कि इनमें बुकिंग भी पहले दिन ही करवानी होती है वरना अगले दिन सीट नही मिलती।ये भी पता चला की चारधाम यात्रा के लिए पहले फोटोयुक्त बायोमेट्रिक पंजीकरण करवाना भी जरूरी है।सभी ने पंक्ति में लग कर अपना निःशुल्क पंजीकरण करवाया एवं एक मिनीबस में पांच सीटें भी बुक करवा दी।हमें सुबह पांच बजे पहुँचने की हिदायत दी गई।

होटल वापिस आए खाना कमरे में ही मंगवा लिया और सो गए।सुबह जल्दी जो उठना था।

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