गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

आजकल उकलाना शहर याद नहीं आता

आजकल उकलाना शहर याद नहीं आता
इस शहर के आंचल में गुजरा जमाना याद नहीं आता
बुढ़ाखेड़ा गेट से चलकर अनाज मंडी की तरफ मुड़ना
गीता भवन के आगे जनमाष्टमी महोत्सव का इंतजार करना
देख कर लीलाएं कृष्ण की मन का भावुक हो जाना
गुजरा जो जमाना रामलीलाओं का वो जमाना याद नहीं आता
आजकल उकलाना शहर याद नहीं आता

अपरोच रोड़ पर रँगा साहब के साथ टहलना
श्याम मंदिर के आगे किसी का इंतजार करना
सारा दिन बच्चों को गणित के सवाल समझाना
शाम होते ही खुद बच्चे बन जाना अब याद नही आता
आजकल उकलाना शहर याद नहीं आता

पुरानी मंडी और हनुमान का मंदिर
गोलमण्डी और बाबा श्याम का जागरण
मोचियों वाली गली और सजी हुई दुकानें
निकल कर बारहहट्टे से फिर अपरोच रोड़ आ जाना अब याद नहीं आता
आजकल उकलाना शहर याद नहीं आता

वो भेरी अकबरपुर का मेला वो बाबा रामदेव का मंदिर
वो फाटक के पास से ही भीड़ का हो जाना
वो मेले में साथिओं के साथ घूम कर आना
वो गुब्बारे हाथ में लेकर हवा में लहराना अब याद नहीं आता
आजकल उकलाना शहर याद नहीं आता

चौबीसी की सड़कों पर वो साइकिल चलाना
बसअड्डे तक बेकार में घूम के आना
रेल पटरियों के किनारे शामों का बिताना
गीता भवन के पीछे गोलगप्पे खाना अब याद नहीं आता
आजकल उकलाना शहर याद नहीं आता

वो पूर्णमासी और मंगलवार का आना
सुरेवाला गांव के बाला जी धाम में जाना
वो हनुमान चालीसा पढ़ना और शीश नवाना
वो दोनों हाथों से प्रसाद लेकर खाना अब याद नहीं आता
आजकल उकलाना शहर याद नहीं आता

वो बाबा गोकल नाथ का अखाड़ा
वो बुढ़ाखेड़ा चौक का नज़ारा 
वो कांवड़ियों का आना और शिवालय में जल का चढ़ाना
वो आधी रात को मणी पंडित के मंदिर से चरणामृत का लाना अब याद नहीं आता
आजकल उकलाना शहर याद नहीं आता

वो श्रवण का पानी लेकर आना
राम को बनवास हो जाना
लक्ष्मण का मूर्छित हो जाना हनुमान का संजीवनी लाना
दशहरे के दिन चौबीसी में रावण को जलाना अब याद नहीं आता
आजकल उकलाना शहर याद नहीं आता

कुमार सिनेमा के बाहर पोस्टरों को निहारना
राजलक्ष्मी में छुप कर फिल्में देख कर आना
रामलीला के बहाने शहर की गलियों में धक्के खाना
डोरबेल बजा कर लोगों को नींद से उठाना और फिर भाग जाना अब याद नहीं आता
आजकल उकलाना शहर याद नही आता

वो 26 जनवरी और 15 अगस्त का आना
वो अनाज मंडी में तिरंगा फहराना
वो बच्चों का कार्यक्रम में नाच दिखाना
वो सबसे पीछे खड़े होकर ताली बजाना अब याद नहीं आता
आजकल उकलाना शहर याद नहीं आता

संजय शर्मा'पारीक'


1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

शाबाश मेरे चांद