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छुटमलपुर:पकोड़ों का मुआयना करता चांदी राम |
बस सुबह अपने निर्धारित समय पर विकासनगर से चल पड़ी।बस बड़कोट नहीं जाएगी सिर्फ नौगांव तक ही जाएगी।ये बात कंडक्टर ने टिकट काटते हुए बताई।उसने ये भी बताया कि नौगांव पहुंचते ही आपको बड़कोट के लिए कैब टाइप कोई ना कोई साधन तुरन्त मिल जाएगा।वहां से बड़कोट सिर्फ 20 मिनट के रास्ते पर है।हमें इस बात से कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा।हमें कोई जल्दी नहीं थी।आराम से ही जाना है तो फिर काहे का तनाव।
सुबह उठकर सबसे पहले मैंं नहा लिया था बाकी चारों को बाहर से लाकर चाय भी पिलाई थी।चाय देखकर चांदीराम बहुत खुश हुआ था।वो कुछ समय के लिए केदारनाथ को भी भूल गया था।बस में सीट आरक्षण का एक ही आधार था पहले आओ पहले पाओ।या पहले आके सीट पर अपना कोई सामान रख दो।हमने दूसरे तरीके को अपनाया था।
बस के चलने से लगभग 5 मिनट पहले बस लगभग भर चुकी थी।मैं ड्राइवर के बाऐं वाली सीट पर दूसरे नम्बर पर बैठा हूँ।मेरे से आगे एक छोटा सा लड़का बैठा है जो 7वीं कक्षा का विद्यार्थी है।कालू राम जी बोनट पर बैठे हैं।उन्हें कुदरत के लुभावने नज़ारों का आनन्द लेना है।
जिस सीट पर मैं बैठा हूँ वहां बैठ तो ढंग से 3 ही
आदमी सकते हैं।3 बैठ भी चुके हैं लेकिन कंडक्टर का मानना है कि ये 4 सवारियों की सीट है।लेकिन कम जगह देखकर वहां कोई नहीं बैठता।कुछ लोकल सवारियां खड़ी भी हैं जिन्हें आसपास के गांव तक ही जाना है।
चांदी राम ड्राइवर के पीछे खिड़की वाली सीट पर विराजमान है।अनिल और राजेंद्र उसी लाइन पर थोड़े पीछे एक साथ बैठे हैं।जब बस चलने लगी तभी एक लड़की छोटा सा बैग हाथ में लिए हुए बस में सवार हुई।कंडक्टर ने हमारी सीट की तरफ इशारा कर दिया कि वहां बैठ जाओ एक सीट खाली है।नतीजतन थोड़ी ही देर में वो मेरे और मेरे पास बैठे दूसरे व्यक्ति के बीच में फिट हो चुकी है।
बस विकासनगर से निकल चुकी है और सड़क के दोनों ओर की इमारतों का स्थान हरे भरे खेतों ने ले लिया है।
"पहाड़ी रास्ता कब शुरू होगा"-कालू राम मुझसे पूछ रहा था।
"बस 3-4 किलोमीटर बाद शुरू हो जाएगा"-मैं कुछ बोलता उससे पहले ही ड्राइवर ने जवाब दे दिया।
कालूराम की ये पहली पर्वतीय यात्रा थी इस लिए वो पहाड़ों से मिलने के लिए बेकरार था।इस समय दिन पूरी तरह निकल चुका था।
इसी बीच मेरा ध्यान चांदीराम की तरफ गया।उसका ध्यान भी मेरी ही तरफ था।
मैंने पूछ लिया-"चांदीराम सब ठीक-ठाक है?"
चांदीराम ने मुंह से जवाब देना जरूरी नहीं समझा बस हां में गर्दन हिला दी।
इस समय चांदीराम बोलने की बजाय बस देखने के मूड में है।कभी खिड़की के बाहर प्राकृतिक दृश्य देखने लगता है तो कभी मेरे पास बैठी लड़की को और कभी बुरा सा मुंह बनाके मुझे देख लेता है।
बस को चले लगभग आधा घण्टा हो चुका है।पहाड़ी मार्ग भी शुरू हो चुका है।कालूराम का रोमांच शब्दों के जरिये उसके मुंह से बाहर निकलने लगा है।
"यो तो कसुता मोड़ था यार।जे कोई आपणा ला ड्राइवर होंदा तो बस खाई म पड़ी मिलदी।"-कालूराम ने बस के ड्राइवर की बड़ाई में या यूं कह सकते है कि मैदानी ड्राइवरों पर अविश्वास जताते हुए कहा।
वैसे उसके शब्दों की बजाए उसके चेहरे के भाव उसके मन में चल रहे कौतूहल को ज्यादा बयान कर रहे थे।मुझे लगने लगा कि कालूराम इन रास्तों को देखकर आश्चर्यचकित होने के साथ साथ डर भी रहा था।
कालूराम की बातें सुनकर पास बैठी लड़की जो अब तक चुप बैठी थी।बोलने पर मजबूर हो गयी।
"आप लोग घूमने आए हो क्या?"-उसने मुझसे पूछा।
"हां, हम लोग यमुनोत्री जा रहे हैं और उसके बाद गंगोत्री जाएंगे।"-मैंने जवाब देते हुए कहा।
"वैसे हम लोग हरियाणा से हैं।"-मैंने बात आगे बढ़ाई।
"ये मेरे साथी हैं।"-मैंने कालूराम की तरफ इशारा करते हुए कहा।साथ ही ये भी बता दिया कि 3 साथी पीछे बैठे हैं।
अब हमारी बातचीत शुरू हो चुकी है।लड़की का नाम साक्षी डिमरी है।डिमरी उसका सरनेम है।इसका गांव नौगांव से भी आगे पुरोला मार्ग पर है।इसके पिताजी पुजारी का काम करते हैं।इसकी एक बहन हरियाणा में ब्याही है।इस लिए इसके मन में हरियाणा के लोगों के लिए सम्मान का भाव है।गांव में सिर्फ इसके दादा दादी रहते हैं।इसके पिता ने गांव को छोड़कर विकासनगर में मकान बना लिया है।इसका एक महत्वपूर्ण कारण बच्चों की पढ़ाई और गांव में सुविधाओं का अभाव होना है।साक्षी संगीत की छात्रा है तथा स्नातक तृतीय वर्ष में है।
पहाड़ो में पलायन
पहाड़ो में सुविधाओं का अभाव होना और जीवन कठोर होने की वजह से साल दर साल भारी संख्या में पलायन पिछले कई सालों से हो रहा है।पलायन की वजह से गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं।सरकार की सुस्ती ने पलायन बढाने में आग में घी का काम किया है।पहाड़ी युवा पहाड़ों में नहीं रहना चाहता।युवाओं की सोच अपने पूर्वजों की तरह पहाड़ में रहकर कठोर जीवन जीने की नहीं रही। उनको लगता है कि दिल्ली,देहरादून और हल्द्वानी जैसे शहर उनके सपनों को पूरा कर सकते है।यही सोच पहाड़ी युवा लड़कियों की है।वो भी पहाड़ी ससुराल की बजाए मैदानी ससुराल को ज्यादा महत्व देती हैं ताकि उन्हें कठोर जीवन ना जीना पड़े।
डेढ़-दो घण्टे चलने के बाद बस एक जगह विश्राम के लिए रुकी।यहां 3-4 छोटे छोटे होटल और दुकानें थीं।सुबह विकासनगर में सभी ने बस चाय ली थी सोचा कुछ खा लेते हैं।मैंने साक्षी को भी आमंत्रित किया कि वो भी हमारे साथ कुछ ले ले।एक दुकान में हमनें ठंडे का ऑर्डर दे दिया साथ में कुछ नमकीन।यहां मैंने साक्षी का परिचय सभी से करवाया।चांदीराम से भी।
वहां बैठे बैठे मैंने जलने की कुछ बदबू सी महसूस की। कुछ ही देर में तो बदबू बहुत ज्यादा हो गयी।क्या जल रहा है कुछ समझ नहीं आया।फिर थोड़ा नाक पर जोर दिया तो महसूस हुआ चांदीराम की तरफ से जलने की बदबू आ रही है।मुझे समझने में कोई देर नहीं लगी।
"कोई बात नहीं बेटा,अभी तो और भी जलना है।"-मैंने ये बात मन में ही रख ली चांदीराम से नहीं कही।
"साक्षी,हमारे चांदीराम जी अभी तक अविवाहित हैं।आपके पहाड़ो में इनके लायक कोई लड़की है तो बताओ।"-राजेन्द्र ने चांदीराम के प्रति अपनत्व दिखाते हुए साक्षी से कहा।
"इन्होंने जब से राम तेरी गंगा मैली फ़िल्म देखी है,कसम खा ली है कि शादी किसी पहाड़ी मंदाकिनी से ही करूंगा।है कोई मंदाकिनी आपकी नजर में इनके लायक?"-आवाज कालूराम की थी।
दोनों की बात सुनकर साक्षी ने चांदीराम को गौर से देखा।चांदीराम ने बाल ठीक करने के लिए अपना बायां हाथ उठाया और फिर कुछ सोचकर वापिस नीचे कर लिया।शायद शर्म आ गयी थी।
इससे पहले की वो कोई जवाब देती कंडक्टर ने सिटी बजा दी।सभी बस की ओर चल पड़े।
बस चलने के बाद साक्षी मुझसे पूछने लगी-"क्या ये सच में कंवारे है?"
"हाँ।"-मेरा जवाब था।
"इन्होंने शादी क्यों नहीं की?"-उसने अगला प्रश्न दाग दिया।
"आपके गांव तक गाड़ी जाती है या उतर कर पैदल चलना पड़ता है?"-कालूराम की आवाज थी।वो साक्षी से पूछ रहा था।
"जहां बस उतारेगी वहां से 2 किलोमीटर पहाड़ पर पैदल चढ़ना पड़ेगा तब जाकर घर पहुंचूंगी।"-साक्षी ने जवाब दे दिया।
कालूराम अब भी संतुष्ट नहीं हुआ,बोला-"फिर आप लोग अपने साधन कहाँ खड़े करते हो?या रखते ही नहीं हो?"
"नहीं रखते तो हैं लेकिन नीचे सड़क पर ही खड़े करते हैं कोई जगह देख के।"-साक्षी का जवाब था।
"चोरी का डर नहीं होता?"-फिर अगला सवाल।
कालूराम सवाल पूछता रहा।साक्षी जवाब देती रही।मैं दोनों की बात सुनता रहा।
उधर चांदीराम कभी तो मुझे और कभी साक्षी को देखता रहा।
....और बस नौगांव पहुंच गई।
नौगांव
नौगांव लगभग ग्यारह सौ मीटर ऊँचाई पर बसा एक कस्बानुमा गांव है।गांव के पास से ही यमुना नदी बहती है।ये गांव उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले के अंतर्गत आता है।यहां आने के बाद उत्तराखंडी पहाड़ी गांव में उपस्थित होने का अहसास होने लगता है।यहां से एक रास्ता पुरोला जाता है और एक बड़कोट।बड़कोट की दूरी यहां से लगभग 10 किलोमीटर है।
"उसने अपना नम्बर दिया होगा?"-बस से उतरते ही चांदीराम ने मुझसे पूछा।
"कालूराम को दिया है।"-मैंने कालूराम की तरफ इशारा करते हुए जवाब दिया।
बस पुरोला की ओर चली गयी और हम लोग बड़कोट वाले रास्ते पर खड़े हो गए जहां से हमें बड़कोट के लिए साधन मिलना था।तभी एक बुलेरो वाला आया और हमसे पूछा-"बड़कोट जाना है।"
"बिल्कुल।"
"सभी अपने बैग गाड़ी की छत पर रख दो और बैठ जाओ।"
आधे घण्टे बाद बुलेरो ने हमें बड़कोट में उतार दिया।
उतरते ही चांदीराम की आवाज आयी-
"हमें केदारनाथ का साधन यहीं से मिलेगा क्या?"

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बड़कोट से थोड़ा आगे अनिल और कालूराम 
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