इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए
यहां क्लिक करें।
|
यमुनोत्री में अनिल की साधना |
बड़कोट
लगभग 1300 मीटर की ऊंचाई पर यमुना किनारे बसा बड़कोट एक ठेठ पहाड़ी कस्बा है।यहां यात्रियों के ठहरने और खाने के लिए बहुत से होटल और गेस्ट हाउस बने हुए हैं।बड़कोट से एक रास्ता जानकीचट्टी जाता है तथा एक रास्ता धरासू बेंड जाता है।जानकीचट्टी यमुनोत्री का बेस कैम्प है जहां से यमुनोत्री के लिए चढाई शुरू होती है।जानकीचट्टी की बड़कोट से दूरी लगभग 45 किलोमीटर है।यहां से दिन में 2-3 बस भी जानकीचट्टी जाती है जिनके जाने का निश्चित समय है।बस के अलावा छोटी गाड़ियां जैसे सूमो,मैक्स,क्रूजर भी अच्छी संख्या में यात्रियों को लेकर जानकीचट्टी जाती है।जो शेयरिंग में आसानी से मिल जाती है।
बड़कोट पहुंचते ही सबसे पहले निर्णय लिया गया कि कोई ढंग का होटल देखकर खाना खाया जाए।एक होटल पर खाना खाने के बाद होटल वाले से पूछा कि जानकीचट्टी के लिए बस के बारे में पूछा।होटल वाले ने बताया कि बस तो 2 घण्टे बाद है।अगर आप बस में जाओगे तो लेट हो जाओगे।इसी रास्ते पर थोड़ा आगे जाने पर एक पुल आएगा उसे पार करते ही टैक्सी स्टैंड है वहां चले जाओ।आपको वहां तुरन्त कोई छोटा साधन मिल जाएगा।उसने ये भी बताया कि अगर आप एक-डेढ़ बजे तक जानकीचट्टी पहुंच जाते हो तो आज ही यमुनोत्री जाकर वापिस आ सकते हो।और ये भी सम्भव है कि आपको बड़कोट का साधन भी मिल जाए।उसने अपना फोन नम्बर भी दिया और कहा कि अगर आप बड़कोट लेट पहुंचे तो शायद आपको कोई होटल खुला ना मिले।आप मुझसे फोन पे बात कर लेना मैं आपको यहां कमरा दे दूंगा।
खैर बड़कोट से हमें जानकीचट्टी के लिए एक गाड़ी मिल गयी और कुछ देर बाद हम जानकीचट्टी वाले रास्ते पर पर्वतों के मनमोहक दृश्यों को निहार रहे थे।जैसे जैसे गाड़ी आगे बढ़ रही थी नज़ारे और भी खूबसूरत होते जा रहे थे।दूर पहाड़ों की बर्फ से सफेद हुई चोटियां बहुत अच्छा अहसास करवा रही थी।वैसे भी मेरे लिए मंजिल से ज्यादा रास्ते मायने रखते हैं।लगभग 10 किलोमीटर चलने के बाद अचानक गाड़ी की चाल कम हो गयी।ड्राइवर ने थोड़ा आगे चलकर गाड़ी रोक ली।पता चला कि गाड़ी में कोई समस्या हो गयी है।ड्राइवर ने सभी सवारियों से कहा कि मैं आपको दूसरी गाड़ी में बैठा दूंगा क्यों कि मुझे नहीं लगता कि इस गाड़ी से हम जानकीचट्टी पहुंच पाएंगे।तभी एक गाड़ी विपरीत दिशा से आती दिखाई दी।ड्राइवर ने वो गाड़ी रुकवा ली उसमें बस 2-3 ही सवारी थी।ड्राइवर ने उससे बात की कि तू मेरी सवारियों को जानकीचट्टी ले जा और मैं तेरी सवारियों को लेकर बड़कोट चला जाऊंगा।ड्राइवर ने दूसरी गाड़ी के ड्राइवर को अपनी समस्या अच्छे से समझा दी।लेकिन दूसरे ड्राइवर की भी अपनी कोई समस्या थी जिसके चलते बात परवान नहीं चढ़ी।तभी अनिल का ध्यान गाड़ी की छत पर गया।चांदीराम गाड़ी की छत से हमारी बैग नीचे उतार रहा था।
"चांदीराम,बैग क्यों उतार रहा है?"-अनिल ने चांदीराम को आवाज देते हुए पूछा।
"जब दूसरी गाड़ी में जाना है तो बैग तो उतारनी पड़ेगी।"-चांदीराम ने जवाब देते हुए कहा।
"तू एक काम कर नीचे आजा।एक बार बात तो बनने दे दूसरी गाड़ी वाले के साथ।"-राजेन्द्र प्यार से चांदीराम को कह रहा था।
लेकिन चांदीराम नीचे तभी उतरा जब निश्चित हो गया कि अब यही गाड़ी धीरे धीरे चलते हुए जानकीचट्टी जाएगी।
ड्राइवर की कोशिश कामयाब नहीं हो पाई थी और अंत में ड्राइवर ने गाड़ी के चलने का कोई जुगाड़ कर लिया था।हर 4-5 किलोमीटर बाद जुगाड़ सेट करना पड़ता था।इस तरह जुगाड़ को सेट करते करते गाड़ी जानकीचट्टी की तरफ बढ़ती रही।
इस रास्ते पर कई चट्टियाँ आती हैं जैसे स्यानचट्टी,रानाचट्टी,हनुमानचट्टी और सबसे आखिर में आती है जानकीचट्टी।ये सभी इस रास्ते पर आने वाले गांव के नाम है।जानकीचट्टी से 5-6 किलोमीटर पहले आती है हनुमानचट्टी।कुछ साल पहले जब जानकीचट्टी तक सड़क नहीं बनी थी तब यहीं से यमुनोत्री के लिए पैदल मार्ग शुरू होता था।जैसे जैसे हम जानकीचट्टी की तरफ बढ़ते जाते हैं ऊंचाई भी बढ़ती जाती है और उसी अनुपात में प्राकृतिक सुंदरता भी।
खैर हम लोग लगभग एक बजे के करीब जानकीचट्टी पहुंच गए।यहां पहुंचते ही सबसे पहले मेरे लिए जरूरी था कोई नाई की दुकान देखना ताकि जब रास्ते मे फ़ोटो खींची जाए तो फ़ोटो ढंग की आए ना आये थोबड़ा तो ठीक आ ही जाए।जब मैंने सेव करने के अपनी आधिकारिक निर्णय के बारे में सभी को बताया तो किसी ने कोई एतराज नही किया।एक आदमी को एतराज था लेकिन उसने मुंह से नहीं कहा।उसे मुंह से कहने की जरूरत भी नहीं थी उसका चेहरा सब कुछ बता रहा था।
खैर जल्द ही मेरी सेव हो चुकी थी।तब तक सभी फैसला ले चुके थे कि चढाई आज ही शुरू करेंगे और आज ही वापिस आएंगे।एक होटल पर बैग रख दिये गए।होटल चलाने वाली एक औरत थी।जब अनिल ने उससे पूछा कि बैग रखने के लिए क्या कुछ लोगी तो उसका जवाब था कि जो आपका मन करे दे देना।
अब बारी थी यात्रा शुरू करने की।
|
बड़कोट होटल के पीछे का दृश्य |
|
बड़कोट होटल के पीछे |
|
रास्ते में बहती यमुना |
|
चांदीराम गाड़ी की छत पर |
|
पहाड़ो की चोटियों पर बर्फ |
|
सेव करवाने के बाद |
|
यात्रा की शुरुआत चाय पीकर |
इस यात्रा वृतांत का अगला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें