मंगलवार, 19 नवंबर 2019

यमुनोत्री से गंगोत्री 1: विकासनगर की रात

जितना जरूरी धरती के लिए सूर्य के चारों ओर चक्कर काटना है और जितना जरूरी इस सृष्टि के लिए दिन और रात का बनना है।शायद उतना ही जरूरी चांदी राम के लिए केदार नाथ जाना है।चांदी राम को कई दिनों से लगने लगा है कि अगर वो इस जीवन में केदारनाथ नहीं जा पाया तो उसका इस धरती पे आना व्यर्थ हो जाएगा।
मई 2019 की एक शाम-

विनोद के प्रधानमंत्री जनऔषधालय में बैठे बैठे चांदीराम ने धरती पे अवतरित होने का अपना  मकसद अनिल को बताया।

'तैयारी कर ले अगले महीने चलना है'-अनिल ने चांदी राम का मनोबल बढाते हुए कहा।

'पक्का चलेंगे?'-शायद चांदीराम को अनिल की बात पे यकीन नहीं हुआ।

'चांदीराम तन यार अनिल की बात प यकीन कोनी, क्या आजतक ईसा होया ह के अनिल कोई बात कही हो और वो ना होई हो,तू तयारी कर आगले महीने चालना ह तो चालना ह बस'-विनोद ने अनिल की बात पर आधिकारिक मोहर लगाते हुए चांदीराम को भरोसा दिलाया।

जून 2019 का नौवां दिन-

रात के साढ़े 9 बजे के करीब विकास नगर काफी शांत लग रहा है।इस शहर की शांति के अलावा भी कुछ कारण हैं जिनकी वजह से ये शहर मुझे अच्छा लगा है।अभी उन पर चर्चा करना ठीक नहीं लग रहा।खैर! फिलहाल मैं और अनिल होटल से निकल कर बाहर आ गए हैं।हमें एक ठेके की तालाश है वो भी अंग्रेजी ठेके की।बाहर एक ढाबे पे काम करने वाले छोटू टाइप बच्चे ने हमें ना केवल ठेके का रास्ता बता दिया है बल्कि हाथ के इशारे से दिखा भी दिया है कि वही वो ठेका है जिसकी आपको तालाश है।हमें तालाश जरूर है लेकिन अगर यहां ठेका ना भी होता तो भी हमें कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ना था।जिन लोगों को फर्क पड़ना है वो लोग होटल में बैठे हैं और वो लोग हमारे वापिस आने की प्रतीक्षा उसी बेसब्री से कर रहें हैं जिस बेसब्री से गोपियां श्रीकृष्ण के आने की प्रतीक्षा करती थीं।

कुछ ही देर हम दोनों ठेके के जंगले के पास 
खड़े थे।अनिल ने एक विशेषज्ञ की तरह ठेके वाले से कुछ देर बात की उसके बाद सामान लिया,पैसे दिए और मुझे वापिस चलने का आदेश दे दिया।

'नमकीन में क्या कुछ लेना ठीक रहेगा'-चलते चलते अनिल ने मुझसे सुझाव मांगा।

'एक सब्जी ले लेते हैं,2-3 पैकेट मूंग की दाल ले लेंगे,एक आधा कोई और आइटम देख लेंगे'-मैनें गंभीरता से एक बहुमूल्य सुझाव अनिल के सामने पेल दिया।

यहां मेरा सुझाव बस उतना ही महत्व रखता था जितना महत्व कांग्रेस राज में राजमाता  के समक्ष मनमोहन के विचारों का होता था।फैसला तो अनिल हमेशा ले ही चुका होता है बस राय लेने का एक मात्र कारण यही होता है कि सभी को यही लगे कि सबकुछ लोकतांत्रिक तरीके से हो रहा है।वही लोकतंत्र जो आपातकाल के समय इंदिरा गांधी की जनसभाओं में सुनने को मिलता था।होटल में पहुंचने से पहले अनिल ने नमकीन सहित सारा जरूरी सामान खरीद लिया और हमने होटल की ओर कूच किया।

कमरे में 3 लोग हमारा इंतजार कर रहे हैं उनमें से पहले नम्बर पर चांदीराम जी हैं जो किसी परिचय के मोहताज नहीं है।दूसरे साथी है राजेन्द्र पात्तड़ और तीसरे नम्बर पर आते हैं कालूराम।चांदीराम आजकल विनोद का प्रधानमंत्री जन औषधालय सम्भाल रहे हैं।राजेन्द्र और कालूराम निजी स्कूलों में अध्यापन कर रहे हैं।राजेन्द्र उकलाना के एक प्राइवेट स्कूल में है जबकि कालूराम हाँसी में एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल के बच्चों का सामाजिक विज्ञान पढ़ाता है।कालूराम ने मेरे और अनिल के साथ पूर्व मल्टीमीडिया काल में बीएड की थी।तभी से हमारा याराना बरकरार है।

हमारे होटल के बाहर एक मिनी बस खड़ी है जो सुबह हमें बड़कोट लेकर जाएगी।बस के चलने का समय साढ़े 5 बजे का है।हमारी मुलाकात बस के ड्राइवर और कंडक्टर से नहीं हुई है।होटल के बाहर एक-दो होटल और हैं जो सिर्फ खाने के लिए हैं उन्ही होटल के लोगों द्वारा हमें ये जानकारी मिली है।हमें ये भी पता चल गया है कि हमें पहले सीट बुक करवानी की आवश्यकता नहीं है।बस में प्रायः आसानी से सीट मिल जाती हैं।हम लोग सुबह उकलाना से चले थे।छुटमलपुर तक हरियाणा रोडवेज में आये।उसके बाद देहरादून तक एक निजी वाहन में।देहरादून में एक ऑटो वाले का सुझाव मानकर हम लोग विकास नगर पहुंचे।ऑटो वाले ने बताया था कि वहां सुबह जल्दी ही यमुनोत्री के लिए साधन मिलना शुरू हो जाते हैं।वहां होटल भी देहरादून की उपेक्षा बहुत सस्ते मिल जाएंगे।ऑटो वाले की बात काफी हद तक सही निकली।

हमारे कमरे पर पहुंचते ही सभी के चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान घर कर गयी।ये मुस्कान उस सामान के कारण थी जो हमारे हाथ में था।
इस कमरे में 2 कमरे एक साथ मिले हुए थे।एक कमरे में 3 बेड थे तथा दूसरे में 2 बेड।दोनों कमरों को जोड़ने वाला बीच में एक दरवाजा था।हमें ये कमरा मात्र 500 रुपये में आसानी से मिल गया था।साफ सफाई भी एक नम्बर की थी।चांदीराम के लिए ये भी खुश होने के कारणों में से एक था।

कार्यक्रम शुरू होने से पहले राजेन्द्र ने कहा-"कल के कार्यक्रम की रूपरेखा बता दी जाए तो ठीक रहेगा।फिर उसी हिसाब से सुबह नहाना धोना कर लेंगे।"

"भाइयों को सारी डिटेल बता दे अच्छी तरह"- अनिल ने मुझे इशारा करते हुए कहा।

"कल बाहर खड़ी बस साढ़े 5 बजे चलेगी।इस बस द्वारा हम बड़कोट पहुंचेंगे।उसके बाद यमुनोत्री और अगले दिन गंगोत्री के लिए प्रस्थान करेंगे।सभी को सुबह 4 बजे उठना है और तैयारी करनी है।"-मैंने कम शब्दों पूरी बात बता दी।

"केदारनाथ कब जाएंगे?"चांदीराम प्रश्नवाचक नज़रों से सभी को ताक रहा था।

"गंगोत्री के बाद केदारनाथ तो चलना ही है"-अनिल ने चांदीराम की शंका का समाधान करते हुए कहा।

चांदीराम के कलेजे में ठंडक पड़ते ही कालूराम ने अपने हाथों से पैक बनाते हुए कार्यक्रम का शुभारम्भ कर दिया।साथ ही एक हिदायत भी दे कि उतनी ही लेना जितनी ओट सको।

साथ ही अनिल ने फतवा जारी करते हुए कहा-"जितनी पीनी हो पी लेना आगे चारधाम यात्रा शुरू हो जाएगी।कोई नही पिएगा।"

ये बात सुनते ही राजेन्द्र और कालूराम को सांप सूंघ गया जैसे उनका अपनी प्रेयसी से ब्रेकअप हो गया हो।दोनों ने कातर नज़रों से मेरी तरफ देखा।

"चिंता मत करो,सब ठीक होगा।इत्मीनान रखो"-मैंने उनको विश्वास दिलाते हुए कहा।

मेरी बात सुनकर दोनों की जान में जान आयी।इधर मैं सोच रहा हूँ चलनी तो अनिल की ही है पर आश्वासन से किसी को खुशी मिलती है तो अपना क्या जाना है।

सभी 2-2 पैक ले चुके हैं और मैंने घोषणा कर दी है कि अब मेरी और लेने की आसंग नहीं है।

"तुझसे यही उम्मीद थी।खत्म हो चुका है अब तू।महफ़िल में बैठने के लायक नहीं रहा।"-चांदी राम ने मुझ पर कटाक्ष करते हुए कहा।

"चांदीराम की बात से मैं हंडर्ड प्रतिशत सहमत हूं।बामण कोई काम गा कोनी रया ईब।"-कालूराम ने चांदीराम का साथ देते हुए कहा।

कुल मिला कर मुझे तीसरा पैक लेने के लिए मजबूर कर दिया गया है।ये अहसान करते हुए की छोटा सा बनाया है,तीसरा पैक पकड़ा दिया गया।उधर चांदीराम ऐसे खुश है जैसे उसने कोई राष्ट्रहित का काम कर दिया हो।

3 पैक अंदर जाने के बाद चांदीराम के चेहरे पर अलग ही भाव नज़र आने लगे हैं।मैं लेट गया हूँ।मुझे छोड़कर सभी गहन मन्त्रणा में व्यस्त हैं।कालूराम कह रहा है कि आज बहुत अच्छा लग रहा है काफी समय बाद दोस्तों से मिला हूँ।इधर अनिल कुछ कह रहा है।राजेन्द्र कुछ कह रहा है।बातों की खिचड़ी पक रही है।

मैं अर्धनिंद्रा में लेटा हुआ हूँ।शायद उन लोगों ने चौथा पैक बना लिया है।ऐसा मुझे कुछ कुछ अहसास होता है।उनकी बातें लगातार जारी हैं।

"पहले हम केदारनाथ ही जाएंगे।"-जोर से आवाज आई।

मैं चमक गया लगा कोई आकाशवाणी हुई है।मैं उठ गया और सभी की तरफ देखा।चांदीराम का चेहरा आवेश में तमतमा रहा था।चांदीराम की नजरें अनिल की ओर थी।मुझे लगा अगर चांदीराम ने अपनी नज़रे कुछ समय तक इसी तरह अनिल की तरफ गड़ाए रखी तो अनिल भस्म हो जाएगा।कालूराम और राजेंद्र भी एक पल के लिए मानो पत्थर बन गए थे।चांदीराम के अंदर का विश्वामित्र बाहर आ चुका था।अनिल ने मौके की नज़ाक़त को भांपते हुए हथियार डाल दिये और कहा-"पहले केदारनाथ ही चलेंगे।"

इससे भी शायद चांदीराम को यकीन नहीं हुआ और उसकी स्थिति टस से मस नहीं हुई।

अनिल ने मुझे आदेश देते हुए कहा-"कार्यक्रम कुछ इस प्रकार बना कि पहले केदारनाथ आये और यमुनोत्री-गंगोत्री बाद में।"

मैंने कहा ऐसा ही होगा।

चांदीराम इतना सुनने के बाद शांत होने लगा।अनिल ने अगला फरमान सुनाया-"जल्दी से लास्ट पैक बनाओ और सो जाओ सुबह जल्दी उठना है।"

अनिल चांदीराम से कोई पंगा नहीं लेना चाहता था।


यात्रा में चलने से पहले विनोद के मेडिकल के आगे

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गुरुवार, 16 मई 2019

अजमेर-पुष्कर यात्रा-4(पुष्कर)

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सावित्री मन्दिर के रास्ते में

पुष्कर में दूसरे दिन की शुरुआत कुल्हड़ में गर्मागर्म चाय के साथ होती है।चाय हमारे पास नही आई हमें ही चायवाले के पास जाना पड़ा,जो धर्मशाला के मुख्य दरवाजे के पास चाय बना रहा था।कुल्हड़ में चाय पीने के 5 रुपये अलग से देने पड़े।

8 बजे तक सभी नहा धोकर तैयार हो चुके थे।हमने कमरा खाली कर दिया।अपना सामान हम लोगों ने धर्मशाला के दफ्तर में रख दिया और बोल दिया कि जब हम सावित्री मन्दिर जाकर वापिस आएंगे तब ले लेंगे।बाहर ठंड बहुत ज्यादा है।धर्मशाला के बाहर बहुत सी खाने पीने की दुकानें हैं।बहुत से दुकान वालों ने अपनी दुकानों के बाहर हाथ गर्म करने के लिए अलाव लगा रखे हैं।थोड़ी देर सभी ने अलाव का आनन्द लिया।साथ ही सुबह के नाश्ते के बारे में विचार किया गया।तभी मेरा ध्यान राजस्थान सरकार द्वारा संचालित अन्नपूर्णा रसोई की ओर गया।अन्नपूर्णा रसोई की लाल रंग की गाड़ी वहीं पास ही खड़ी थी।उस गाड़ी में 5 रुपये का नास्ता और 8 रुपये के खाना उपलब्ध था।हमें लगा कि हमें सरकार की इस योजना का मुआयना करना ही चाहिए।30 रुपये की 6 प्लेट ले ली गयी।नास्ते में पोहे थे साथ में कुछ और भी था।क्या था अब याद नहीं आ रहा।इतना तो याद है कि गुणवत्ता अच्छी थी।उसके बाद सभी ब्रह्मा मन्दिर की और चल पड़े।मन्दिर में प्रवेश के लिए सीढियां बनी हुई है।बाहर बहुत से प्रसाद की दुकानें हैं।मन्दिर में कैमरे के प्रयोग पर पाबंदी थी।मन्दिर में ज्यादा भीड़ नही थी।अंदर दीवारों पर हिंदी,उर्दू आदि भाषाओं में दानकर्ताओं के नाम लिखे हुए थे।10-15 मिनट का लंबा समय मन्दिर परिसर में बिता का हम लोग बाहर आ गए।

अब हमारा विचार सावित्री मन्दिर जाने का था।ब्रह्मा मन्दिर के पीछे एक पहाड़ी पर सावित्री मन्दिर बना है।ऊपर चढ़ने के लिए सीढियां बनी हुई है।लगभग डेढ़ किलोमीटर की ही चढाई है।पिछले कुछ समय से मन्दिर जाने के लिए रोप वे भी बना दिया गया है।अब दर्शनार्थियों के पास ऊपर जाने के लिए दोनों विकल्प उपलब्ध हैं।मतलब ये है कि अगर आपकी पैदल चलने की आसंग नही है तो आप रोप वे का प्रयोग कर सकते हैं।बस आपको उसके लिए कुछ शुल्क देना पड़ेगा।

     फैंसला ये हुआ चूंकि शमशेर के पांव में दिक्कत होने की वजह से उसके लिए सीढियां चढ़ना आसान नहीं होगा इसलिए शमशेर रूप वे से जाएगा और सभी लोग पैदल कूच करेंगे।मोंटू ने भी आवाज उठाई की मेरे लिए भी रोप वे से जाना ही उचित रहेगा।मुझे भी सीढियां चढ़ने में समस्या आ सकती है।मोंटू 90 किलो का एक आलसी आदमी है।2 कदम पैदल चलकर भी राजी नहीं है।लेकिन वो सीढियां चढ़ सकता है उसे कोई दिक्कत नहीं होगी।हाँ अगर सीढ़ियों को दिक्कत हो जाये तो कुछ कहा नही जा सकता।खैर मोंटू की आवाज दबा दी गयी है।अब उसे पैदल ही ऊपर जाना होगा।
    इस समय साढ़े 9 बजने वाले होंगे और हम लोगों ने ऊपर चढ़ना शुरू कर दिया है।शमशेर को रोपवे ऑफिस में छोड़ चुके हैं।ज्यादा जोरदार चढाई नहीं है।हम आराम से सीढ़ियां चढ़ते जा रहे हैं।हमें चलते हुए 5-7 मिनट ही हुए है तभी हम शमशेर को रोपवे की टोकरी में ऊपर चढ़ते हुए देखते हैं।उसे देखकर मोंटू आहें भर रहा है।अगर चुस्ती की बात करें तो अजय को आलसहीन कहा जा सकता है।अजय सबसे पहले उठ जाता है और नहा लेता है।मोंटू को छोड़कर हम सभी ने बहुत सी यात्राएं एक साथ की हैं।अजय हमेशा सब से पहले उठ जाता है या ये भी हो सकता है कि सोता ही ना हो।विनोद शारीरिक रूप से हल्का है इसलिए इसको चलने में कभी कोई दिक्कत नहीं आती।वैसे चलने में और चढ़ने में हम सभी एक जैसे ही हैं।अनिल शारीरिक रूप से फिट है।शरीर में फुर्ती भी है।शमशेर के पांव में दिक्कत होने की वजह से उसको चढाई में दिक्कत आती है।समतल में चलने में वी भी पूरी तरह सक्षम है।अब बात रही मेरी,तो मेरी खास बात ये है कि मैं अपने मुंह से अपनी बड़ाई कभी नही करता।

      हम ऊपर चढ़ते जा रहें है और साथ ही बीच-बीच में रुककर फ़ोटो भी ले रहें हैं और सेल्फियां भी।हमें रास्ते मे विदेशी पर्यटक भी मिल जाते है।मोंटू एक दो के साथ फोटो भी लेता है।बीच बीच में हम नीचे पुष्कर शहर को देखते हैं।पुष्कर का नज़ारा बहुत मस्त लगता है और उससे भी मस्त लगता है ब्रह्म सरोवर को देखना।वास्तव में ब्रह्म सरोवर ऊपर से देखने में बहुत मनमोहक लगता है।

हम आधी से भी ज्यादा दूरी तय कर चुके है तभी पीछे से एक अंग्रेज सिर्फ कैपरी पहने हुए अर्धनग्न अवस्था में दौड़ता हुआ हम से आगे निकल जाता है।हम उसे आवाज भी देते है मगर वो नही रुकता।उसकी गति कहीं भी कम नही होती।वो थोड़ी ही देर में हम से काफी आगे निकल गया।हम चलते रहते हैं।बीच बीच में हम उस अंग्रेज को भी देखने की कोशिश करते है।वो अपनी उसी गति से भागता हुआ चला है रहा है।हम उसे मन्दिर तक वैसे ही जाते हुए देखते हैं।तभी अनिल मुझसे कहता है-

"ये होती है फिटनेस"
"मुझे क्या कह रहा है फिर,मोंटू को समझा।"
"तू भी मोंटू का ही भाई है।"
"तो तू क्या मुझसे कम है फिर।"

इसी तरह बातें करते हुए हम लोग मन्दिर की नजदीक पहुंच जाते हैं।आखिर की चढ़ाई थोड़ी मुश्किल लगती है।खैर लगभग 40-45 मिनट में हम लोग मन्दिर पहुंच जाते है।शमशेर बहुत पहले ही पहुंच चुका है।वैसे इतना समय नहीं लगता लेकिन हम आराम में मस्ती करते हुए आये हैं तब इतना समय लग गया।मन्दिर से पूरा पुष्कर नज़र आ रहा है।हम लोग मन्दिर में और आस पास पहाड़ी पर घूमते हैं।जिसे माता के दर्शन करने थे वो दर्शन भी कर चुका है।मन्दिर में हमें वो अंग्रेज भी मिलता है जो भागता हुआ ऊपर आया था।लेकिन उससे कोई बात नही होती।मन्दिर में एक विदेशी जोड़ा भी मौजूद है।मैं और शमशेर उन से बातें करते हैं।बातों में ही पता चलता है कि वो लोग दम्पति ना होकर अच्छे दोस्त हैं।मोंटू की उनके साथ भी फ़ोटो लेने की इच्छा होती है।मोंटू के साथ बाकी सभी भी उनके साथ फोटो खिंचवाते हैं।कुछ समय मन्दिर में बिताने के बाद वापिस चलने का विचार बनता है।मोंटू कहता है मैं रोपवे से जाऊंगा।मेरी जाने की टिकट कटवा दो।चलो कटवा देते हैं भाई।मोंटू का दुर्भाग्य ऊपर टिकट नहीं कटती।नीचे ही कटती है और वो भी दोनों तरफ की मतलब आने जाने की।फिर मोंटू रोपवे के कर्मचारी से अनुरोध करता है कि मुझे भी मेरे साथी के साथ बैठने दो क्यों कि लगभग सीटें खाली ही थीं।कर्मचारी ने मना कर दिया कि ये मेरे हाथ में नहीं है।निराश के भाव लिए मोंटू भी हमारे साथ चल पड़ता है।लगभग 20 मिनट में हम नीचे पहुंच जाते हैं।धर्मशाला की तरफ जाते हुए रास्ते मे एक होटल पर खाना खाया गया।मोंटू को इस यात्रा में दाल-बाटी-चूरमा बहुत पसंद आया।यहां पर भी उसने दाल-बाटी की ही फरमाइस की।इच्छा पूरी कर दी गयी।धर्मशाला से बैग उठाई और पुष्कर बस स्टैंड पहुंच गए।शाम को सवा छह बजे जयपुर से हिसार के लिए सवारी गाड़ी है।हमारा इरादा इसी गाड़ी से वापसी का है।साढ़े 12 बजे के करीब हमारी बस पुष्कर से अजमेर के लिए चल पड़ी।4 बजे के करीब हम लोग जयपुर पहुंच चुके है।जयपुर रेलवे स्टेशन के पास एक होटल में राजस्थानी कचोरी का स्वाद लिया गया।उसके बाद टिकट ली और उस प्लेट फॉर्म पे पहुंच गए जहां से गाड़ी चलनी थी।निर्धारित समय से आधा घण्टा ऊपर हो चुका है लेकिन गाड़ी का अभी कुछ पता नही है।कुछ समय बाद एलान होता है कि हिसार जाने वाली गाड़ी लगभग डेढ़ घण्टा लेट है।लगभग साढ़े सात बजे के करीब गाड़ी प्लेटफॉर्म पे आ चुकी है।इस समय तक सर्दी बहुत ज्यादा हो चुकी है।हम लोग एक डिब्बे पे स्थान प्राप्त कर लेते है।हम लोग बाते करने में व्यस्त हो जाते है।लगभग सवा 8 से ऊपर का समय हो चुका है।तभी एक धीमा सा झटका लगता है।शायद गाड़ी चल पड़ी है.......।

(समाप्त)

अन्नपूर्णा रसोई

ब्रह्मा मन्दिर

अजय सावित्री मन्दिर के रास्ते में

पुराने दोस्त,नई राहें

सावित्री मन्दिर द्वार के पास अनिल

चिंतन करते हुए अन्नू

आज मैं ऊपर आसमां नीचे

सावित्री मन्दिर में विदेशी पर्यटकों के साथ

बुधवार, 15 मई 2019

अजमेर-पुष्कर यात्रा-3(अजमेर)

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आनासागर झील अजमेर

वर्ष 2018 का पहला दिन,मेरी आँख जयपुर बस अड्डे के पास एक होटल के कमरे में खुलती है। अजय और कुलदीप कमरे में नहीं है।मैं मोबाइल में समय देखता हूं सात बजने में 3 मिनट शेष हैं।मेरा अनुभव कह रहा है कि वो लोग चाय पीने गए हैं।मैं भी गर्म कपड़े और जूते पहन कर होटल से बाहर चाय पीने के लिए निकल जाता हूँ।बस अड्डे के सामने सड़क पर मैं थोड़ी देर उन दोनों की तलाश करता हूँ।असफलता ही हाथ लगती है।एक रेहड़ी वाला चाय बना रहा था मैं उसको चाय के लिए बोल देता हूँ।मेरी चाय खत्म ही होने वाली थी कि अजय और मोंटू भी आ जाते हैं।
ये दोनों जयपुर मेट्रो देखने के लिए चले गए थे।एक दो स्टेशन तक जाकर वापस आ गए थे।जयपुर मेट्रो का सिंधीकेम्प स्टेशन बस अड्डे के पास ही है।मेरा जयपुर कई बार आना हुआ है।कई बार जयपुर मेट्रो में भी सफर किया है।इतनी ही बार दिल्ली मेट्रो में भी किया होगा।फर्क सिर्फ इतना है कि दिल्ली मेट्रो में ज्यादातर जबरदस्त भीड़ रहती है।कई बार तो खड़े होने में भी दिक्कत होती है।इसके विपरीत जयपुर मेट्रो में कभी भीड़ नही होती।सीटें खाली पड़ी रहती है।

मोंटू और कुलदीप पहले भी चाय पी चुके थे।दोबारा फिर से पी।उसके बाद हम तीनों होटल में पहुंचे।बाकी तीनों साथी भी तब तक उठ चुके थे।लगभग 9 बजे तक हम होटल छोड़ चुके थे।बस अड्डे के बाहर एक होटल में नास्ता किया और उसके बाद बस अड्डे में पहुंच गए।

आज हमें अजमेर जाना है और उसके बाद पुष्कर।साढ़े दस बजे हमारी बस अजमेर के लिए चल पड़ी।साढ़े बारह बजे हम लोग अजमेर बस अड्डे के बाहर खड़े हैं और दरगाह-ए शरीफ जाने के लिए ऑटो देख रहे हैं।थोड़ी पूछताछ करने के बाद एक ऑटो वाला दरगाह जाने के लिए तैयार हो जाता है।दरगाह के लिए रास्ता मुख्य बाजार से होकर ही है।रास्ते में एक दो जगह भीड़ भाड़ वाली जगहें भी आती हैं।लगभग आधे घण्टे बाद हम लोग दरगाह-ए-शरीफ में घूम रहे हैं।दरगाह में काफी भीड़ है।दरगाह में घूमने के बाद हम वहां से बाहर आ गए।वैसे दरगाह को देखने के किसी की विशेष रुचि नही थी।चूंकि अजमेर आये हैं तो देखना भी बनता है।दरगाह के पास ही अढ़ाई दिन का झोपड़ा बना हुआ है।वास्तव में ये एक मस्जिद है जो मोहम्मद गौरी के कहने पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाई थी।इसका निर्माण 1192 में शुरू होकर 1199 में खत्म हुआ।कहते हैं कि इसका निर्माण संस्कृत महाविद्यालय को तोड़ कर हुआ था।यहां वर्ष में ढाई दिन का उर्स चलता है इसके कारण इसे अढाई दिन का झोपड़ा कहा जाता है।अढाई दिन के झोपड़े को भी बहुत से लोग देखने आए हुए थे।कुछ समय यहां बिता कर हम बाहर निकल गए और आना सागर झील के लिए ऑटो में बैठ गए।
  आनासागर से कुछ पहले विजय स्मारक आता है।हम वहां उतर गए।यहां एक पाकिस्तानी टैंक रखा हुआ है जिस पर पाकिस्तान का झंडा उल्टा है।ये टैंक भारतीय सेना की विजय का प्रतीक है जिसे हमारी सेना ने 1971 की लड़ाई में दुश्मन से छीना था।लगभग आधा घण्टा यहां बिताने के बाद हम लोग पैदल ही आना सागर झील की ओर चल पड़े।कुछ ही देर में हम लोग वहां पहुंच गए।
आनासागर बहुत लंबी चौड़ी कृत्रिम झील है इसका निर्माण पृथ्वीराज चौहान के दादा जी अरुणो राज ने
बारहवीं शताब्दी के मध्य करवाया था।अजमेर शहर भी उन्होंने ही बसाया था।हम लोग कई दूर तक झील के किनारे चलते रहे।झील के किनारे एक तरफ सरकार द्वारा पार्क का निर्माण किया गया है।जहां बहुत से लोग इकट्ठा होते है यहां हमने कई देर फोटोग्राफी की।यहां हमने काफी समय लगा दिया।उसके बाद एक घोड़ा बग्गी पर बैठ कर हम लोग बस अड्डे पहुंचे।
शाम के साढ़े 4 बज चुके हैं और सभी को भूख भी लगी हुई है।बस अड्डे के अंदर ही एक सस्ते से ढाबे पर खाना खाकर हम लोग पुष्कर के लिए एक बस में बैठ गए।बस आनासागर वाले रास्ते से ही पुष्कर की ओर चल पड़ी।थोड़ी देर बाद बस झील के किनारे ही चल रही थी।ऐसा लग रहा था जैसे बस आनासागर की परिक्रमा कर रही हो।बस की खिड़की से आनासागर का रौब देखने से ही बनता था।उसके बाद बस अचानक से पहाड़ी रास्ते की तरफ मुड़ गयी।लगभग 5 मिनट बाद बस पहाड़ी टेढ़े मेढ़े रास्ते से चलती जा रही थी।बीच में कई जगह मनमोहक दृश्य आये।लगभग साढ़े पांच बजे हम लोग पुष्कर बस स्टैंड पहुंच गए।

मैं पहले भी 2 बार पुष्कर आ चुका हूं।बस स्टैंड से निकल कर मैं सभी को लेकर सीधा पुष्कर सरोवर की ओर चल पड़ा।पुष्कर की पतली पतली गलियों में चलते हुए लगभग 10-15 मिनट में हम सरोवर पर पहुंच गए।हिन्दू धर्म में इस सरोवर को बहुत ही पवित्र माना जाता है।कहा जाता है कि इस सरोवर या झील का निर्माण स्वयं ब्रह्मा जी ने करवाया था।संसार का एकमात्र ब्रह्मा मन्दिर भी इस सरोवर से लगभग कुछ सौ मीटर की दूरी पर स्थित है।सरोवर पर बहुत से घाट बने हुए है।हम लोग सीढ़ियों से उतर कर बिल्कुल झील के पास पहुंच गए।तभी एलान हुआ कि सभी लोग पवित्र सरोवर के पानी से दूर हो जाएं आरती शुरू होने वाली है।आरती के बाद हम लोग सरोवर के आस पास घूमने लगे।पुष्कर की एक खास बात ये भी है कि यहां विदेशी सैलानी बहुत अधिक मात्रा में आते हैं।उस समय भी वहां पर बहुत से विदेशी लोग विचरण कर रहे थे।हम लोगों ने उनसे बातें की उनके साथ फोटो भी खींची।मुझे तीर्थराज पुष्कर का ये सरोवर बहुत पसन्द है।मुझे इसके किनारे बैठना बहुत अच्छा लगता है।सरोवर पर बहुत से घाट बने हुए हैं।और साथ ही सरोवर के चारों और बहुत से मन्दिर बने हुए हैं।शाम के समय घाटों पर पूजा करने वाले लोग दीपक जलाते है।मंदिरों की घण्टियाँ और कतार में जलते हुए ये दीपक मुझे बहुत अच्छे लगते हैं।वैसे मेरा पूजा पाठ में कोई यकीन नही है।
  अंधेरा हो चुका है और हम लोगों को ठहरने के ये जगह भी तालाश करनी है।वैसे पुष्कर में रुकने की कोई दिक्कत नही है।यहां असंख्य धर्मशालाएं और होटल बने हुए है।विभिन्न जातियों की अलग अलग धर्मशालाएं भी है।अपनी जाति की धर्मशाला में भी आप आसानी से ठहर सकते हैं।हमें ब्रह्मा मन्दिर के पास ही एक धर्मशाला में जगह मिल गयी।मन्दिर के पास ही अच्छे होटल बने हुए हैं जहां आप अच्छा खाना खा सकते है।हम लोग कई देर तक पुष्कर के बाजार में घूमते रहे और 10 बजे के करीब खाना खाकर सो गए।कल हमें ब्रह्मा मन्दिर जाना है और साथ ही सावित्री मन्दिर भी।सावित्री मन्दिर ऊपर पहाड़ी पर बना हुआ है।

विजय स्मारक

विदेशी महिलाओं के साथ मोंटू

अलाव सेंकता अजय


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