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13 जून 2016
बस ने सुबह साढ़े पाँच बजे हमें हरिद्वार बस अड्डे पर उतार दिया।बस अड्डे से बाहर आकर एक होटल कम ढाबे पर चाय पीने के लिए बैठ गए।यहाँ एक मजेदार घटना हो गयी।कल घर से चलने से पहले मैंने सभी को बोल दिया था कि घर से खाना बनवा के ले आना।यात्रा के पहले दिन का काम इस भोजन से चल जाएगा।कल हिसार बस अड्डे पर जब बात चली की खाने में कौन क्या क्या लेके आया है तो शमशेर ने कहा कि मैं देसी घी का चूरमा बनवाके लाया हूँ।ये सुनते ही सभी के मुंह में पानी आ गया।मैंने कहा अभी खा लेते है मेरा साथ विनोद और अजय ने भी दिया।परन्तु अनिल ने कहा कि इसे सुबह हरिद्वार पहुँच कर चाय के साथ खाएंगे।
गँगा स्नान करते हुए चार महारथी
चाय का ऑर्डर देने के साथ ही शमशेर को भी कह दिया की भाई चूरमा निकाल ले।देसी घी का चूरमा और वो भी जाट के घर के देसी घी का चूरमा।चूरमे के चाव में शरीर के साथ आत्मा भी भूख से व्याकुल हो उठी।चाय आ गई और दूसरी तरफ चूरमे वाला टिफिन भी खोल दिया गया।चूरमे का पहला निवाला खाने का सौभाग्य हमारे वरिष्ठतम साथी अनिल को मिला।चूरमा खाते ही अनिल ने घोषणा कर दी कि इससे स्वादिष्ट चूरमा उसने अपनी इस जिंदगी में तो नही खाया होगा।इतना सुनते ही अपनी रूह भी सकते में आ गयी और चूरमे का निवाला तपाक से मुंह में डाला।चूरमे के मुंह में जाते ही आत्मा तृप्त हो गई और मुंह से निकला इसमें मीठा तो है ही नही।सभी जोर जोर से हंसने लगे।शमशेर ने कहा हमारे यहां नमकीन चूरमा बनाने का रिवाज है।सभी ने कहा भाई आज के बाद ऐसी गलत प्रथा तोड़ के फ़ेंक दो।इस के बाद सारा दिन उस चूरमे का हवाला दे दे कर शमशेर के साथ मजाक होता रहा।
चाय और चूरमे का भोग करने के पश्चात ऑटो द्वारा हम हर की पौड़ी की तरफ चल दिए।वैसे तो हर की पौड़ी का बस अड्डे से लगभग 15 मिनट का रास्ता है।परन्तु रात की थकान होने के कारण ऑटो से जाने को प्राथमिकता दी गई।ऑटो चालक ने हमें हर की पौड़ी के दूसरी तरफ उतार दिया और इशारे से बता दिया की उस तरफ चले जाओ।हर की पौड़ी की ओर पैदल जाते हुए हमने देखा की पास के मैदान में बहुत से लोग खुले में शौच कर रहे थे।ये देखकर हमें दुःख हुआ कि हरिद्वार जैसे धार्मिक स्थल का क्या हाल है।
सबसे पहले हम हर की पौड़ी के पास बने शौचालय में गए और दस दस रूपये देकर एक महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम दिया।उसके बाद गंगा स्नान और इस जन्म के अब तक के पापों को धोने के लिए हर की पौड़ी पर बने एक घाट पर पहुँच गए।गँगा स्नान तो सभी ने किया पर वास्तविक आनन्द मिला अनिल एवम् शमशेर को।क्योंकि उन्हें तैरना जो आता था।गँगा के शीतल जल में डुबकी लगाने के पश्चात सारी थकान रफूचक्कर हो गई।
शौचालय में समय का सदुपयोग
हर की पौड़ी हरिद्वार
जब हम गंगा घाट पर स्नान कर रहे थे तब सामने वाली पहाड़ी पर बना एक मंदिर सभी का आकर्षित कर रहा था।पता चला कि ये मंदिर माँ मनसा देवी का मंदिर है।थोड़ी सी चर्चा के बाद सभी ने मंदिर के लिए चढ़ाई का फैसला कर लिया।गंगा पर बने पुल को पार करने के बाद सभी उस जगह पहुँच गए जहां से चढ़ाई शुरू होती है।नीचे एक प्रसाद की दूकान पर बैग रख दिए गए जिसके बदले में प्रसाद लेना तय हुआ।मनसा देवी मंदिर की चढ़ाई लगभग दो किलोमीटर है और चढ़ने के लिए सीढियां बनी हुई हैं।काफी भीड़ होने की वजह से धीरे धीरे चढ़ना पड़ रहा था।थोड़ी सी चढ़ाई के बाद मैं और अजय बाकी तीनो से आगे निकल गए।लगभग आधा किलोमीटर के बाद हम एक शिकंजी बनाने वाली महिला की दूकान नुमा जगह के पास रुक गए एवम् बाकी साथियों की प्रतीक्षा करने लगे।उनके आने के बाद हम सभी ने एक एक गिलास शिकंजी पी और आगे बढ़ गए।लगभग 20-25 मिनट में मैं और अजय मंदिर के पास पहुँच गए।ज्यादा भीड़ होने की वजह से हमने अंदर जाने का मन त्याग दिया और मन्दिर के सामने ऊँचे स्थान पर पहुँच गए।वहां बहुत से लोग पहले ही थे और फ़ोटो खींचने का कार्यक्रम चल रहा था।हमने भी यही काम शुरू कर दिया और साथ ही दूसरे साथियो का इन्तजार करने लगे।10-15 मिनट बाद विनोद और अनिल आ गए जबकि शमशेर बीच में ही रुक गया था।उसने अनिल से कहा की वापसी में मुझे साथ ले लेना।
इस जगह से हरिद्वार और गंगा के दृश्य बहुत शानदार लग रहे थे।यहाँ आकर बहुत अच्छा लगा।कुछ समय यहां बिताने और फ़ोटो वगैरह लेने के बाद वापस चल पड़े।थोडा सा नीचे आने पर शमशेर एक बेंच पर बैठ मिल गया।कुछ देर बाद सभी उसी दुकान पर थे जहां बैग और समान रखा गया था
रास्ते से दीखता मनसा देवी मन्दिर
मनसा देवी मन्दिर के लिए चढ़ाई
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शनिवार, 15 अक्तूबर 2016
हेमकुण्ड साहिब यात्रा भाग 2: हरिद्वार में गँगा स्नान एवम् मनसा देवी मंदिर
शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016
हेमकुण्ड साहिब यात्रा भाग 1: उकलाना से हरिद्वार
सन् 2016 ,गर्मियों की छुट्टियां होने से काफी समय पहले ही दोस्तों के साथ कहीं घूम कर आने के बारे में चर्चाएं होनी शुरू हो चुकी थीं।कई योजनाएं बनी,वार्ताओं का दौर कई बार चला परन्तु परिणाम शून्य।आखिरकार दो स्थानों के बारे में सभी एकमत हो गए।या तो धर्मशाला और मैक्लोडगंज अथवा हेमकुण्ड साहिब।
अंत में हेमकुण्ड साहिब को विजयश्री प्राप्त हुई।आखिरकार वो शुभ दिन आ ही गया।दिन था 12 जून 2016,वार इतवार।उकलाना से शाम को 7 बजे एक सवारी गाडी हिसार जाती है जो लुधियाना से आती है।इसी गाडी से हमने हेमकुण्ड यात्रा का शुभारम्भ किया।गाडी 7 बजे चल कर लगभग एक घण्टे में हिसार पहुंचा देती है।
इस यात्रा में मेरा साथ चार साथियों अनिल अनेजा,अजय भारद्वाज,विनोद इन्दौरा और शमशेर लौरा ने दिया।शमशेर को छोड़ कर शेष चारो ने कई यात्राएं एक साथ की हैं।इस यात्रा में जाने वाले हम सभी साथियो की एक खास बात तो ये है की सभी अध्यापन व्यवसाय से जुड़े है और दूसरी खास बात ये है कि सभी की एक दूसरे के प्रति समझ काफी बेहतर है।
सभी मित्र लगभग छः बजे के करीब अपनी अपनी बैग त्यार करके सिगमा कोचिंग सेंटर पहुँच गए।ये वो सेण्टर है जहां सभी साथी मुझे छोड़कर बच्चों को कोचिंग देने का काम करते हैं।सरकारी मास्टर बनने से पहले मेरी कर्मस्थली भी यही जगह थी।
लगभग साढ़े छः बजे सभी साथी स्टेशन के लिए निकल पड़े और दस मिनट बाद उकलाना रेलवे स्टेशन पर थे।गाडी सही समय पर आई और रवाना भी ठीक समय पर हुई।ज्यादा भीड़ न होने की वजह से हमें सीट आसानी से मिल गई।बातों बातो में एक घण्टे का सफर कैसे कटा पता ही नही चला।लगभग सवा आठ बजे हम हिसार स्टेशन पर थे और आधे घण्टे बाद हिसार बस अड्डे पर।
यहाँ से हमे हरिद्वार के लिए बस पकड़नी थी जो गंगानगर से चलकर सुबह 5 बजे के करीब हरिद्वार पहुँचती है।साढ़े 9 बजे बस आ गई और हमें सीट भी आसानी से मिल गई।राजस्थान परिवहन की बसों की सबसे बड़ी समस्या ये है कि इनमे आदमी चैन से नही बैठ सकता।बस 10 बजे के करीब हिसार से चल पड़ी।गर्मी के मारे सभी का बुरा हाल था बस चलने पर कुछ चैन नसीब हुआ।रात को 3 बजे के आसपास बस मुजफ्फरनगर की पास किसी होटल पर चाय पानी के लिए रुकी। यहाँ हमने चाय पी।15-20 मिनट के बाद यहाँ से बस चल दी।उंघते हुए लगभग साढ़े पांच बजे हम हरिद्वार पहुँच गए।
उकलाना रेलवे स्टेशन
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शनिवार, 21 नवंबर 2015
मेरा यात्रा ब्लॉग
नमस्कार दोस्तों मैंने आज अन्तहीन राहें नाम से अपना यात्रा ब्लॉग बनाया है। मेरा ये ब्लॉग बनाने का उद्देश्य मेरी की गई यात्राओं एवं उन यात्राओं के अपने अनुभवों को आप के साथ सांझा करना है।आप का प्रोत्साहन मुझे साहस प्रदान करने में एक मील का पत्थर साबित होगा।
सफ़र ज़िन्दगी का खत्म होता दिखाई नहीं पड़ता
मंज़िलें आती जाती हैं मुसाफिर रुकते जाते हैं