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आनासागर झील अजमेर
वर्ष 2018 का पहला दिन,मेरी आँख जयपुर बस अड्डे के पास एक होटल के कमरे में खुलती है। अजय और कुलदीप कमरे में नहीं है।मैं मोबाइल में समय देखता हूं सात बजने में 3 मिनट शेष हैं।मेरा अनुभव कह रहा है कि वो लोग चाय पीने गए हैं।मैं भी गर्म कपड़े और जूते पहन कर होटल से बाहर चाय पीने के लिए निकल जाता हूँ।बस अड्डे के सामने सड़क पर मैं थोड़ी देर उन दोनों की तलाश करता हूँ।असफलता ही हाथ लगती है।एक रेहड़ी वाला चाय बना रहा था मैं उसको चाय के लिए बोल देता हूँ।मेरी चाय खत्म ही होने वाली थी कि अजय और मोंटू भी आ जाते हैं।
ये दोनों जयपुर मेट्रो देखने के लिए चले गए थे।एक दो स्टेशन तक जाकर वापस आ गए थे।जयपुर मेट्रो का सिंधीकेम्प स्टेशन बस अड्डे के पास ही है।मेरा जयपुर कई बार आना हुआ है।कई बार जयपुर मेट्रो में भी सफर किया है।इतनी ही बार दिल्ली मेट्रो में भी किया होगा।फर्क सिर्फ इतना है कि दिल्ली मेट्रो में ज्यादातर जबरदस्त भीड़ रहती है।कई बार तो खड़े होने में भी दिक्कत होती है।इसके विपरीत जयपुर मेट्रो में कभी भीड़ नही होती।सीटें खाली पड़ी रहती है।
मोंटू और कुलदीप पहले भी चाय पी चुके थे।दोबारा फिर से पी।उसके बाद हम तीनों होटल में पहुंचे।बाकी तीनों साथी भी तब तक उठ चुके थे।लगभग 9 बजे तक हम होटल छोड़ चुके थे।बस अड्डे के बाहर एक होटल में नास्ता किया और उसके बाद बस अड्डे में पहुंच गए।
आज हमें अजमेर जाना है और उसके बाद पुष्कर।साढ़े दस बजे हमारी बस अजमेर के लिए चल पड़ी।साढ़े बारह बजे हम लोग अजमेर बस अड्डे के बाहर खड़े हैं और दरगाह-ए शरीफ जाने के लिए ऑटो देख रहे हैं।थोड़ी पूछताछ करने के बाद एक ऑटो वाला दरगाह जाने के लिए तैयार हो जाता है।दरगाह के लिए रास्ता मुख्य बाजार से होकर ही है।रास्ते में एक दो जगह भीड़ भाड़ वाली जगहें भी आती हैं।लगभग आधे घण्टे बाद हम लोग दरगाह-ए-शरीफ में घूम रहे हैं।दरगाह में काफी भीड़ है।दरगाह में घूमने के बाद हम वहां से बाहर आ गए।वैसे दरगाह को देखने के किसी की विशेष रुचि नही थी।चूंकि अजमेर आये हैं तो देखना भी बनता है।दरगाह के पास ही अढ़ाई दिन का झोपड़ा बना हुआ है।वास्तव में ये एक मस्जिद है जो मोहम्मद गौरी के कहने पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाई थी।इसका निर्माण 1192 में शुरू होकर 1199 में खत्म हुआ।कहते हैं कि इसका निर्माण संस्कृत महाविद्यालय को तोड़ कर हुआ था।यहां वर्ष में ढाई दिन का उर्स चलता है इसके कारण इसे अढाई दिन का झोपड़ा कहा जाता है।अढाई दिन के झोपड़े को भी बहुत से लोग देखने आए हुए थे।कुछ समय यहां बिता कर हम बाहर निकल गए और आना सागर झील के लिए ऑटो में बैठ गए।
आनासागर से कुछ पहले विजय स्मारक आता है।हम वहां उतर गए।यहां एक पाकिस्तानी टैंक रखा हुआ है जिस पर पाकिस्तान का झंडा उल्टा है।ये टैंक भारतीय सेना की विजय का प्रतीक है जिसे हमारी सेना ने 1971 की लड़ाई में दुश्मन से छीना था।लगभग आधा घण्टा यहां बिताने के बाद हम लोग पैदल ही आना सागर झील की ओर चल पड़े।कुछ ही देर में हम लोग वहां पहुंच गए।
आनासागर बहुत लंबी चौड़ी कृत्रिम झील है इसका निर्माण पृथ्वीराज चौहान के दादा जी अरुणो राज ने
बारहवीं शताब्दी के मध्य करवाया था।अजमेर शहर भी उन्होंने ही बसाया था।हम लोग कई दूर तक झील के किनारे चलते रहे।झील के किनारे एक तरफ सरकार द्वारा पार्क का निर्माण किया गया है।जहां बहुत से लोग इकट्ठा होते है यहां हमने कई देर फोटोग्राफी की।यहां हमने काफी समय लगा दिया।उसके बाद एक घोड़ा बग्गी पर बैठ कर हम लोग बस अड्डे पहुंचे।
शाम के साढ़े 4 बज चुके हैं और सभी को भूख भी लगी हुई है।बस अड्डे के अंदर ही एक सस्ते से ढाबे पर खाना खाकर हम लोग पुष्कर के लिए एक बस में बैठ गए।बस आनासागर वाले रास्ते से ही पुष्कर की ओर चल पड़ी।थोड़ी देर बाद बस झील के किनारे ही चल रही थी।ऐसा लग रहा था जैसे बस आनासागर की परिक्रमा कर रही हो।बस की खिड़की से आनासागर का रौब देखने से ही बनता था।उसके बाद बस अचानक से पहाड़ी रास्ते की तरफ मुड़ गयी।लगभग 5 मिनट बाद बस पहाड़ी टेढ़े मेढ़े रास्ते से चलती जा रही थी।बीच में कई जगह मनमोहक दृश्य आये।लगभग साढ़े पांच बजे हम लोग पुष्कर बस स्टैंड पहुंच गए।
मैं पहले भी 2 बार पुष्कर आ चुका हूं।बस स्टैंड से निकल कर मैं सभी को लेकर सीधा पुष्कर सरोवर की ओर चल पड़ा।पुष्कर की पतली पतली गलियों में चलते हुए लगभग 10-15 मिनट में हम सरोवर पर पहुंच गए।हिन्दू धर्म में इस सरोवर को बहुत ही पवित्र माना जाता है।कहा जाता है कि इस सरोवर या झील का निर्माण स्वयं ब्रह्मा जी ने करवाया था।संसार का एकमात्र ब्रह्मा मन्दिर भी इस सरोवर से लगभग कुछ सौ मीटर की दूरी पर स्थित है।सरोवर पर बहुत से घाट बने हुए है।हम लोग सीढ़ियों से उतर कर बिल्कुल झील के पास पहुंच गए।तभी एलान हुआ कि सभी लोग पवित्र सरोवर के पानी से दूर हो जाएं आरती शुरू होने वाली है।आरती के बाद हम लोग सरोवर के आस पास घूमने लगे।पुष्कर की एक खास बात ये भी है कि यहां विदेशी सैलानी बहुत अधिक मात्रा में आते हैं।उस समय भी वहां पर बहुत से विदेशी लोग विचरण कर रहे थे।हम लोगों ने उनसे बातें की उनके साथ फोटो भी खींची।मुझे तीर्थराज पुष्कर का ये सरोवर बहुत पसन्द है।मुझे इसके किनारे बैठना बहुत अच्छा लगता है।सरोवर पर बहुत से घाट बने हुए हैं।और साथ ही सरोवर के चारों और बहुत से मन्दिर बने हुए हैं।शाम के समय घाटों पर पूजा करने वाले लोग दीपक जलाते है।मंदिरों की घण्टियाँ और कतार में जलते हुए ये दीपक मुझे बहुत अच्छे लगते हैं।वैसे मेरा पूजा पाठ में कोई यकीन नही है।
अंधेरा हो चुका है और हम लोगों को ठहरने के ये जगह भी तालाश करनी है।वैसे पुष्कर में रुकने की कोई दिक्कत नही है।यहां असंख्य धर्मशालाएं और होटल बने हुए है।विभिन्न जातियों की अलग अलग धर्मशालाएं भी है।अपनी जाति की धर्मशाला में भी आप आसानी से ठहर सकते हैं।हमें ब्रह्मा मन्दिर के पास ही एक धर्मशाला में जगह मिल गयी।मन्दिर के पास ही अच्छे होटल बने हुए हैं जहां आप अच्छा खाना खा सकते है।हम लोग कई देर तक पुष्कर के बाजार में घूमते रहे और 10 बजे के करीब खाना खाकर सो गए।कल हमें ब्रह्मा मन्दिर जाना है और साथ ही सावित्री मन्दिर भी।सावित्री मन्दिर ऊपर पहाड़ी पर बना हुआ है।
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विजय स्मारक |
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विदेशी महिलाओं के साथ मोंटू |
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अलाव सेंकता अजय |
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