जितना जरूरी धरती के लिए सूर्य के चारों ओर चक्कर काटना है और जितना जरूरी इस सृष्टि के लिए दिन और रात का बनना है।शायद उतना ही जरूरी चांदी राम के लिए केदार नाथ जाना है।चांदी राम को कई दिनों से लगने लगा है कि अगर वो इस जीवन में केदारनाथ नहीं जा पाया तो उसका इस धरती पे आना व्यर्थ हो जाएगा।
मई 2019 की एक शाम-
विनोद के प्रधानमंत्री जनऔषधालय में बैठे बैठे चांदीराम ने धरती पे अवतरित होने का अपना मकसद अनिल को बताया।
'तैयारी कर ले अगले महीने चलना है'-अनिल ने चांदी राम का मनोबल बढाते हुए कहा।
'पक्का चलेंगे?'-शायद चांदीराम को अनिल की बात पे यकीन नहीं हुआ।
'चांदीराम तन यार अनिल की बात प यकीन कोनी, क्या आजतक ईसा होया ह के अनिल कोई बात कही हो और वो ना होई हो,तू तयारी कर आगले महीने चालना ह तो चालना ह बस'-विनोद ने अनिल की बात पर आधिकारिक मोहर लगाते हुए चांदीराम को भरोसा दिलाया।
जून 2019 का नौवां दिन-
रात के साढ़े 9 बजे के करीब विकास नगर काफी शांत लग रहा है।इस शहर की शांति के अलावा भी कुछ कारण हैं जिनकी वजह से ये शहर मुझे अच्छा लगा है।अभी उन पर चर्चा करना ठीक नहीं लग रहा।खैर! फिलहाल मैं और
अनिल होटल से निकल कर बाहर आ गए हैं।हमें एक ठेके की तालाश है वो भी अंग्रेजी ठेके की।बाहर एक ढाबे पे काम करने वाले छोटू टाइप बच्चे ने हमें ना केवल ठेके का रास्ता बता दिया है बल्कि हाथ के इशारे से दिखा भी दिया है कि वही वो ठेका है जिसकी आपको तालाश है।हमें तालाश जरूर है लेकिन अगर यहां ठेका ना भी होता तो भी हमें कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ना था।जिन लोगों को फर्क पड़ना है वो लोग होटल में बैठे हैं और वो लोग हमारे वापिस आने की प्रतीक्षा उसी बेसब्री से कर रहें हैं जिस बेसब्री से गोपियां श्रीकृष्ण के आने की प्रतीक्षा करती थीं।
कुछ ही देर हम दोनों ठेके के जंगले के पास
खड़े थे।अनिल ने एक विशेषज्ञ की तरह ठेके वाले से कुछ देर बात की उसके बाद सामान लिया,पैसे दिए और मुझे वापिस चलने का आदेश दे दिया।
'नमकीन में क्या कुछ लेना ठीक रहेगा'-चलते चलते अनिल ने मुझसे सुझाव मांगा।
'एक सब्जी ले लेते हैं,2-3 पैकेट मूंग की दाल ले लेंगे,एक आधा कोई और आइटम देख लेंगे'-मैनें गंभीरता से एक बहुमूल्य सुझाव अनिल के सामने पेल दिया।
यहां मेरा सुझाव बस उतना ही महत्व रखता था जितना महत्व कांग्रेस राज में राजमाता के समक्ष मनमोहन के विचारों का होता था।फैसला तो अनिल हमेशा ले ही चुका होता है बस राय लेने का एक मात्र कारण यही होता है कि सभी को यही लगे कि सबकुछ लोकतांत्रिक तरीके से हो रहा है।वही लोकतंत्र जो आपातकाल के समय इंदिरा गांधी की जनसभाओं में सुनने को मिलता था।होटल में पहुंचने से पहले अनिल ने नमकीन सहित सारा जरूरी सामान खरीद लिया और हमने होटल की ओर कूच किया।
कमरे में 3 लोग हमारा इंतजार कर रहे हैं उनमें से पहले नम्बर पर
चांदीराम जी हैं जो किसी परिचय के मोहताज नहीं है।दूसरे साथी है
राजेन्द्र पात्तड़ और तीसरे नम्बर पर आते हैं कालूराम।चांदीराम आजकल विनोद का प्रधानमंत्री जन औषधालय सम्भाल रहे हैं।राजेन्द्र और कालूराम निजी स्कूलों में अध्यापन कर रहे हैं।राजेन्द्र उकलाना के एक प्राइवेट स्कूल में है जबकि कालूराम हाँसी में एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल के बच्चों का सामाजिक विज्ञान पढ़ाता है।कालूराम ने मेरे और अनिल के साथ पूर्व मल्टीमीडिया काल में बीएड की थी।तभी से हमारा याराना बरकरार है।
हमारे होटल के बाहर एक मिनी बस खड़ी है जो सुबह हमें बड़कोट लेकर जाएगी।बस के चलने का समय साढ़े 5 बजे का है।हमारी मुलाकात बस के ड्राइवर और कंडक्टर से नहीं हुई है।होटल के बाहर एक-दो होटल और हैं जो सिर्फ खाने के लिए हैं उन्ही होटल के लोगों द्वारा हमें ये जानकारी मिली है।हमें ये भी पता चल गया है कि हमें पहले सीट बुक करवानी की आवश्यकता नहीं है।बस में प्रायः आसानी से सीट मिल जाती हैं।हम लोग सुबह उकलाना से चले थे।छुटमलपुर तक हरियाणा रोडवेज में आये।उसके बाद देहरादून तक एक निजी वाहन में।देहरादून में एक ऑटो वाले का सुझाव मानकर हम लोग विकास नगर पहुंचे।ऑटो वाले ने बताया था कि वहां सुबह जल्दी ही यमुनोत्री के लिए साधन मिलना शुरू हो जाते हैं।वहां होटल भी देहरादून की उपेक्षा बहुत सस्ते मिल जाएंगे।ऑटो वाले की बात काफी हद तक सही निकली।
हमारे कमरे पर पहुंचते ही सभी के चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान घर कर गयी।ये मुस्कान उस सामान के कारण थी जो हमारे हाथ में था।
इस कमरे में 2 कमरे एक साथ मिले हुए थे।एक कमरे में 3 बेड थे तथा दूसरे में 2 बेड।दोनों कमरों को जोड़ने वाला बीच में एक दरवाजा था।हमें ये कमरा मात्र 500 रुपये में आसानी से मिल गया था।साफ सफाई भी एक नम्बर की थी।चांदीराम के लिए ये भी खुश होने के कारणों में से एक था।
कार्यक्रम शुरू होने से पहले राजेन्द्र ने कहा-"कल के कार्यक्रम की रूपरेखा बता दी जाए तो ठीक रहेगा।फिर उसी हिसाब से सुबह नहाना धोना कर लेंगे।"
"भाइयों को सारी डिटेल बता दे अच्छी तरह"- अनिल ने मुझे इशारा करते हुए कहा।
"कल बाहर खड़ी बस साढ़े 5 बजे चलेगी।इस बस द्वारा हम बड़कोट पहुंचेंगे।उसके बाद यमुनोत्री और अगले दिन गंगोत्री के लिए प्रस्थान करेंगे।सभी को सुबह 4 बजे उठना है और तैयारी करनी है।"-मैंने कम शब्दों पूरी बात बता दी।
"केदारनाथ कब जाएंगे?"चांदीराम प्रश्नवाचक नज़रों से सभी को ताक रहा था।
"गंगोत्री के बाद केदारनाथ तो चलना ही है"-अनिल ने चांदीराम की शंका का समाधान करते हुए कहा।
चांदीराम के कलेजे में ठंडक पड़ते ही कालूराम ने अपने हाथों से पैक बनाते हुए कार्यक्रम का शुभारम्भ कर दिया।साथ ही एक हिदायत भी दे कि उतनी ही लेना जितनी ओट सको।
साथ ही अनिल ने फतवा जारी करते हुए कहा-"जितनी पीनी हो पी लेना आगे चारधाम यात्रा शुरू हो जाएगी।कोई नही पिएगा।"
ये बात सुनते ही राजेन्द्र और कालूराम को सांप सूंघ गया जैसे उनका अपनी प्रेयसी से ब्रेकअप हो गया हो।दोनों ने कातर नज़रों से मेरी तरफ देखा।
"चिंता मत करो,सब ठीक होगा।इत्मीनान रखो"-मैंने उनको विश्वास दिलाते हुए कहा।
मेरी बात सुनकर दोनों की जान में जान आयी।इधर मैं सोच रहा हूँ चलनी तो अनिल की ही है पर आश्वासन से किसी को खुशी मिलती है तो अपना क्या जाना है।
सभी 2-2 पैक ले चुके हैं और मैंने घोषणा कर दी है कि अब मेरी और लेने की आसंग नहीं है।
"तुझसे यही उम्मीद थी।खत्म हो चुका है अब तू।महफ़िल में बैठने के लायक नहीं रहा।"-चांदी राम ने मुझ पर कटाक्ष करते हुए कहा।
"चांदीराम की बात से मैं हंडर्ड प्रतिशत सहमत हूं।बामण कोई काम गा कोनी रया ईब।"-कालूराम ने चांदीराम का साथ देते हुए कहा।
कुल मिला कर मुझे तीसरा पैक लेने के लिए मजबूर कर दिया गया है।ये अहसान करते हुए की छोटा सा बनाया है,तीसरा पैक पकड़ा दिया गया।उधर चांदीराम ऐसे खुश है जैसे उसने कोई राष्ट्रहित का काम कर दिया हो।
3 पैक अंदर जाने के बाद चांदीराम के चेहरे पर अलग ही भाव नज़र आने लगे हैं।मैं लेट गया हूँ।मुझे छोड़कर सभी गहन मन्त्रणा में व्यस्त हैं।कालूराम कह रहा है कि आज बहुत अच्छा लग रहा है काफी समय बाद दोस्तों से मिला हूँ।इधर अनिल कुछ कह रहा है।राजेन्द्र कुछ कह रहा है।बातों की खिचड़ी पक रही है।
मैं अर्धनिंद्रा में लेटा हुआ हूँ।शायद उन लोगों ने चौथा पैक बना लिया है।ऐसा मुझे कुछ कुछ अहसास होता है।उनकी बातें लगातार जारी हैं।
"पहले हम केदारनाथ ही जाएंगे।"-जोर से आवाज आई।
मैं चमक गया लगा कोई आकाशवाणी हुई है।मैं उठ गया और सभी की तरफ देखा।चांदीराम का चेहरा आवेश में तमतमा रहा था।चांदीराम की नजरें अनिल की ओर थी।मुझे लगा अगर चांदीराम ने अपनी नज़रे कुछ समय तक इसी तरह अनिल की तरफ गड़ाए रखी तो अनिल भस्म हो जाएगा।कालूराम और राजेंद्र भी एक पल के लिए मानो पत्थर बन गए थे।चांदीराम के अंदर का विश्वामित्र बाहर आ चुका था।अनिल ने मौके की नज़ाक़त को भांपते हुए हथियार डाल दिये और कहा-"पहले केदारनाथ ही चलेंगे।"
इससे भी शायद चांदीराम को यकीन नहीं हुआ और उसकी स्थिति टस से मस नहीं हुई।
अनिल ने मुझे आदेश देते हुए कहा-"कार्यक्रम कुछ इस प्रकार बना कि पहले केदारनाथ आये और यमुनोत्री-गंगोत्री बाद में।"
मैंने कहा ऐसा ही होगा।
चांदीराम इतना सुनने के बाद शांत होने लगा।अनिल ने अगला फरमान सुनाया-"जल्दी से लास्ट पैक बनाओ और सो जाओ सुबह जल्दी उठना है।"
अनिल चांदीराम से कोई पंगा नहीं लेना चाहता था।
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यात्रा में चलने से पहले विनोद के मेडिकल के आगे |