शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

अजमेर- पुष्कर यात्रा-2(जयपुर)

होटल जिस में रहना पड़ा

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31 दिसम्बर,2017


सिंधीकैंप, मेरा पहले जब भी जयपुर आना हुआ है मैंने यह नाम कई बार सुना था। जैसे ही बस जयपुर में प्रवेश करती थी तब किसी भी चौक या छोटे स्टैंड पर बस रूकती थी तब वहां नीचे खड़े यात्री आवाज लगाते थे ,"भाई साहब क्या यह बस सिंधी कैंप जा रही है?"
तब मेरे आस पास बैठे किसी यात्री का जवाब हां में होता था। इस प्रकार मुझे यह शब्द कई बार सुनना पड़ता था। मैं कई बार सोचा करता था यह सिंधी कैंप शायद जयपुर की बहुत महत्वपूर्ण जगह है। एक दिन मुझे मेरे एक साथी से पता चला कि जयपुर के बस स्टैंड का नाम ही सिंधी कैंप है उसके बाद मैंने भी हमेशा बस स्टैंड की जगह सिंधी कैंप ही बोलना शुरु कर दिया।

सिंधी कैंप के सामने ही एक गली में शिव शक्ति गेस्ट हाउस है ,उसकी बगल में ही एक दूसरा गेस्ट हाउस बना है
।शायद इस गेस्ट हाउस का कोई नाम नहीं है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि गेस्ट हाउस के दरवाजे पर नाम का कोई बोर्ड नहीं था। जब हम रहने के लिए जगह की तलाश कर रहे थे तब हमें इस गेस्ट हाउस का एक कर्मचारी मिल गया ,उसने हमसे पूछा कि क्या आप कमरे की तलाश कर रहे हैं?अगर ऐसा है तो आप हमारे होटल में ठहर सकते हैं।हमारे होटल में आपको सस्ते में कमरे मिल जाएंगे और साथ ही गर्म पानी में मिलेगा नहाने के लिए। उसने कहा एक बार आप हमारी होटल में चल कर कमरे देख ले।अगर पसंद आए तो ले लेना वरना जैसी आपकी मर्जी।अनिल ने कहा चलो एक बार चल कर देख लेते हैं।अगर कमरों के साथ साथ किराया भी सही लगा तो ले लेंगे।वर्ना और कहीं देख लेंगे।

होटल पहुंचे,कमरे देखे। देखने में कमरे ठीक लगे और हमने 850 रुपए में दो कमरे ले लिए।रुपये जमा करवा दिए और रजिस्टर में एंट्री भी करवा दी।
बस यहीं गलती हो गयी ।जब ध्यान से कमरों को देखा गया तब मालूम हुआ कि कमरों का हाल बेहाल है। शौचालय बदबू से सने हुए थे एवं कमरों से भी बदबू आ रही थी। जब मैंने इसकी शिकायत की तो होटल कर्मचारी ने कहा कि आप 10 मिनट अपना सामान बाहर बरामदे में रख लो। मैं थोड़ी देर में कमरों और शौचालयों की सफाई करवा देता हूं ।थोड़ी देर में जब सफाई हो गई तो हम लोगों ने अपना समान अंदर रख दिया ।एक कमरे के बेड की चादर ठीक से बिछी हुई नहीं थी ।जब उसे ठीक करने के लिए अजय ने चादर को उठाया तो नीचे गद्दे पर दो-तीन कॉकरोच विचरण करते हुए नजर आए ।हमें यह देख कर अपनी गलती का अच्छे से एहसास हो गया ।हमने उस होटल कर्मचारी को बुलाया और उसे कॉकरोच दिखाए। साफ करने के बावजूद भी कमरे और शौचालय ढंग से साफ नहीं हुए थे।यह भी हमने उसे दिखा दिया। हमने उससे कहा श्रीमान जी आप पचास सौ रुपये काट कर हमें बाकी रुपए वापस कर दे। उसने पैसे वापस करने से मना कर दिया। मेरी और अनिल की उससे कई देर तक बहसबाजी होती रही।नतीजा यह रहा कि कमरों और शौचालयों की सफाई ढंग से हो गई ।अब वह स्थान हमारे रहने योग्य हो गया था।

लगभग 11:30 बज चुके थे और हमें जयपुर में घूमने के लिए निकलना था।घूमने के लिए निकलने से पहले सभी की इच्छा नहाने की थी। हमारे कमरों के स्नान गृह मैं गरम पानी की व्यवस्था नहीं थी।हमसे कहा गया था कि आपको नहाने के लिए गर्म पानी की बाल्टियां दे दी जाएंगी।आधे घंटे में सिर्फ एक बाल्टी पानी ही गर्म हो पाया। अनिल को छोड़कर सभी को ठंडे पानी से स्नान करना पड़ा।सभी साथी तैयार होकर होटल से निकल लिए ।उस समय तक लगभग 12:30 बज चुके थे सबसे पहले हम खाना खाने के लिए खंडेलवाल होटल जो कि सिंधी कैंप बस अड्डे पर ही बना हुआ है में पहुंचे।होटल के प्रथम तल पर खाना खाने के बाद हम लोग एक मिनी बस में बैठकर आमेर की ओर चल पड़े ।बस ने आमेर तक की 11 किलोमीटर की दूरी तय करने में पौने घंटे से ज्यादा समय ले लिया।

आमेर कस्बा गुलाबी नगरी जयपुर से लगभग 11 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।यह कस्बा लगभग 4 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। दिल्ली जयपुर राजमार्ग पर स्थित इस कस्बे के बाहर पहाड़ पर आमेर दुर्ग बना हुआ है ।इसे अंबेर दुर्ग भी कहा जाता है। इस किले का निर्माण महाराजा भारमल, मानसिंह प्रथम एवं महाराजा जयसिंह ने 16वीं शताब्दी में करवाया था। इस किले की विशेषताओं में से एक विशेषता यह है कि इस किले का निर्माण विशुद्ध भारतीय वास्तुकला के प्रयोग से हुआ है। इस किले को बनाने में लाल पत्थर और संगमरमर का प्रयोग किया गया है।इस किले में निर्मित दीवाने आम, दीवाने खास, शीश महल और किले में बने हुए दैत्याकार दरवाजे अपना एक अहम स्थान रखते हैं। इस किले में हर वक्त ठंडी ठंडी हवा बहती रहती है ,इसलिए इसे आमेर महल भी कहा जाता है। इसके किले को विश्व धरोहर में शामिल किया गया है ।पर्यटन की दृष्टि से इस किले का एक विशेष स्थान है।

मिनी बस ने हमें जिस स्थान पर उतारा वहां से लगभग 10 मिनट पैदल चलने के बाद हम किले के पास पहुंचे ।किला पहाड़ पर बना होने के कारण ऊपर चढ़ना पड़ता है ।दूर से देखने पर किले की भव्यता अनायास ही हमारा ध्यान अपनी और खींच लेती है ।साल का अंतिम दिन होने की वजह से एवं नए साल का आगाज होने की वजह से उस दिन किले में बहुत ज्यादा भीड़ थी ।बहुत से लोग परिवार सहित घूमने के लिए आए हुए थे। बहुत से स्कूलों के बच्चे भी शैक्षणिक भ्रमण के लिए आए हुए थे ।इस वजह से भीड़ होना लाज़मी थी। हम लोग किले के अंदर सिर्फ वही तक गए जहां तक जाना मुफ्त था। मेरा मतलब है कि जहां तक जाने की टिकट नहीं लगती ।उन सभी जगहों पर हम लोगों ने अच्छा समय बिताया, फोटो खींची गई ।किले के आगे बने हुए सरोवर के पास भी हम लोग थोड़ी देर तक बैठे रहे ।यहां आकर काफी अच्छा भी लगा पर भीड़ की वजह से ज्यादा मजा नहीं आया।

घूमने के बाद सड़क पर आ गए और एक खोमचे वाला जो की नमकीन दाल बेच रहा था से पूछा-

" हमें हवा महल जाना है, कैसे जा पाएंगे ?"

उसने एक मिनीबस की तरफ इशारा कर दिया बोला-

"उसमें चढ़ जाओ, हवामहल छोड़ देगी।"

हम लोग भयंकर वाली भीड़ को चीरते हुए उस बस में चढ़ गए। हमारे चढ़ने के बाद बस में पांव रखने की भी जगह नहीं बची।फिर भी चार-पांच लोग अपनी मेहनत के बलबूते पर बस में अपना स्थान बनाने में कामयाब हो गए।
ठीक ही कहा गया है "मेहनत करने वालों की हार नही होती"।

लगभग 15 मिनट बाद हम जल महल के पास टहल रहे है ।बहुत बड़े झीलनुमा तालाब के बीच में बना हुआ जल महल बहुत ही आकर्षक लग रहा है। इस समय वहां तक जाने की आज्ञा किसी को नहीं है ।हम लोग जल महल के पास बने हुए खुले बाजार में लगभग 15-20 मिनट घूमते रहे और फोटोग्राफी भी चलती रही ।यहां मोंटू जी के मन में जूस पीने की तीव्र कामना जाग उठी।मुझे बोला-

"यार जूस पीते है गन्ने का।"

मैंने कहा-"चलो पी लेते हैं।"

एक जूस वाले को हमने 10 रुपये गिलास के हिसाब से 6 गिलास जूस का आदेश दे दिया।

हमने बाकी साथियों को भी आवाज देकर बुला लिया।अजय और शमशेर भी आकर खड़े हो गए।सबसे पहले मोंटू को जूस का गिलास दिया।ये डिस्पोजल वाला पारदर्शी गिलास था।आधे गिलास में जूस था जबकि बाकी गिलास तो झाग से भर गया था।उसके बाद हम तीनों को गिलास दिए गए जो लगभग पूरे भरे हुए थे।मोंटू ने जूस वाले से शिकायती लहजे में कहा-

"यार ये आधा गिलास तो झाग से भरा हुआ है।"

उधर से जवाब मिला-"ये पी लो और डाल देंगे।"

सभी ने अपना-अपना गिलास खाली कर दिया।उसने मोंटू के गिलास में और जूस डाल दिया।ये देखकर मैंने भी अपना गिलास आगे कर दिया।मुझे देखकर शमशेर ने और फिर अजय ने भी।इधर से अनिल और विनोद भी आ गए।उन्होंने भी 1-1 गिलास जूस पी लिया।
अब आई पैसे देने की बारी।पूछा-

"कितने हुए?"

"4 और 4 आठ,आठ और 2 दस।दस धाएँ सौ।आप 100 रुपये दे दो।"

"यार मेरा गिलास तो आधा था।"

जूस वाले ने मोंटू को आधा गिलास जूस और दे दिया।
"अब पूरे 10 हो गए।"

उसके बाद वापिस कमरे पर पहुंचने का विचार किया। एक ऑटो वाले से सिंधी कैंप चलने की बात की उसने बताया कि आगे जाम लगा हुआ है ।उसने चलने से मना कर दिया उसने बताया कि इस समय यहां से कोई भी ऑटो वाला सिंधी कैंप जाने के लिए तैयार नहीं होगा ।आप लोग एक काम करो यहां से लगभग 10 मिनट चलने के बाद एक चौक आएगा ।वहां तक पैदल चले जाओ। वहां से आपको सिंधी कैंप के लिए ऑटो या कोई अन्य वाहन आसानी से मिल जाएगा ।हम लोग पैदल चलते हुए उस चौक तक पहुंच गए ।चौक पर तैनात कर्मचारी ने हमें बताया कि आपको यहां से सिंधी कैंप के लिए ऑटो मिलना मुश्किल है। क्योंकि आज वर्ष का अंतिम दिन होने की वजह से प्रशासन ने सिंधी कैंप जाने वाले कई रास्ते,ऑटो और सार्वजनिक वाहनों के लिए बंद कर दिए हैं ।उसने बताया कि आप लोग अगले चौक पर चले जाएं वहां से शायद आपको कोई न कोई साधन मिल ही जाएगा।

अगले चौक के लिए चलना शुरू कर दिया।रास्ते में पीछे से 
आता हुआ एक ऑटो हाथ देकर रुकवाया।
पूछा-"सिंधीकैम्प चलोगे?"
"चल पड़ेंगे,कितनी सवारी है?"
"छः"
"दो सौ रुपये लूंगा।"
"थोड़ा जायज लगा यार।"
"200 ही लगेंगे।"
"तू जा भाई हम पैदल ही पहुँच जाएंगे।"
चलते रहे,चलते रहे।पीछे से आते हुए 2-3 ऑटो वालो को रुकवाया।कोई बात नही बनी, दो सौ ही मांग रहे थे।एक डेढ़ सौ तक भी आ गया वो भी ज्यादा लगे।उसको भी छोड़ दिया।
मैं और अनिल बाकियों से थोड़ा आगे चल रहे हैं,अनिल मुझसे मुखातिब होता है-
"संजय,तुझे पता है कोई भी ऑटो वाला हमें सस्ते में ले जाने के लिए तैयार क्यों नही होता?"

"मुझे तो नही पता,तू ही बता भाई।"

"ऑटो वाले हम छः जनों को देख के डर जाते हैं कि 80-80 किलो के हैं,किराया तो 100 रुपये देंगे,अगर पंक्चर हो गया तो 50 रुपये उसके लग जाएंगे,क्या घण्टा बचेगा?"

"अनिल,तेरी बात में दम तो है।ये सोच हो सकती है।"

हम इसी तरह बातें करते हुए आगे चलते जा रहे हैं,तभी एक मोड़ पर एक मोटर रिक्सा नज़र आता है।मैं आवाज लगाता हूँ-

"भाईसाह...ब,सिंधीकैम्प?"

उसने रिक्सा रोक लिया और पूछा- "कितनी सवारी है?"

"छः,कितने लोगे?"

"130 दे देना,बैठ जाओ।"
थोड़ी बहुत बातचीत के बाद वो आदमी 100 रुपये में ले जाने के लिए तैयार हो गया।सभी बैठ गए और रिक्सा चल पड़ा।
अभी चलते हुए 10-12 मिनट हुए हैं।रिक्सा एक भीड़ भाड़ वाली गली से गुजर रहा है।तभी ड्राइवर ने रिक्सा रोक दिया।
हमने पूछा-"क्या हुआ?"

"शायद पंक्चर हो गया है।यहीं पास में ही दुकान है,10 मिनट में लग जाएगा।"

पास में ही एक दुकान पर पंक्चर लगाने का काम शुरू हो गया।हम लोग वहीं खड़े होकर आपस मे बातें करने लग गए।मुझे और अनिल को हंसी आ रही है।वही बात हो गई जो हम सोच रहे थे।

"80-80 किलो के छः नग नतीज़ा पंक्चर।"

शाम के साढ़े 5 बज चुके है।हम लोग होटल में अपने कमरे में आ चुके हैं।साल 2017 को विदाई देने के लिए पार्टी करने का फैसला किया जा चुका है।पार्टी की जाती है और उसके बाद खाना भी खाया जाता है।लगभग 10 बजे के करीब अनिल,शमशेर और टिंकू(विनोद) दूसरे कमरे में चले जाते है।मैं,मोंटू और अजय अपने-अपने बिस्तर पर लेट जाते हैं।कल अजमेर के लिए निकलना है।

इस यात्रा का नाम अजमेर-पुष्कर देने की वजह सिर्फ यही है कि हम लोग ढंग से सिर्फ अजमेर और पुष्कर को ही देख पाए।जयपुर में तो समझो सिर्फ रुके ही थे।



चलते हुए तक गए तब बैठ गए

आमेर किले के आगे बने उद्यान में अजय





आमेर किले में कुलदीप



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बुधवार, 10 जनवरी 2018

अजमेर-पुष्कर यात्रा-1

जलमहल के आस पास कहीं

दिसम्बर 2017 का अंतिम दूसरा दिन शाम के 5 बजने को है।
मैं अपना बैग पैक कर चुका हूँ।
बैग में मेरे पहनने के 2 जोड़ी कपड़ो के अलावा सफर में काम आने वाली सभी वस्तुएं डाली जा चुकी है।एक गर्म चादर हमेशा बैग में रहती ही है।एक प्लास्टिक के बक्से में बाजरे की रोटियों का चूरमा भी डाला गया है।जो रास्ते मे खाने के काम आएगा।मेरा गांव बिराण राजस्थान राज्य के जिला हनुमानगढ़ में पड़ता है।हमारी तहसील तो भादरा है पर भादरा की उपेक्षा पड़ौसी राज्य हरियाणा का कस्बा मंडी आदमपुर जो कि तहसील भी है नजदीक पड़ता है।जहां हमारी तहसील भादरा 30 किलोमीटर है वहीं मंडी आदमपुर लगभग 14 किलोमीटर है।

आज मुझे अपने कुछ दोस्तों के साथ अजमेर पुष्कर की यात्रा के लिए निकलना है।रात्रि साढ़े ग्यारह बजकर पांच मिनट पर हिसार रेलवे स्टेशन से जयपुर के लिए एक सवारी गाड़ी जाती है।उसी में हम जयपुर तक जाएंगे।लगभग साढ़े 5 बजे मैं घर से चल पड़ा।छोटे भाई राकेश  ने मुझे गाड़ी से लगभग सवा छः बजे आदमपुर शहर से बाहर अग्रोहा मार्ग पर छोड़ दिया।वहां से एक ऑटो मिला जिस में अग्रोहा मोड़ पहुंचा और वहां से रोडवेज की बस मिल गयी हिसार के लिए।लगभग सवा 8 बजे मैं हिसार रेलवे स्टेशन पर था।इस यात्रा पर जाने वाले साथियों में से एक साथी शमशेर हिसार ही था मैंने उसके पास फोन कर दिया कि स्टेशन आ जाए।शमशेर के पास फोन करने के बाद मैं शेव करवाने लग गया।शेव करवाने के थोड़ी देर बाद शमशेर भी पहुँच चुका था।शेष 4 मित्र उकलाना से आने है उनकी गाड़ी लेट होने की वजह से वो लोग लगभग 
साढ़े दस बजे तक आएंगे।

स्टेशन से बाहर आकर मैंने और शमशेर ने चाय पी और जयपुर के लिए छः टिकट भी ले ली।लगभग 10 बजे के करीब गाड़ी भी प्लेटफॉर्म पर लग गयी।हमनें सभी साथियों के लिए सोने हेतु सीट रोक ली।ज्यादा दिक्कत भी नही हुई क्यों कि उस समय तक ज्यादा यात्री नही थे।लगभग साढ़े दस बजे उकलाना से आने वाली गाड़ी भी आ गयी।साथ ही शेष चारों यात्री अनिलअजय , विनोद  और  कुलदीप उर्फ मोंटू भी आ गए।सभी ने गाड़ी में अपना सामान रखा और उसके बाद शमशेर को छोड़कर बाकी सभी साथी खाना खाने के लिए स्टेशन से बाहर एक होटल पर पहुँचे।खाना खाने के बाद सभी वापिस गाड़ी में अपनी सीटों पर आ गए।मुझे और अजय को छोड़कर सभी ऊपर वाली सीटों पर सो गए।


सर्दी ज्यादा होने की वजह से मुझे ऊपर वाली सीट पर सोना ठीक नही लगा।शायद अजय ने भी यही सोचा होगा।मैं अजय एक दूसरे के सामने खिड़की वाली सीट पर बैठे हुए थे।गाड़ी चलने से थोड़ी देर पहले 2 लड़के और एक आदमी हमारे कूपे में हमारे पास आकर बैठ गए।गाड़ी चलते ही बातों बातों पता लगा कि दोनों लड़के कश्मीर राज्य से हैं।वो लोग कश्मीर के अनन्तनाग जिले के रहने वाले थे।दोनों का व्यवहार काफी अच्छा था वो लोग सेब का व्यापार करते है और उसी की सिलसिले में उनका हरियाणा आना हुआ था।अब वो लोग अजमेर दरगाह शरीफ में माथा टेकने जा रहे थे।एक का नाम जाहिद और दूसरे का नाम सोहैल था।उनसे काफी बातें हुईं और कश्मीर के हालातों पर भी बात हुई।उन लोगो ने हमें अनन्तनाग आने की दावत दी है।देखो कब जाना होता है।फोन नम्बर का भी आदान प्रदान हुआ।फेसबुक पर भी दोस्ती को बढ़ाया गया।बातों बातों में नींद आने लगी।चादर ओढ़ी और सो गए।सुबह साढ़े पांच बजे के करीब गाड़ी अलवर पहुंची।उसके बाद तो गाड़ी बहुत से स्टेशनों पर कई कई देर रुककर चल रही थी।ये सब दूसरी गाड़ियों को क्रॉसिंग देनेे या उन्हें आगे निकालने के लिए हो रहा था।
गाड़ी लगभग साढ़े दस बजे जयपुर पहुंच गई।

दोनों कश्मीरी साथी स्टेशन पर ही रुक गए।उन्हें अजमेर जाना था।शायद कोई गाड़ी इस समय अजमेर के लिए हो।ये जानने के लिए वो लोग पूछताछ खिड़की की ओर बढ़ गए।जबकि हम लोग सिंधीकैम्प बस अड्डा जाने के लिए स्टेशन से बाहर आ गए।मिनीबस द्वारा हम लोग बस अड्डे पहुंचे और एक होटल में दो कमरे ले लिए।


जयपुर रेलवे स्टेशन पर कश्मीरी मित्रों के साथ

आमेर दुर्ग

जलमहल:अनिल और विनोद

आमेर:अनिल,मोंटू और शमशेर

जलमहल जयपुर

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शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

हेमकुंड साहिब यात्रा भाग 7: बद्रीनाथ धाम दर्शन और घर वापसी


बद्रीनाथ मंदिर का आकर्षक दृश्य

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17 जून,2016

सुबह आराम से सो कर उठे।रात को देर तक बरसात होती रही थी।हम लोगों ने अपनी बरसाती वगैरह सूखने के लिए सीढ़ियों के पास टांग दी थी।उठकर सबसे पहले शौच आदि से निवृत हुए उसके बाद जिसे नहाना था वो नहा लिया।मैं नही नहाया क्यों की मैं रात को नहा कर ही सोया था।लगभग साढ़े नौ बजे गुरुद्वारे से अलविदा हुए और ऊपर सड़क पर आ गए जहाँ से हमें हरिद्वार या ऋषिकेश की बस मिलनी थी।आज घर के लिए वापिस लौटना था।बस के मिलने वाली जगह पहुँच कर चर्चा हुई कि यहां से बद्रीनाथ धाम भी नजदीक है क्यों न वहां भी चला जाए।अजय ने स्पष्ट मना कर दिया कि नही जाना।आगे कभी देखेंगे।चलो कोई बात नही आपका आदेश सर आँखों पर।सड़क पर खड़े खड़े कई देर हो गयी।हरिद्वार या ऋषिकेश की कोई बस नही आई।जो भी बस आती बिल्कुल भरी हुई ही आती।एक भाई ने बताया यहां से हरिद्वार और ऋषिकेश के लिए कोई बस बनकर नही चलती।जो भी जाती है वो बद्रीनाथ से ही आती है।

कुछ देर बाद हमें उसकी बात अच्छी तरह समझ आ गई।अजय को भी आ गई।उसके बाद फैसला ये हुआ की हमें जिस भी तरफ का साधन पहले मिलेगा उसी तरफ चल पड़ेंगे।

15-20 मिनट के बाद एक पिकअप आती हुई नजर आई।हमारे इशारा करने ड्राइवर गाडी रोक ली।वो बद्रीनाथ ही जा रहा था।कहने लगा आपको पीछे डिग्गी में खड़ा होना पड़ेगा और मैं गाडी बहुत तेज़ चलाता हूँ।देखलो कभी आप लोगों को दिक्कत हो।हमनें कहा भाई कोई दिक्कत नही है तू बस हमें ले चल।ड्राइवर के साथ एक औरत भी थी जो आगे बैठी थी।
गोविंदघाट से निकलने के बाद तो नज़ारे ही बदल गए।अलग ही तरह के पहाड़ नज़र आ रहे थे।अलकनन्दा भी पहले वाली नही लग रही थी।रास्ते में कई जगह भूस्खलन का असर साफ़ नज़र आ रहा था।ड्राइवर ने गाडी बहुत तेज़ गति से भगा रखी थी।सच पूछो तो बहुत मजा आ रहा था।जब कोई मोड़ आता तो थोड़ा सा डर भी लगता।

गोविंदघाट से बद्रीनाथ लगभग 25 किलोमीटर की दुरी पर है।रास्ते में पांडुकेश्वर,लम्बगढ़ और हनुमान चट्टी नाम की जगहें आई।ड्राइवर ने लगभग पौने घण्टे में हमें बद्रीनाथ बस स्टैंड से लगभग आधा किलोमीटर पहले छोड़ दिया।वहां से हम पैदल बद्रीनाथ मंदिर के लिए चल पड़े।लगभग आधे घण्टे में मंदिर पहूंच गये।बाहर गर्म पानी के स्त्रोत है और साथ ही अलकनन्दा बिल्कुल मंदिर के आगे से बहती है।यहाँ आकर बहुत अच्छा लग रहा था।यहाँ के प्राकृतिक दृश्य देखकर बस यहीं रहने का मन कर रहा था।आसमान को छूते ऊँचे पर्वत अपनी और बुला रहे थे।

मंदिर में ज्यादा भीड़ नही थी।लगभग आधे घण्टे में सभी ने दर्शन कर लिए।मंदिर के अंदर कैमरा प्रयोग करने की अनुमति नही थी।बद्रीनाथ धाम बाहर से देखने पर बहुत खूबसूरत लग रहा था।जो हमनें अब तक तश्वीरों में देखा था वो सच में और सामने देख कर बहुत अच्छा लग रहा था।बहुत से लोग गर्म पानी में नहा रहे थे।नहाने के लिए वहां विशेष स्नानागार बना रखे हैं।

दर्शन के बाद थोड़ी देर बाहर के नजारे लिए और उसके बाद वापिस बस अड्डे की और चल पड़े।बद्रीनाथ से 3 किलोमीटर आगे भारत का अंतिम गाँव माणा है।वो भी देखने का मन था पर समय की कमी को देखते हुए माणा को भविष्य के लिये टाल दिया।बस अड्डे पहुँचते हमें ऋषिकेश के लिए बस मिल गयी।परिचालक महोदय ने बताया कि रात्रि विश्राम श्रीनगर में होगा।कारण पूछने पर उसने बताया कि उत्तराखण्ड में रात को गाडी चलाने पर रोक है।एक बजे के करीब बस चल पड़ी।उन्हीं आकर्षक दृश्यों का आनन्द लेते हुए रात को 9 बजे के करीब श्रीनगर
पहुँच गये।श्रीनगर में 500 रूपये में कमरा मिल गया।खाना खाया और सो गए।सुबह नहा धोकर 5 बजे उस जगह पहुँच गये जहाँ बस मिलनी थी।सवा 5 बजे बस चल पड़ी।तारीख बदल कर 18 जून हो गयी थी।बस ने साढ़े 9 बजे के करीब ऋषिकेश पहुँचा दिया।

ऋषिकेश से बस पकड़ी और हरिद्वार आ गए।हरिद्वार आने के बाद खाना खाया गया।मैंने और अनिल ने यहां थोड़ी से खरीददारी भी की।एक बजे वहां से हमें हिसार के लिए बस मिल गयी।रात 10 बजे के करीब हिसार पहुंचे।और वहां से रेलगाड़ी द्वारा आधी रात को उकलाना पहुँच चुके थे

बद्रीनाथ से आधा किलोमीटर पहले जहाँ हमें गाडी वाले ने उतारा था

थोड़ा दूर से दिखाई देता बद्रीनाथ धाम

विनोद और बद्रीनाथ मंदिर

बद्रीनाथ के प्राकृतिक दृश्य



पाँच मुसाफिर

यात्रा सम्पन्न....

रविवार, 30 जुलाई 2017

हेमकुंड साहिब यात्रा भाग 6: घांघरिया से हेमकुंड सहिब

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16 जून,2016


घांघरिया और हेमकुंड साहिब के रास्ते में

रात को नींद बहुत अच्छी आई।सुबह साढ़े 4 बजे के करीब उठ गए।हम से पहले बहुत से लोग उठ चुके थे।बहुत से लोग तो नहा धो कर ऊपर प्रस्थान भी कर चुके थे।शमशेर हमारे साथ नही उठा।कल लिए गए निर्णय के मुताबिक शमशेर वापिस गोविंदघाट जाएगा जबकि हम ऊपर हेमकुंड साहिब की यात्रा के लिए प्रस्थान करेंगे।शमशेर को कोई जल्दी नही थी इसलिए वो आराम से सोता रहा।उठने का तो मेरा बिल्कुल भी मन नही था लेकिन उठना पड़ा।जिस हॉल में हम सोए थे वो लंगर हॉल के ऊपर बना हुआ था।उठकर नीचे आए।चाय पी।फिर नहाने पर चर्चा हुई।सभी ने ठंड को देखते हुए न नहाने का फैसला किया।

लगभग सवा पांच हो चुके हैं।चलने की सभी तैयारियाँ हो चुकी हैं।विनोद लंगर हॉल में खाना खाने गया हुआ है।मेरा अजय और अनिल का खाने का मन नही है।गुरुद्वारे के मुख्यद्वार के पास ही एक दीवार के पास बहुत सी छड़ियाँ पड़ी हुई हैं।इनमें से कुछ ठीक हालत में भी हैं।ये छड़ियाँ यात्रा के दौरान चढाई में बहुत सहयोग देती हैं।जो लोग ऊपर से वापिस आते है वो अपनी प्रयोग की गई छड़ी यहां छोड़ देते हैं ताकि वो किसी और के काम आ सके।कुछ ही देर में विनोद खाना खा कर आ चुका है।मुझे छोड़ कर तीनों ने एक-एक छड़ी ले ली है।


हेम का अर्थ है बर्फ वहीं कुंड का अर्थ है कटोरा।इस तरह हेमकुंड का अर्थ हुआ बर्फ का कटोरा।हेमकुंड साहिब वर्षभर लगभग बर्फ से घिरा रहता है।हिंदुओं के पूज्य श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण ने यहाँ एक मंदिर का निर्माण करवाया था जिसे लक्ष्मण मंदिर कहते हैं।यहां सीखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह ने तपस्या की थी।जिस का वर्णन दशम ग्रन्थ में किया गया है।जो लोग दशम ग्रन्थ में यकीन रखते हैं उनके लिए ये स्थान बहुत महत्वपूर्ण है।जिस स्थान पर गुरु जी ने ध्यान लगाया था वहां ये गुरुद्वारा बना हुआ है जिसे गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब कहा जाता है।गुरुद्वारे के साथ ही पवित्र सरोवर बना हुआ है जिसे हेम सरोवर के नाम से जाना जाता है।गुरुद्वारे में माथा टेकने से पहले सिख श्रद्धालू इस पवित्र सरोवर में स्नान करते हैं।गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब और लक्ष्मण मंदिर पास पास ही बने हुए हैं।


घांघरिया जहाँ 3049 मीटर की ऊंचाई पर है वहीं हेमकुंड साहिब 4329 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।इसका मतलब हमें छः किलोमीटर की यात्रा में 1280 मीटर चढ़ना पड़ेगा।काफी दुर्गम चढाई है।खैर छः साढ़े-पांच,छः बजे के करीब गुरद्वारे से निकल पड़े।थोड़ी सी दुरी पर एक पुल आया।पुल पार कर के आगे बढ़े।थोड़ी दूर चलने पर एक रास्ता बाएं और फूलों की घाटी में जाता है जिसकी दुरी यहां से 3 किलोमीटर है।हम मुख्य रास्ते पर चलते रहे।सामने एक झरना दिखाई दे रहा था जो सामने एक पहाड़ी से नीचे गिर रहा था।बहुत खूबसूरत लग रहा था।थोड़ा सा चलने पर कठिन चढाई शुरू हो जाती है।बीच में कई जगह सीढ़ियों पर चढ़ना पड़ता है तो कई जगह पत्थरो पर भी चलना पड़ा।आज मैं और अनिल साथ है वहीं विनोद और अजय साथ चल रहे हैं।अजय का पहाड़ों में चलने का तरीका बहुत अच्छा है।छोटे कदमों के साथ अपनी सामान्य चाल से चलता है।इसलिए थकान कम होती है।विनोद का शरीर हल्का है चुस्ती भी अच्छी है।वहीं अनिल का शरीर भारी तो है पर फिट है।अनिल की समस्या ये है कि वो बहुत तेज़ी से चढ़ता है परिणामस्वरूप उसी तेज़ी से थक जाता है।मेरा वजन तो पिछले दो सालों में 75 पार कर गया है पर चलने में कोई हरकत नही होती।

रास्ते में 3-4 जगह खाने पीने की दुकानें भी आती हैं।खच्चरों की वजह से पैदल चलने वालों को काफी दिक्कत आती है।2 किलोमीटर चलने के बाद सभी को भयंकर वाली थकान होने लगी है।थोड़ी थोड़ी देर में बैठना पड़ता है।पैरों में भी दर्द होने लगा है।विनोद और अजय हमसे कुछ आगे चल रहे हैं।लगभग आधी दुरी पार करने के बाद हमे रास्ते में ऊपर से वापिस आने वाले यात्री भी मिलने लगे हैं।जिस से भी बात होती है हम यही पूछते हैं भाई साहब कितनी दूर और रह गया है।और वो हमें हौंसला देने के लिए कहते हैं कि बस अब तो थोड़ा ही रह गया है आधे घण्टे में पहुँच जाओगे।मगर ये आधा घण्टा एक घण्टा बीतने के बाद भी आधा ही रहा।लगभग 2 किलोमीटर पहले एक जगह आई जहां बर्फ का एक ग्लेशियर मिला।यहाँ बर्फ पर कुछ देर हम लोगों ने उछल-कूद की।काफी अच्छा लग रहा था यहां आने के बाद।

कुछ देर बाद आगे बढ़ गए।एक सरदार जी मिले।कहने लगे पिछली साल भी मैं इस यात्रा पर आया था उस समय 2-3 किलोमीटर बर्फ में चलना पड़ा था।घांघरिया के बाद ही बर्फ शुरू हो गई थी।इस बार तो बर्फ नाम मात्र की भी नही है।खैर चलते रहे चलते रहे।मेरा अनिल से भी ज्यादा बुरा हाल और अनिल सोच रहा है कि मेरा संजय से भी ज्यादा बुरा हाल है।अजय और विनोद लगभग 200 मीटर आगे चल रहे हैं।

निशान साहिब नज़र आने लगा है।इससे थोड़ी हिम्मत मिली है।जब हेमकुंड साहिब लगभग डेढ़ किलोमीटर रह गया तो एक जगह सीढ़ियाँ नजर आई।जो मुख्य मार्ग के बाईं और ऊपर चढ़ रही थी।सीढ़ियों के सामने की मुख्य मार्ग के किनारे एक दुकान बनी हुई थी जहां बहुत से यात्री जलपान ग्रहण कर रहे थे।हमने दुकानदार से पूछा कि क्या ये सीढियां हेमकुंड साहिब जा रही है।सकारात्मक जवाब मिलने के बाद मैंने और अनिल ने सीढ़ियों से ही जाना तय कर लिया।सीढ़ियों से चढ़ने का पंगा ले तो लिया पर किस प्रकार ऊपर पहुँचे इसे शब्दों में बताना उतना ही मुश्किल है जितना मुश्किल उस समय सीढ़ियों से चढ़ना लगा।

लगभग साढ़े बारह बजे हेमकुंड साहिब की पवित्र सरजमीं पर हमारे कदम पड़े।यहां आकर सारी थकान खत्म हो गयी।यहां ठण्ड भी अच्छी थी।अजय और विनोद हमसे 10-15 मिनट पहले ही पहुँच चुके थे।चाय पीने के बाद पहले सरोवर के पास पहुंचे।सोचा मुंह हाथ तो धो ही लेते हैं।जैसे ही पानी में हाथ डाला लगा इतना ही साहस बहुत है।हेम सरोवर काफी खूबसूरत लग रहा था।उसके बाद गुरुद्वारे में जाकर दर्शन किये,मत्था टेका।गुरुद्वारे की छत से लक्ष्मण मंदिर भी नज़र आ रहा था।गुरुद्वारा और लक्ष्मण मंदिर दोनों बहुत अच्छे लग रहे थे।गुरुद्वारे से बाहर आने के बाद लंगर हाल में पहुंचे।वहां खिचड़ी का प्रसाद मिला और साथ में फिर से चाय।4329 मीटर की ऊंचाई का हमें तो कोई खास फर्क महसूस नही हुआ।वैसे इतनी ऊंचाई पर आने पर लोगों को सांस लेने में समस्या होने लगती है।

लगभग डेढ़ बजे वापिस चल पड़े।उतराई उसी सीढियों वाले रास्ते से शुरू की।उतरते वक्त कोई दिक्कत नही हुई।लगभग 2 घण्टों में घांघरिया पहुँच गये।गुरुद्वारे में चाय पी और अगले ढाई घण्टो में पुलना।पुलना से जीप पकड़ी और 20 मिनट में गोविंदघाट स्थित गुरुद्वारे में पहुँच गये।हमारे गोविंदघाट पहुँचते ही जबरदस्त बारिश शुरू हो गयी।गुरुद्वारे में शमशेर ने हमारे लिए पहले ही बिस्तर आरक्षित करवा रखे थे।थकान की वजह से जल्दी खाना खाया और सो गए।


रास्ते में एक ग्लेसियर के पास विनोद









हेम सरोवर







हेम सरोवर



विनोद मूंछो को ताव देता हुआ

गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब का शानदार नज़ारा





बरसात की वजह से बरसाती पहननी पड़ गयी थी

बर्फ से खेलते हुए अजय

अनिल रास्ते में

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रविवार, 2 जुलाई 2017

हेमकुंड साहिब यात्रा भाग 5:गोविंदघाट से गोविन्दधाम(घांघरिया)

गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब और पवित्र सरोवर

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15 जून,2016

शोर शराबे की वजह से मेरी आंख खुल जाती है लेकिन निंद्रा अभी भी आँखों में तारी है।आखिर हिम्मत करके पूरी आँख खोलता हूँ तो पता चलता है कि सुबह हो चुकी है और लोग बाग़ शौच आदि से निवृत हो रहे हैं।कई लोग तो नहा भी चुके हैं।लगभग 7 बज चुके हैं और सब से अंत में मेरी ही आँख खुली है।अजय नहा कर आ चुका है।अनिल और शमशेर नहाने गये हुए हैं।विनोद शौचालय का सदुपयोग कर रहा है।वैसे हमें कोई ज्यादा जल्दी नही है क्योंकि आज का हमारा लक्ष्य गोविन्दघाट से 13 किलोमीटर दूर गोविंदधाम पहुँचना है।इन 13 किलोमीटर में से 3 किलोमीटर की दुरी जीप द्वारा तय की जानी है जबकि शेष 10 किलोमीटर पैदल यात्रा है।इसलिए हम शाम तक आसानी से गोविंदधाम पहुँच जाएंगे।गोविंदधाम को घांघरिया भी कहा जाता है।

आखिरकार उठने की हिम्मत करता हूँ।हिम्मत-ए-मरदां तो मदद-ए खुदा।सफलता भी मिल ही जाती है।नीचे कई शौचालय बने हुए है।परन्तु सुबह का समय होने के कारण मांग पूर्ति से कहीं ज्यादा है।तभी मेरे सामने वाले शौचालय का दरवाजा खुलता है और मैं घुस जाता हूँ।शौच की इच्छा नहीं है।चलो जोर लगा के देखता हूँ,शायद बात बन जाए।परिणाम शून्य।बात नही बनी।चिंता हुई की कहीं रास्ते में दिक्कत न हो जाए।चलो जो होगा देखा जाएगा।शौचालय में बैठे-बैठे एक महत्वपूर्ण निर्णय भी लिया कि नहाने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं हैं।नहीं नहाऊंगा।

अलकनन्दा के किनारे बसा गोविंदघाट एक खूबसूरत स्थान है।अलकनन्दा इसे और भी खूबसूरत बना देती है।गुरुद्वारा गोविंदघाट भी अलकनन्दा के किनारे ही बना हुआ है।गुरुद्वारे में जहां यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था है वहां से अलकनन्दा काफी आकर्षक नज़र आती है।2013 की विभीषिका में गोविंदघाट में भी बहुत ज्यादा नुकसान हुआ था।गुरुद्वारा तो पूरी तरह नष्ट हो गया था।गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और कारसेवकों ने मिलकर इसे पुनः त्यार किया है।गोविंदघाट हेमकुंड साहिब का आधार स्थल है।यहां बने गुरुद्वारे का हेमकुंड साहिब यात्रा में विशेष योगदान होता है।हेमकुंड जाने वाले लगभग सभी यात्री यात्रा से पूर्व इसी गुरुद्वारे में ठहरते हैं।

यहाँ से हेमकुंड साहिब का सफर 19 किलोमीटर का है।यहां से 4 किलोमीटर पर पुलना नामक जगह है।जहां 3 किलोमीटर तक मोटर मार्ग बन चूका है।इसलिए ये तीन किलोमीटर की दुरी हम जीप या बाइक से तय कर सकते हैं।उसके बाद 5 किलोमीटर चलने पर भयुन्दर नामक जगह आती है और भयुन्दर से आगे 5 किलोमीटर पर आता है गोविंदधाम।यानी गोविंदधाम की गोविंदघाट से दूरी 13 किलोमीटर है।ज्यादातर यात्री पहले दिन गोविंदधाम तक ही यात्रा करते हैं और अगले दिन हेमकुंड साहिब के लिए प्रस्थान करते हैं।

सवा 8 बज चुके हैं।हमनें अपना सामान गुरुद्वारे में जमा करवा दिया है।कल शाम को हमनें एक-एक प्लास्टिक की बरसाती और एक-एक प्लास्टिक के हल्के थैले जिन्हें पिट्ठू बैग की तरह पीछे लटकाया जा सकता है,खरीद लिए थे।मैंने अपने थैले में बरसाती और आंतरिक गर्म कपड़े डाल लिए।इसी प्रकार सभी ने अपनी आवश्यकता की चीजें अपने अपने थैले में डाल ली।हमारे पास रास्ते में खाने के लिए चने थे और सभी ने एक एक बोतल पानी ले लिया।ग्लूकॉन डी भी हम घर से ले कर चले थे।

गुरुद्वारे के साथ लगता ही जीप स्टैंड है जहां से पुलना के लिए जीप मिलती है।हमें जाते ही जीप मिल गई।गुरद्वारे के पास ही अलकनन्दा पर पुल बना हुआ है जिस पर एक बार में एक ही जीप जा सकती है।हेमकुंड साहिब नदी के उस ओर है इसलिए इस पुल को पार करना जरूरी है।जीप ने पुल पार किया और 20-25 मिनट में 4 किलोमीटर दूर स्थित पुलना से 1 किलोमीटर पहले छोड़ दिया।यानी हमारी 3 किलोमीटर की यात्रा सम्पन हो गयी।

गोविन्दघाट की समुंद्रतल से ऊंचाई 1828 मीटर है वहीं पुलना 2058 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।देखा जाए तो जीप का हमे बहुत फायदा हुआ है।यहाँ से 6 किलोमीटर आगे भयुन्दर नामक जगह आएगी।जीप से उतरकर हमने पैदल यात्रा शुरू कर दी।ऊपर से एक नदी नीचे आ रही है जो गोविंदघाट पहुँच कर अलकनन्दा में मिल जाती है।जब हमनें किसी से इसके बारे में पूछा तो पता चला की ये लक्ष्मण गंगा नदी है जो ऊपर हेमकुंड साहिब के पास से ही आती है वहां लक्ष्मण मंदिर बना हुआ है।

पुलना के पास ही हमनें नीचे देखा कि नदी के किनारे एक उजड़ी हुई बस्ती नज़र आ रही है।ये बस्ती 2013 की विभीषिका में बरबाद हो गई थी।खण्डहर गवाही दे रहे है।उन लोगो पर क्या बीती होगी जो उस समय घरों में मौजूद थे।बहुत बुरा हुआ।कल्पना से ही कम्पन होने लगी।

थोड़ा आगे चलने पर पुलना आ गया।यहां कई खाने पीने की दुकानें बनी हुई हैं।यहां थोड़ी देर बैठ गए।थोड़ी देर बाद चल पड़े।कोई खास चढाई नही है।आराम से चल रहे हैं कोई थकान नही है।मैं और अजय साथ साथ है और आगे चल रहे हैं।बाकि तीनों हमसे थोड़ा पीछे चल रहे हैं।

पुलना जहां 2058 मीटर की ऊंचाई पर है वहीं भयुन्दर 2239 मीटर की ऊंचाई पर है।इसका मतलब 5 किलोमीटर के सफर में हमें 181 मीटर चढ़ना है।मतलब भयुन्दर तक कोई खास दिक्कत नही आनी।पुलना से लगभग 2 किलोमीटर चलने के बाद मुख्य रास्ते से एक रास्ता नदी की ओर नीचे उतर रहा था।बहुत से लोग उस रास्ते से जा रहे थे।मैं और अजय भी उसी रास्ते से चल पड़े।नीचे उतरने पर रास्ता नदी के साथ साथ है।बहुत से लोग नदी में मस्ती कर रहे थे।हम भी लग गए।थोड़ा आगे चलने पर चढ़ाई आ गई।चढ़ने में थोड़ा जोर भी लगा।ऊपर जाने पर वापिस मुख्य रास्ता आ गया।200 मीटर भी नही चले होंगे,भयुन्दर भी आ गया।मतलब 3 किलोमीटर नदी के साथ साथ बड़ी जल्दी निकल गए।पता ही नही चला।भयुन्दर में अच्छी दुकानें हैं मगर महंगाई ज्यादा है।हमनें थोड़ी देर भयुन्दर में आराम करने का फैसला कर लिया।अनिल,विनोद और शमशेर पीछे रह गए है।

थोड़ी देर आराम करके आगे बढ़ गए।लगभग 11 बज रहे हैं।भयुन्दर के बाद एक पुल आता है जिसे पर करके आगे बढ़ना होता है।5 किलोमीटर का सफर करके हम घांघरिया पहुँच पाएंगे।घांघरिया 3049 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।मतलब 5 किलोमीटर में हमें 810 मीटर चढ़ना होगा।एक किलोमीटर में 162 मीटर।मतलब घांघरिया तक काफी मुश्किल चढाई है।

पुल पार करने के बाद चढाई वाला रास्ता शुरू हो चुका है।थोड़ी थोड़ी दूरी पर थकान होने लगी है।मैं और अजय साथ चल रहे हैं।रास्ता काफी खूबसूरत है।ऊँचे ऊँचे पहाड़ देखकर काफी अच्छा लग रहा है।लक्ष्मण गंगा भयुन्दर तक दाईं और थी अब बाईं और हमारी विपरीत दिशा में बह रही है।बहुत से यात्री ऊपर जा रहे हैं तो बहुत से नीचे आ रहे हैं।पानी,पानी के साथ ग्लूकॉन डी सफर में सहयोग कर रहे हैं।एक जगह एक दुकान आती है।चाय पी जाती है।फिर आगे बढ़ जाते है।चलते-रुकते,बैठते-उठते आगे बढ़ते हैं।एक ऊपर से आता हुआ मुसाफिर मिलता है हमें ग्लूकॉन डी देता है और बताता है कि 2 किलोमीटर पर घांघरिया है।एक किलोमीटर तक दिक्कत है फिर चढाई खत्म हो जाएगी।होंसला मिलता है।घांघरिया से एक किलोमीटर पहले हेलिपैड आता हैं।यहां 15-15 मिनट में हेलोकॉप्टर उतरता है,सवारियां उतारता है,चढाता है,फिर उड़ान भरता है।हेलिपैड आने के साथ ही चढाई कम हो जाती है।हेलिपैड के सामने यात्रियों के लिए बने एक शेड में बैठ कर हमनें थोड़ी देर आराम किया।फिर चल पड़े।बाकी तीनों अभी भी पीछे है।ये नहीं पता कितने पीछे हैं।
लगभग 20 मिनट बाद हम गुरद्वारे में पहुँच चुके हैं।लगभग 2 बज चूके हैं।रहने की आज्ञा ली गई।भोजन किया गया।फिर इधर उधर विचरण किया।

कई देर तक उन तीनों का इंतजार किया।फिर मैंने अजय से कहा चल थोड़ी दूर वापिस चलते हैं क्या पता वो आते हुए मिल जाएं।उनकी खोज में हम वापिस उसी हेलीपेड के सामने वाले शेड के पास पहुँच गये।हेलीकॉप्टर उतरते और उड़ते हुए देखने लगे।वो लोग नही आए।

मौसम खराब होने लगा है।चारों और कोहरा छाने लगा है
।इतना कोहरा छा गया कि पहाड़ दिखने बन्द हो गए।थोड़ी ही देर में जबरदस्त बरसात शुरू हो गयी।हम लोगों ने शेड में शरण ली।और भी बहुत से लोग शेड के नीचे आ गए।लगभग आधा घण्टा बरसात होती रही।ठण्ड भी लगने लगी।मैंने गर्म बनियान और गर्म पायजामा पहन लिया।ठण्ड कम हुई।बरसात थोड़ी कम हुई तो सामने सफ़ेद रंग की बरसाती पहनें तीन लोग दिखाई दिए।एक ने हमारी और हाथ हिलाया।खुशी हुई चलो आ तो गये।शमशेर को चलने में थोड़ी दिक्कत है इसलिए हमें डर था कभी ये लोग वापिस न चल दिए हो।

घांघरिया गुरूद्वारे पहुंचे।तीनों ने भी पेट पूजा की।उसके बाद थोड़ी देर इधर उधर विचरण किया।मैंने और अजय ने गुरुद्वारे में बने शौचालयों की सेवा भी ली।रात को सोने से पहले ये निर्णय लिया गया कि शमशेर के लिए ऊपर चढ़ना काफी मुश्किल है अतः शमशेर ऊपर नही जाएगा वो वापिस गोविंदघाट चल कर गुरुद्वारे में ठहर जाएगा।और शेष चारों सुबह जल्दी उठकर चढाई शुरू करेंगे।रात को घांघरिया में सर्दी काफी बढ़ गई।हम रात को घांघरिया गुरूद्वारे में ऊपर बने हॉल में सोए।


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मंगलवार, 27 जून 2017

हेमकुंड साहिब यात्रा भाग 4: ऋषिकेश से गोविन्द घाट

अलकनन्दा का एक दृश्य

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14 जून,2016


सुबह नहा-धो कर सभी पौने पाँच के बजे क़रीब बस अड्डे पहुँच गये।वहां बहुत सी बसें खड़ी थीं।कोई गंगोत्री जा रही थी तो कोई यमुनोत्री।कोई बद्रीनाथ तो कोई केदारनाथ।सब से पहले हमनें अपने वाली बस की खोज की एवं तत्पश्चात चाय पी गई।जब चाय पीने के बाद हम बस में पहुंचे तो हमारी दो सीटों पर कोई और महानुभाव बैठे मिले।उनसे कहा गया कि भाई आप लोग गलत जगह बैठ गए हैं ये सीट हमारी है तो उन्होंने अपनी टिकट निकाल कर दिखा दी।उनकी टिकट पर वही संख्या दर्ज थी जो हमारी टिकट पर थी।परिचालक से इसकी शिकायत की गई तो जवाब मिला आप दूसरी सीट पर बैठ जाओ।ज़िरह बाजी हुई।गुस्सा भी बहुत आया।नतीजा सिफ़र।

साढ़े पाँच बजे बस चल पड़ी।लक्ष्मण झूले वाले रास्ते से ही बस चल रही थी।आबादी से निकलने के साथ ही पहाड़ी मार्ग शुरू हो गया।जंगल शुरू हो गए।मजा आने लगा।
अजय खिड़की वाली सीट पर बैठा है और मैं अजय के साथ वाली पर।अनिल खिड़की वाली सीट पर है और विनोद अनिल के साथ वाली पर।शमशेर को ड्राइवर के केबिन में सीट मिल गई है।बस में सभी सीटें 2 सीटों वाली हैं।मैं सोच रहा हूँ अजय मुझे खिड़की वाली सीट पे बैठने देगा या नही।अगर देगा तो कब।

ये बस बद्रीनाथ जा रही है और हेमकुंड साहिब का आधार स्थल गोविंदघाट उसी रास्ते पर बद्रीनाथ से लगभग 25-30 किलोमीटर पहले है।इसलिए इस बस में हेमकुंड साहिब और बद्रीनाथ दोनों के यात्री विराजमान है।इस रास्ते में देवप्रयाग,श्रीनगर,रुद्रप्रयाग,कर्णप्रयाग और जोशीमठ जैसे महत्वपूर्ण स्थल पड़ते हैं।देवप्रयाग ऋषिकेश से लगभग 70 किलोमीटर दुरी पर है।सम्पूर्ण रास्ता पहाड़ी है।
लगभग डेढ़ घण्टे चलने के बाद बस ऋषिकेश और देवप्रयाग के बीच कहीं रुकती है।यहाँ कुछ होटल और दुकानें बनी हुई हैं।यहाँ चाय पी गई और 1-2 दोस्तों को छोड़ कर सभी ने 1-परांठा भी खाया।भुना हुआ मक्का मिल रहा था उसका स्वाद भी चख कर देखा गया।यहां से पर्वतों के नजारे बहुत शानदार दिख रहे हैं।घाटियों की गहराई भी मन को प्रसन्न कर रही है।15 मिनट बाद बस चल पड़ी।
अलकनन्दा सड़क के साथ-साथ चल रही है।शायद हमारा दूर तक का साथ है।लगभग 1 घण्टे बाद बस देवप्रयाग पहुँचती है।समुन्द्रतल से 830 मीटर ऊंचाई पर बसा ये सुन्दर शहर अलकनन्दा और भागीरथी नदियों का संगम स्थल है।बस से हम संगम को ढंग से नही देख पाए।यहीं से अलकनन्दा नदी गंगा कहलाने लगती है।

बस देवप्रयाग से निकल चुकी है।इस समय मैं खिड़की वाली सीट पर बैठा हूँ।रास्ते में आने वाले प्राकृतिक दृश्य मन को भाव विभोर कर रहे हैं।जलेबी की तरह बने सीधे मार्ग आन्तरिक रोमांच बढा रहे हैं।कभी बस ऊंचाई की और बढ़ती है तो कभी ढलान से नीचे उतरती है।दूर तक ऊंचाइयों पर फैले जंगल,दूर से नज़र आता कोई झरना या कहीं दूर किसी पहाड़ पर बसा कोई गाँव देखकर वहां तक जाने की कल्पना करता हूँ।
इन पहाड़ी रास्तों और हमारे जीवन के बीच संबद्ध खोजने की कोशिश करता हूँ।हमारा जीवन भी इन रास्तों की तरह ही है कभी हम आगे बढ़ते है तो कभी पीछे रह जाते है।हमारा परिश्रम कभी हमें ऊपर ले जाता है तो कभी कोई चूक नीचे ले आती है।इन घुमावदार रास्तों की तरह हमारा जीवन भी घुमावदार है।तभी कोई झटका लगता है और मैं यथार्थ में प्रवेश करता हूँ।अजय को नींद आ रही है।जैसे ही बस किसी मोड़ पर घूमती है एक बार नींद टूट जाती है फिर आ जाती है।
बस श्रीनगर से गुजर रही है।अजय जाग चुका है।श्रीनगर एक बड़ा गढ़वाली शहर है।इसकी समुन्द्रतल से ऊंचाई लगभग 990 मीटर है।
रुद्रप्रयाग भी आ चुका है।समय की और ध्यान नहीं है।
लगभग 900 मीटर ऊंचाई पर बसा ये गढ़वाली नगर अलकनन्दा और मंदाकिनी नदियों का संगम स्थल है।
अगला पड़ाव कर्णप्रयाग है।कर्णप्रयाग लगभग साढ़े चौदह सौ मीटर ऊंचाई पर स्थित एक सुंदर शहर है।ये अलकनन्दा और पिंडर नदियों का संगम स्थल है।यहाँ पर बस जलपान के लिए लगभग आधा घण्टा रूकती है।सभी ने खाना खाया।फोटो भी खींची गई।
आगे जोशीमठ आया।लगभग 2045 मीटर ऊंचाई पर बसा ये शहर मुझे बहुत अच्छा लगा।बस जोशीमठ से नीचे उतरती है।थोड़ा चलने पर विष्णुप्रयाग आता है।यहां धौली गंगा और अलकनन्दा का संगम होता है।यहां एक पन बिजली परियोजना चल रही है जिसकी इमारतें रास्ते से नज़र आती हैं।वैसे प्रयाग का दूसरा अर्थ संगम ही होता है।जिस भी शहर के साथ प्रयाग लगा है समझ लो वहां किसी न किसी नदी का संगम ही है।

किसी ने ठीक ही कहा है कि पहाड़ों में दूरियां किलोमीटर में नहीं घंटो में मापी जाती है।ऋषिकेश से गोविंदघाट तक का लगभग 280 किलोमीटर का सफर तय करने में बस ने
लगभग 11 घण्टे लगा दिए।

लगभग छः बजे के करीब बस ने हमें गोविन्दघाट उतार दिया।अलकनन्दा नदी के किनारे बसा और चारों और ऊँचे-ऊँचे पर्वतों से घिरा ये शहर वास्तव में शानदार दृश्य पेश करता है।यहां बहुत से होटल हैं,दुकानें हैं और एक गुरुद्वारा है जहाँ हेमकुंड जाने वाली यात्रियों के ठहरने का अच्छा प्रबंध है।सबसे पहले हम गुरूद्वारे में गये।वहाँ हमें ऊपर बने एक हॉल में ठहरने के लिए जगह दे दी गई।हॉल में हमें तीन गद्दे सोने के लिए मिले।हमनें वहां अपना सामान रखा और नीचे अलकनन्दा के किनारे आ गए।यहां हमनें नदी में कई देर तक मस्ती की।नदी के किनारे 2013 की त्रास्दी की चिह्न स्पष्ट नज़र आ रहे थे।देख कर स्पष्ट पता चल रहा था कि उस समय कितनी विकराल विनाश लीला हुई होगी।अँधेरा होने लगा था।वापिस गुरुद्वारे पहुंचे।माथा टेका।भोजन किया और अपने स्थान पर सोने चले गए।अलकनन्दा के बहने की आवाज यहां तक बिल्कुल साफ आ रही थी।
सुबह गोविंदधाम(घांघरिया) पहुंचना है.....


गोविंदघाट:अलकनन्दा नदी

अलकनन्द और शमशेर का प्रेम

अलकनन्दा के किनारे दो दोस्त

अनिल हिमालय की गोद में

जय अलकनन्दा


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शुक्रवार, 16 जून 2017

हेमकुंड साहिब यात्रा भाग 3: ऋषिकेश एवं नीलकंठ

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हरिद्वार बस अड्डे पर काफी भीड़ है।जैसे ही कोई बस आती है लोग टूट पड़ते हैं।जिन लोगों के पास सामान ज्यादा है उन्हें ज्यादा दिक्कत हो रही है।यही हाल उन लोगों का है जिन की गोद में बच्चे हैं।लगभग सुबह के ग्यारह सवा ग्यारह का वक्त है और हम लोग ऋषिकेश जाने वाली बस का इंतज़ार कर रहे हैं।बस आई थी थोड़ी देर पहले ही,पर हम लोगों ने उसे जाने दिया सोचा अगली में चलेंगे।भीड़ बहुत ज्यादा थी उसमें।

वैसे बाहर से बड़े ऑटो एवं शायद जीप वगैरह भी ऋषिकेश जा रहे हैं मगर हम बस में जाना चाहते हैं।देहरादून,मुजफ्फरनगर जैसे शहरों के लिए बसों की भरमार है पर ऋषिकेश के लिए काफी वक़्त बीत जाने के बाद भी कोई बस नहीं आ रही है।मगर शरीर से पसीना हरियाणा रोडवेज की बसों की गति से आता जा रहा है।बनियान को तो निचोड़ा भी जा सकता है।गर्मी अपनी शिद्दत से पेश आ रही है।लगभग पौने घण्टे से ऊपर हो चुका है और उत्तराखंड सरकार की आलोचना शुरू हो चुकी है कि इतनी सवारियां होने के बावजूद भी ऋषिकेश के उपेक्षा क्यों की जा रही है।

आखिरकार एक बस आ ही गई जिस पर ऋषिकेश हरिद्वार का बोर्ड लगा है ये बस ऋषिकेश से आई है और बोर्ड के अनुसार तो इसे वापिस ऋषिकेश ही जाना है।लोग बस को देखते ही इसकी तरफ टूट पड़े।तभी बस के ड्राइवर की तरफ से आकाशवाणी हुई,आकाशवाणी नही वज्रपात कहना उचित रहेगा।घोषणा कर दी की बस ऋषिकेश नहीं देहरादून जाएगी।तभी वहां पास ही एक केबिन में बैठे अड्डा कार्यकारी अधिकारी से कुछ लोगों ने ड्राइवर के शिकायत कर दी की वो ऋषिकेश जाने से मना कर रहा है तो अधिकारी ने आकर ड्राइवर को ऋषिकेश जाने का निर्देश दिया।एक बार तो ड्राइवर अपनी बात पर अड़ा परन्तु जल्द ही मान भी गया।

हम लोगों को थोड़ा संघर्ष करनेे के बाद आगे वाली सीटें मिल गई।लगभग 5 मिनटे बाद बस चल पड़ी।रास्ते में जाम ने पुनः बस अड्डे वाली स्थिति उत्पन कर दी।गर्मी,पसीना,बेसब्री और प्यास।पानी की बोतल ने भी हाथ जोड़ दिए।खैर सब्र के अलावा कोई चारा भी नही है।चालीस मिनट का सफर डेढ़ घण्टे में पूरा हुआ और हम ऋषिकेश पहुँच गए।जाते ही सबसे पहले पानी पिया गया और प्यास की बेदर्दी से हत्या की गई।

कई जगह पड़ताल करने के पश्चात हमें बस अड्डे से लगभग आधा किलोमीटर दूर 700 रूपये में दो कमरे मिल गए।सामान कमरों में छोड़ कर अड्डे के पास ही एक होटल पर खाना खाया गया।तत्पश्चात एक ऑटो लिया और लक्ष्मण झूला पहुँच गये।

लगभग ढाई तीन का वक्त हो चुका है।गंगा का यौवन देख कर सभी का मन प्रसन्नचित हो गया है।नहाने का भी मन है पर नहाने का सामान न लाने के कारण नहाना रदद् कर दिया है। राम झूला देखा,लक्ष्मण झूला देखा,सब कुछ देखा ,और भी पता नही क्या क्या देखा।एक-डेढ़ घण्टे तक पूरा आनन्द लिया।फिर किसी से पूछा कि भाई नीलकंठ जाना है,कैसे जाया जाए,बता दो दो मेहरबानी होगी।बताने वाले ने भी पूरा दिल लगा कर बताया कि आप नाव में बैठ कर दूसरी तरफ जाओ।वैसे राम झूले से भी जा सकते हो।उसके बाद बाजार पार करने के बाद वह स्थान आ जाएगा जहां से आपको नीलकंठ के लिए वाहन मिल जाएगा।

नाव से नदी पार करने का निर्णय लिया गया।नाव में यात्रा करना एक नवीन अनुभव था।बाजार पार किया।10 मिनट पैदल चले और आखिरकार उस जगह पहुँच ही गये जहां से हमें नीलकंठ के लिए वाहन मिलना था।आधी गाडी तो हम पाँचों ने घेर ली और बची हुई आधी एक परिवार को सौंप दी गई।नीलकंठ का रास्ता,पहाड़ी रास्ता,जंगली रास्ता, एक तरफ दरिया-ए-गंगा तो दूसरी तरफ फौलाद की तरह सीना ताने हिमालय का एक हिस्सा।मनोहारी दृश्य जो हर किसी का मन अपनी और आकर्षित कर ले।रास्ते में बरसात शुरू हो गई जिस की वजह से हमे गाडी के शीशे बन्द करने पड़े।2 लड़कियां मिली जो ऊपर किसी गाँव की रहने वाली थीं और नीचे ऋषिकेश में अध्ययन कर रही थी।ड्राइवर ने दिनों को गाडी में बैठा लिया।एक-दो झटके लगने के बाद नया सामान भी गाडी में सही फिट हो गया।लड़कियां काफी मिलनसार थी साथ ही वह परिवार भी जो हमारे साथ बैठा था।आपस में बातें करते-कराते,हंसते-हंसाते हम एक घण्टे में ऊपर पहुँच गये।मंदिर में भीड़ कम थी जिन को दर्शन करने थे उनको आसानी से दर्शन हो गए।सभी ने चाय भी पी।लगभग पौने घण्टे बाद वापिस चल पड़े।

ऑटो से ऋषिकेश बस अड्डे पहुंचे।पता चला की चारधाम यात्रा के लिए सभी बसें सुबह साढ़े पांच बजे से पहले ही निकल लेती हैं।ये भी पता चला कि इनमें बुकिंग भी पहले दिन ही करवानी होती है वरना अगले दिन सीट नही मिलती।ये भी पता चला की चारधाम यात्रा के लिए पहले फोटोयुक्त बायोमेट्रिक पंजीकरण करवाना भी जरूरी है।सभी ने पंक्ति में लग कर अपना निःशुल्क पंजीकरण करवाया एवं एक मिनीबस में पांच सीटें भी बुक करवा दी।हमें सुबह पांच बजे पहुँचने की हिदायत दी गई।

होटल वापिस आए खाना कमरे में ही मंगवा लिया और सो गए।सुबह जल्दी जो उठना था।

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रविवार, 18 दिसंबर 2016

वृन्दावन धाम एवम् गोवर्धन पर्वत यात्रा भाग 1



साल 2016,नवम्बर माह का दूसरा दिन,मैं रात का सफर करके सुबह तावडू पहुंचा और वहां से स्कूल पहुँच गया।रात की नींद आँखों में तारी हो रही थी सोचा स्कूल की छुट्टी के बाद कमरे पर जाकर जम कर सोऊंगा।छूट्टी के बाद जब कमरे पर पहुंचा तो लगभग 3 बज रहे थे।विक्की बाबू अपने फ़ोन में मग्न थे।इस समय मुझे नींद नही आ रही थी जाने कहाँ गायब हो गई थी।मैंने विक्की से कहा कि चल आज शिवाय देख कर आते हैं अजय देवगन की।हम फिल्म देखने का कार्यक्रम बना ही रहे थे कि कमरे पर राममेहर और नवीन का भी आना हो गया।और ऊँची आवाज में हंसी मजाक शुरू हो गया।तभी हमारी आवाजें सुनकर जागलान साहब भी आ गए जो अभी अभी स्कूल से आये थे।आते ही उन्होंने ठेठ हरियाणवी लहजे में कहा "क्यूँ गोरधन सर प ठा राख्या है"।
      ये सुनते ही विक्की ने कहा फिल्म को छोड़ो आज गोवर्धन ही चलते है और उसी समय एकदम चलने का कार्यक्रम बन गया।
           लगभग पौने चार बजे जागलान साहब की मारुती मेगेनर तावडू नूह मार्ग पर दौड़ रही थी पांच मुसाफिरों के साथ।इस सफर में मेरे साथी थे राजेश जागलान,विक्की रांगी,राममेहर,नवीन और जागलान साहब की मारुती मेगेनर।मेरे ये सभी साथी अध्यापक हैं और हम कमरे पर एक साथ ही रहते हैं।
         नूंह पहुँचने के बाद गाडी होडल मार्ग पर बढा दी।मेरे गले में कुछ दिक्कत थी जिसके चलते उटावड गाडी रोक कर एक मेडिकल स्टोर से दवाई ली गई।होडल से निकलने के बाद हम दिल्ली मथुरा हाईवे पर चढ़ गए और गाडी की स्पीड भी बढ़ गई।कुछ दूर चलने पर रास्ते में पड़ने वाले मुरथल होटल पर चाय बिस्कुट खाए गये।चाय पीने के बाद आगे बढ़ गए।इस समय लगभग सवा पांच बज रहे थे।गाडी पहले राममेहर चला रहा था और अब स्टेयरिंग जागलान साहब के हाथ में था।


होटल मुरथल पर जल पान करते हुए
होटल मुरथल पर खड़ी हमारी गाडी
वृन्दावन की चकाचौंध



लगभग सवा छः बजे हम वृन्दावन पहुँच गये और गाडी पार्किंग में लगा कर पहले बांके बिहारी मंदिर में गये।यहां जब प्रसाद ले रहे थे तो जागलान साहब ने मुझसे कहा कि 51-51 रूपये का प्रसाद पांच जगह ले लेना।मैंने कहा भाई साहब मैं तो पूजा करूँगा नही इसलिए 4 ही जगह ठीक रहेगा।जागलान साहब ने कहा तो तू यहां आके भगवान की तौहीन कर रहा है।मैंने कहा भाई वो बात नही है दरअसल मैं निर्गुण ईश्वर का उपासक हूँ।वो मान गए।क्योंकि भगवान कृष्ण में जागलान साहब की बहुत ज्यादा आस्था है इसलिए उन्हें मेरा पूजा करना बहुत अजीब लगा।15 मिनट में सभी दर्शन करके बाहर आ गए।मंदिर के अंदर फोटो लेने की सख्त मनाही थी।भीड़ भी उस दिन ज्यादा नही थी।उसके बाद घर के लिए प्रसाद खरीदा गया।तत्पश्चात एक दुकान पर एक एक प्लेट टिक्की खाई गई।उसके बाद खरीददारी का दौर चला।
     लगभग सवा आठ बजे हमने गोवर्धन पर्वत के लिए प्रस्थान कर दिया।अँधेरा हो चूका था इसलिए रास्ते में कुछ नजर नही आ रहा था और दिवाली पे हुआ प्रदूषण स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा था।लगभग साढ़े नौ बजे हम गोवर्धन पहुँच गये सब से पहले हम मानसी गंगा पहुंचे।नियम के अनुसार तो यहां स्नान करके यात्रा शुरू करनी होती है।पर ठंड को देखते हुए मुंह हाथ धोकर काम चला लिया गया।उसके पश्चात् गाडी में ही गोवर्धन पर्वत और राधा कुंड की 21 किलोमीटर की परिक्रमा की गई।परिक्रमा की समाप्ति के पश्चात लगभग 11 बजे हम वापिस चल पड़े।आते वक्त होडल के बाद हमने कुण्डली मानेसर पलवल हाईवे का प्रयोग किया।रास्ते में सरपंच होटल पर खाना भी खाया गया।रात को लगभग सवा दो बजे सभी तावडू अपने कमरे पर पहुँच चुके थे।
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